गाज़ा में युद्धविराम के यक्ष प्रश्न
पुष्परंजन
मंगलवार रात को गाज़ा में लड़ाई रोके जाने पर सहमति बनी, बुधवार को घोषणा की गई कि गुरुवार सुबह से युद्ध को अस्थायी रूप से विराम दिया जाएगा। लेकिन लड़ाई रुकी नहीं, बल्कि और तेज़ होने लगी। युद्धविराम से पहले गाज़ा के सिटी सेंटर के जितना करीब संभव हो सके, इस्राइली सैनिकों के पहुंचने की कोशिशें तेज़ हो चुकी थीं। इस्राइली बलों को सेफ्टी कवर देते हुए हवाई बमबारी जारी रही। ऐसे में आप कैसे मान लेंगे कि सब कुछ आसान है, और नेतन्याहू की नीयत साफ़ है?
नीयत दूसरी ओर भी साफ़ नहीं है। कतरी मध्यस्थों के माध्यम से हमास से जो स्पष्टीकरण अपेक्षित थे, आरम्भ में वो प्रतिक्रिया देने से चुप रहते थे। गुरुवार दोपहर को कतर विदेश मंत्रालय ने हमास की तरफ से हरी झंडी मिलने की बात कही। फ़िर तय हुआ कि संघर्ष विराम शुक्रवार सुबह 7 बजे शुरू होगा, और 13 इस्राइली बंदियों के पहले समूह को शाम 4 बजे रिहा किया जाएगा। इस सौदे में सबसे संदिग्ध चेहरा हमास नेता याह्या सिनवार बताया गया है, जिसके वादों पर भरोसा करना इस्राइली पक्ष के लिए मुश्किल है।
कुछ सैन्य इतिहासकार इसे अतीत के युद्धविराम से भिन्न मानते हैं। शुक्रवार सुबह 7 बजे तक का समय बढ़ाने और बंदूकों के गरजने से रोकने के पीछे यही रणनीति थी, कि गाज़ा के अधिकाधिक इलाके इस्राइली सैनिकों के हाथ में आ जाएं। इस थ्योरी को आगे बढ़ाने में इस्राइली लालफीताशाही ने भरपूर मदद की है। संघर्षविराम को दो बार स्थगित करने का एक कथित कारण यह था कि समझौते पर कतर और हमास द्वारा औपचारिक रूप से हस्ताक्षर नहीं किए गए थे, केवल आधिकारिक तौर पर घोषणा की गई थी कि युद्धविराम पर सहमति हो गई है। रिहा किए जाने वाले लोगों की सूची में नामों को स्पष्ट करने में भी लालफीताशाही की अपनी शरारत थी।
लगता है कि इस्राइली सैन्य कमान को बता दिया गया था कि युद्धविराम के आदेशों को जितना संभव हो, देर से लागू करो, इस बीच हमास प्रभावित इलाक़ों को हथियाते हुए आगे बढ़ो। दांत दिखाने और खाने के अंतर को आप यहां भी देख सकते हैं। ‘आइए लड़ाई रोकें और लोगों का आदान-प्रदान करें’, राजनेताओं के ऐसे बयान सुनिये, तो लगता है कि दुनियाभर की अपील काम कर गई है। इस शब्दजाल को इस्राइली सेना भी समझ रही थी, और दूसरी ओर हमास मिलिटेंट्स भी।
कतर ने गुरुवार को घोषणा की थी, ‘लड़ाई रुकने के ठीक नौ घंटे बाद, बंदियों का पहला जत्था शुक्रवार शाम 4 बजे रिहा किया जाएगा।’ लेकिन युद्धक्षेत्र में शाम के समय बंदियों के आदान-प्रदान को सामान्यतः सुरक्षित नहीं माना जाता है। बंदियों के तबादले के बाद हमास के पास ह्यूमन शील्ड की संख्या कम पड़ती जाएगी, ऐसा भी लगने लगा है, क्योंकि ज़्यादातर नागरिक दक्षिणी गाज़ा की तरफ़ शिफ्ट हो चुके हैं। आईडीएफ (इस्राइली डिफेंस फोर्स) के प्रवक्ता ने शुक्रवार को चेतावनी दी कि विस्थापित फलस्तीनी नागरिक उत्तर की तरफ़ आने की हिमाक़त न करें। इससे लगता है कि नार्थ का जो हिस्सा आईडीएफ के कब्ज़े में आ चुका है, उसे वो छोड़ने वाले नहीं।
यों, 13 नवंबर की रिपोर्टों से पता चलता है कि उत्तरी गाजा में हमास की 10 बटालियनों को नष्ट कर दिया गया था। इसका मतलब है कि उनके कई कमांडर अब जीवित नहीं बचे हैं। गाज़ा में हमास की करीब 24 बटालियनें हैं। इन बटालियनों में 140 कंपनियांे के होने का अनुमान लगाया जाता रहा है। एक कंपनी में आमतौर पर 100 लड़ाके होते हैं। 7 अक्तूबर को हमास के पास लगभग 30,000 लड़ाके थे। उनमें से कुछ इस्राइल पर हमला करते हुए मारे गए, कुछ को हिरासत में लिया गया है।
सैन्य विशेषज्ञ बताते हैं कि हमास मरीन कमांडो जैसी कई विशेष इकाइयों को समाप्त कर दिया गया है। हमास की मुख्य लड़ाकू इकाई बटालियन स्तर है। जिनमें टैंक रोधी मिसाइलें, स्नाइपर्स, रॉकेट और मोर्टार को एक्टिव करने वाले एक्सपर्ट व सैनिक शामिल हैं। ऐसा लगता है कि गाजा में हमास की कुछ बटालियनें पूरी तरह से नष्ट हो गई हैं। गाजा शहर के उत्तर-पश्चिम में समुद्र तट के पास शिफ़ा अस्पताल के आसपास भी आईडीएफ से लड़ाई में 200 हमास मिलिटेंट्स मारे गए, ऐसा वहां के जानकार बताते हैं।
हमास के पास उत्तरी गाजा में अपने लड़ाकों को बदलकर नई कुमुक लाने का कोई रास्ता नहीं नज़र आता है। युद्धविराम के बाद संभव है कि वो स्वयं को चारों तरफ़ से घिरा हुआ महसूस करें। शिफ़ा अस्पताल से लगी सुरंग बंद है। दूसरी सुरंगों से मिलने वाले रसद-गोले बारूद का कोई रास्ता नहीं है। हमास का सप्लाई नेटवर्क इतना अवरुद्ध है कि लड़ाके ढीले पड़ने लगे हैं। दूसरी ओर लेबनान बॉर्डर पर हिजबुल्ला के ठिकानों पर इस्राइली हमले के पीछे यही रणनीति है कि उन्हें उलझाकर रखा जाए, ताकि वो हमास की मदद न कर पायें। हिज़बुल्ला लीडरशिप लगातार ईरान के संपर्क में है। तेहरान के आक्रामक तेवर से यही लग रहा है कि युद्धभूमि को उसे शांत नहीं रखना है।
ईरानी विदेशमंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान ने गुरुवार को लेबनान में इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन ‘हिज़बुल्ला’ के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह से मुलाकात की। ईरानी विदेशमंत्री ने अस्थाई युद्धविराम और बंदियों के आदान-प्रदान में अपनी रणनीति को हिज़बुल्ला लीडरशिप से साझा किया। बाहर पत्रकारों को यही बयान दिया कि इस्राइल डरा हुआ है, जायोनी दुश्मन की पराजय निश्चित है। लेबनान की यात्रा पूरी करने के बाद ईरानी विदेशमंत्री कतर पहुंच गये हैं, जहां उन्होंने अपने समकक्ष से फलस्तीन युद्धभूमि के बदलते हालात पर विचारों का आदान-प्रदान किया। ईरान इस पूरे माहौल में अपना इकबाल बनाये रखना चाहता है, यह उसकी लीडरशिप की गतिविधियों से स्पष्ट हो रहा है।
सबसे बड़ी बात बचे बंधकों को लेकर है। वो कब और किन हालात में छोड़े जाएंगे, यह सब कुछ युद्धस्थल की रणनीतियों पर निर्भर करता है। लंदन स्थित संस्था अल-अरबी-अल-जदीद ने मिस्र के सूत्रों का हवाला देते हुए कहा कि हमास रेडक्रॉस के प्रतिनिधियों को उन स्थलों का दौरा करने की अनुमति देने से इनकार कर रहा है, जहां शेष बंधकों को रखा गया है। हमास की तरफ से बस इतना भर आश्वासन है कि इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रेडक्रास एंड रेड क्रिसेंट (आईएफआरसी) को इस बारे में अपडेट करते रहेंगे। जेनेवा स्थित आईएफआरसी के महासचिव जगन चापागाईं के लिए भी यह परीक्षा की घड़ी है, जो बंदियों की अदला-बदली को मॉनिटर कर रहे हैं। नेपाल स्थित चितवन ज़िले के दिब्यनगर में जन्में जगन चापागाईं भारत में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके हैं।
लेखक ईयू-एशिया न्यूज़ के नयी दिल्ली संपादक हैं।