सरकार की प्राथमिकताएं और मुश्किलें
सहमति की नीति
इस बार भाजपा को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है। उसे सरकार बनाने के लिए तेलुगु देशम पार्टी के प्रमुख, चंद्रबाबू नायडू तथा बिहार के मुख्यमंत्री, नीतीश कुमार की जदयू के अलावा छोटे दलों की मदद लेनी पड़ी है। इस बार कोई भी कार्य करने से पहले उन्हें अपने सहयोगी दलों की सहमति लेनी पड़ेगी और पुरानी नीतियों में भी परिवर्तन करने पड़ सकते हैं। मंत्रालय के विभागों का बंटवारा करते समय भी सहयोगी दलों की सुननी पड़ती है। चुनावों के दरमियान आचार-संहिता लागू होने के कारण रुके हुए कामों को पूरा करना होगा। वहीं संसद चलाने के लिए विपक्ष की बात को भी सुनना होगा।
शामलाल कौशल, रोहतक
बहुमत की कसक
नयी राजग सरकार की प्राथमिकताओं में सबसे पहले ‘तीसरे कार्यकाल में बड़े फैसलों के लिए तैयार रहने’ के साथ-साथ गठबंधन सरकार में शामिल सभी घटक दलों को हर स्थिति में अपने साथ रखने की होगी। इस बार अपने ही सहयोगी दलों की मुद्दों पर भिन्न राय तथा मजबूत विपक्ष के चलते ऐसा होना सबसे बड़ी चुनौती होगी। वहीं सहयोगी दलों द्वारा अपने अपने राज्य या क्षेत्रों में किये वादों को पूरा करने तथा भाजपा सांसदों की नाराजगी के बावजूद गठबंधन सहयोगियों को मनपसंद मंत्रालय व विभाग देने व भाजपा को पूर्ण बहुमत आदि की चुनौतियां भी कम नहीं होंगी।
राजकुमार कश्यप, राजौंद
धैर्य जरूरी
केंद्र में इस बार गठबंधन सरकार ने अपना कार्यकाल शुरू कर दिया है। उम्मीद है कि भाजपा के सभी समर्थित दल देश और आमजन के लिए मिल-जुलकर काम करेंगे। मोदी सरकार के उन फैसलों का समर्थन करेंगे जिससे हर वर्ग को फायदा होगा। बिना वजह या राजनीतिक लाभ के लिए हर फैसले का विरोध नहीं करना चाहिए। सरकार कोई भी फैसला लेने से पहले सहयोगी दलों से राय लेगी। मोदी सरकार को भी चाहिए कि वो इस बार ऐसे फैसले लेने से बचे, जो आमजन के हक में न हों। गठबंधन सरकार को सोच-सोचकर अपना दायित्व निभाने की जरूरत है।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
चुनौतीपूर्ण स्थिति
केंद्र में एनडीए सरकार ने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में अपनी प्राथमिकताओं को पूर्ण करने का संकल्प दोहराया है। लेकिन 2024 में बनी सरकार के पास पूर्ण बहुमत भाजपा के पास नहीं है। अतः एनडीए के सहयोगी दलों का समर्थन प्राप्त करके सरकार का गठन किया गया है। भाजपा के लिए दलों को साध कर रखना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। यह अग्नि परीक्षा की घड़ी है। उधर इंडिया गठबंधन भी सरकार को अस्थिर करने का कोई अवसर हाथ से गंवाना नहीं चाहेगा। इस प्रकार दोहरी चुनौतियों से जूझते हुए सरकार को अपनी नीतियों को लागू करने हेतु संकल्प शक्ति एवं कूटनीति के साथ आगे बढ़ना होगा।
ललित महालकरी, इंदौर, म.प्र.
छोटे दलों की भूमिका
देश में तीन-चार दशक पूर्व के राजनीतिक हालात आज फिर बनते दिखे हैं। गठबंधन सरकार की तब भी मजबूरी थी और किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत के अभाव में आज भी। भाजपा नीत गठबंधन सरकार के सत्ता में आने के बाद पिछले 10 सालों के हालात बदलेंगे। पहले बहुमत वाली सरकार खुद फैसला लेने में सक्षम थी जो अब उसे सहयोगियों की सहमति पर निर्भर रहना पड़ेगा। इस गठबंधन का एक फायदा यही होगा कि इससे राष्ट्रीय राजनीति और लोकतंत्र में छोटे दलों को भी प्रतिनिधित्व मिलेगा। समय की मांग है कि सरकार अपने सहयोगियों के साथ चले। छोटे दल भी लक्ष्मण रेखा न लांघें और राष्ट्रहित के सर्वोपरि मुद्दे पर सरकार को समर्थन देते रहें।
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.
मजबूत विपक्ष से सामना
भाजपा ने सहयोगी दलों तथा जातीय व क्षेत्रीय समीकरणों को साधने का भरसक प्रयत्न किया है। इसके बावजूद मोदी सरकार के सामने महत्वपूर्ण फैसलों में निर्णय करने की चुनौती ज़रूर रहेगी। भाजपा को अपने सहयोगियों के प्रति उदार रवैया अपनाना पड़ेगा। विपक्ष अग्निपथ, समान नागरिक संहिता, बेरोजगारी व महंगाई जैसे संवेदनशील मुद्दों पर राजग सरकार के लिए कड़ी चुनौती पेश करता रहेगा। राजग की कोशिश होनी चाहिए कि गठबंधन को मजबूत करके सशक्त होकर विपक्ष का मुकाबला करना चाहिए।
जयभगवान भारद्वाज, नाहड़