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पंजाब सरकार 25 साल पहले ही बना चुकी नियम

06:35 AM Jul 15, 2024 IST
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विजय मोहन/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 14 जुलाई
शहीद की विधवा एवं माता-पिता के बीच सरकारी मदद के तौर पर मिलने वाली राशि के बंटवारे का विवाद इन दिनों सुर्खियों में है। मांग उठ रही है कि सरकारी लाभ का समान वितरण हो। पंजाब सरकार द्वारा 25 साल पहले ही इस संदर्भ में निर्णय ले लिया गया था।
वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध के तुरंत बाद, पंजाब सरकार ने आश्रित माता-पिता को उपेक्षित किए जाने की शिकायतों पर ध्यान देते हुए एक नीति तैयार की। इसके तहत सरकार द्वारा दिए जाने वाले लाभों को युद्ध में मारे गए सैनिकों की विधवा और माता-पिता के बीच विभाजित किया गया। इस संबंध में रक्षा सेवा कल्याण निदेशक (डीडीएसडब्ल्यू) ब्रिगेडियर बीएस ढिल्लों (सेवानिवृत्त) ने कहा, 'पंजाब सरकार युद्ध में मारे गए सैनिकों के परिवार को एक करोड़ रुपये की अनुग्रह राशि देती है, जिसमें से 60 लाख रुपये विधवा को और 40 लाख रुपये माता-पिता को दिए जाते हैं। अविवाहित सैनिकों के मामलों में पूरी राशि माता-पिता को दी जाती है।'
युद्ध में मारे गए सैनिकों के परिवार केंद्र सरकार द्वारा सेवा और संबद्ध लाभों के हकदार हैं, जिसमें अनुग्रह राशि, शेष वेतन, भविष्य निधि, ग्रेच्युटी, बीमा आदि शामिल हैं। इसके अलावा, राज्य सरकारों के पास वित्तीय लाभ देने, परिवार के किसी सदस्य को सरकारी नौकरी देने या अपने राज्य के शहीदों के परिजनों को अन्य सहायता प्रदान करने की अपनी नीतियां हैं। ये नीतियां हर राज्य में अलग-अलग हैं।
तत्कालीन डीडीएसडब्ल्यू ब्रिगेडियर केएस कहलों (सेवानिवृत्त) ने कहा, 'कारगिल संघर्ष के बाद, ऐसे कई उदाहरण थे जहां लाभ पाने वाले सैनिकों की युवा विधवाओं ने विभिन्न कारणों से अपने ससुराल वालों से अलग होने का विकल्प चुना। इसके चलते कुछ शोक संतप्त माता-पिता बोले कि वे अपने बेटे पर निर्भर थे और अब उनके पास जीविका का कोई साधन नहीं।'

बादल सरकार में बनी नीति

तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और तत्कालीन वित्त मंत्री कैप्टन कंवलजीत सिंह ने रक्षा सेवा कल्याण विभाग से इस मुद्दे पर उनकी टिप्पणी मांगी और राज्य सरकार की नीति तैयार की गई। इसके बाद महाराष्ट्र और हरियाणा सहित कई अन्य राज्य सरकारों ने नीति के बारे में पंजाब सरकार से जानकारी ली।

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पंजाब के 65 सैन्यकर्मी हुए थे देश के नाम कुर्बान

उस वक्त कारगिल में पंजाब के 65 सैन्यकर्मी मारे गए, जिनमें दो अधिकारी भी शामिल थे। उनमें से पांच को वीरता के लिए सम्मानित किया गया। कई सेना इकाइयों में भी पंजाब के जांबाज हैं। उस वक्त ऐसे जान गंवाने वाले परिवारों को सम्मानित भी किया गया।

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