फसल चक्र में बदलाव से सुरक्षा
कृषि मंत्रालय बड़ी सक्रियता से प्रयत्नशील है कि किसानों को प्राकृतिक खेती तथा कृषि चक्र में बदलाव लाकर विश्वस्तरीय वार्मिंग का मुकाबला करना चाहिए। लेकिन इन सरकारी नीतियों को किसानों की ओर से कोई विशेष सहयोग नहीं मिल रहा। उल्लेखनीय है कि जब साठी धान की खेती होती थी तो उसके लिए पानी की बहुत जरूरत होती थी, सरकार के समझाने पर भी किसान नहीं मानते थे, जब उसकी खरीद बन्द हुई तब से वह चक्र बन्द हुआ। साफ जाहिर है कि मौजूदा समस्या का समाधान भी आपसी विचार-विमर्श से ही निकलेगा।
एमएल शर्मा, कुरुक्षेत्र
ग्लोबल वार्मिंग पृथ्वी के वातावरण के समग्र तापमान में क्रमिक वृद्धि को संदर्भित करता है। पृथ्वी को सही मायनों में हरा-भरा बनाना होगा। किसानों को परिवर्तित मौसम के अनुसार खेती करनी चाहिए। मौसम में हो रहे परिवर्तन से कृषि उत्पादन बाधित हो रहा है। किसानों को चाहिए कि वे कम अवधि वाले धान की खेती करें। फसल चक्र में बदलाव से उर्वरा शक्ति बढ़ेगी और फसलों में बीमारियों का संक्रमण भी घटेगा। लगातार एक जैसी फसल लेने से उत्पादकता प्रभावित होती है। अधिक पानी वाली फसल के बाद कम पानी वाली फसल उगानी चाहिए।
पूनम कश्यप, न्यू मुल्तान नगर, दिल्ली
जागने का वक्त
इस बार अप्रत्याशित गर्मी पड़ रही है, जिसका असर गेहूं की फसल पर भी पड़ा है। एक अनुमान के अनुसार इस बार 15 प्रतिशत की कमी होने की सम्भावना है। जाहिर है ग्लोबल वार्मिंग का संकट असर दिखा रहा है। वनों का अंधाधुंध कटाव, कूड़ा-कर्कट में वृद्धि, फॉसिल ईंधनों का बढ़ता प्रयोग, औद्योगिक विकास, वाहनों का बढ़ता प्रयोग तथा रूस-यूक्रेन का युद्ध इस संकट को और बढ़ायेगा। परिणामस्वरूप धरती के औसत तापमान में वृद्धि और बारिश में कमी होगी। ऐसी स्थिति में किसान को अपनी फसलों के नये पैटर्न पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए ताकि कम बारिश और अधिक तापमान में उत्पादकता में गिरावट न आये और हमारी खाद्य शृंखला सुरक्षित रहे।
शेर सिंह, हिसार
आज ग्लोबल वार्मिंग गंभीर समस्या बनती जा रही है। यह सब मानव द्वारा प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का लेखा-जोखा है। इस बार ज्यादा गर्मी पड़ने से गेहूं की उत्पादकता कम हुई है। आम किसान अपनी फसलों के नए पैटर्न के बारे में क्या सोचेगा? उसे ऐसा सोचने की फुर्सत ही कहां है? वह बमुश्किल ही कहीं से जुगाड़ कर अपनी परम्परागत फसल उगाता है और परिवार का पालन-पोषण करता है। मौसम की विभीषिका को देखते हुए नए पैटर्न के बारे में सरकारी स्तर पर ऐसा किया जाना चाहिए। अर्थात् किसी भी प्रकार के जोख़िम की स्थिति में सरकार द्वारा किसानों को पूरा संरक्षण दिया जाना चाहिए।
सत्यप्रकाश गुप्ता, बलेवा, गुरुग्राम
जमीनी बदलाव हो
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पशु-पक्षियों के साथ-साथ धरती पर भी हो रहा है। यह ग्लोबल वार्मिंग का ही प्रभाव है कि इस बार गेहूं की पैदावार में 15 से 20 प्रतिशत की कमी आ रही है। इसको गम्भीरता से नहीं लिया गया तो देश में फिर से अन्न संकट पैदा हो सकता है। इसके लिए केवल किसानों को ही नहीं, सरकार को भी काम करना पड़ेगा। जहां तक फसल चक्र में बदलाव की बात है, कहने में तो आसान लगता है परन्तु जमीनी स्तर पर काफी मुश्किले हैं। गेहूं केवल सर्दी में ही पैदा होती है और चावल को बरसात का मौसम चाहिए। इस चक्र को बदलने का जोखिम किसान कैसे ले सकता है? यह तो सरकार और कृषि वैज्ञानिक ही कर सकते हैं कि वे ऐसे बीज तैयार करें जो हर मौसम और हर जलवायु में पैदावार दे सकें।
जगदीश श्योराण, हिसार
ग्लोबल वार्मिंग एक गंभीर समस्या बनती जा रही है, जिसके परिणामस्वरूप इस बार अप्रत्याशित गर्मी पड़ रही है। इस बढ़ती गर्मी के कारण गेहूं की उत्पादकता में कमी आई है। अतः जरूरी है कि ग्लोबल वार्मिंग के कुप्रभाव से बचने के लिए किसान फसल चक्र में बदलाव करे। किसान को ऐसे पैटर्न पर विचार करने की जरूरत है, जिससे कम बारिश होने पर तथा तापमान अधिक होने पर भी फसलों की उत्पादकता में कमी न आए। इस संबंध में किसानों को जागरूक भी किया जाए। ऐसा करने से हमारी खाद्य सुरक्षा भी मजबूत होगी।
सतीश शर्मा, माजरा, कैथल
पुरस्कृत पत्र
ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते प्रभाव के कारण मार्च महीने से ही तापमान बढ़ा हुआ रहा। मौसम के इस परिवर्तन से किसानों को अपनी फसल को बचाने के लिए काफ़ी जद्दोजहद करनी पड़ी। विशेषकर जिन फसलों में पानी की मात्रा ज्यादा लगती है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय को अल्प पानी एवं बढ़ते तापमान से अप्रभावित रहने वाली फसलों को बढ़ावा देने के लिए देश भर में संचार माध्यमों द्वारा अभियान चलाना चाहिए ताकि किसानों में नवाचार को बढ़ावा मिले और वे भविष्य में मौसम के अनुकूल फसलें उगा कर होने वाली क्षति से बच सकें। ड्रिप एवं स्प्रिंकलर सिंचाई पद्धति को अपनाकर भी कृषक पानी की बचत कर के नकद फसल लगा सकते हैं।
ललित महालकरी, इंदौर, म.प्र.