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गन्नौर में नहीं चला था प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जादू

10:11 AM Sep 05, 2024 IST
गन्नौर में नहीं चला था प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जादू

हरेंद्र रापड़िया /हप्र
गन्नौर (सोनीपत), 4 सितंबर
दुनियाभर में अपने नाम व काम का डंका बजाने वाली प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी विधानसभा चुनाव में गन्नौर के मतदाताओं पर अपना असर नहीं छोड़ पाई थीं। इंदिरा ने प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए 1968 तथा 1982 में गन्नौर में जनसभाएं कर कांग्रेस प्रत्याशियों के पक्ष में मतदान करने की अपील की, लेकिन दोनों बार पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा। दोनों चुनाव में जीत का सेहरा निर्दलीय प्रत्याशी राजेंद्र सिंह मलिक के सिर बंधा। दिलचस्प बात यह है कि वर्ष 1982 में राजेंद्र मलिक जीत के बाद कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री बने।
हरियाणा गठन के बाद 1967 के पहले चुनाव में सोनीपत की कैलाना (पुराना नाम) वर्तमान में गन्नौर सीट पर कांग्रेस ने राजेंद्र सिंह मलिक को मैदान में उतारा और उन्होंने कड़ी मशक्कत कर यह सीट पार्टी की झोली में डाल दी। 1968 के मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस ने उनका टिकट काटकर गन्नौर निवासी प्रताप सिंह त्यागी को दे दिया। इससे खफा होकर राजेंद्र मलिक ने बतौर निर्दलीय ताल ठोंक दी। इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी का प्रचार करने के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी गन्नौर पहुंची और जीटी रोड स्थित गांव बड़ी में जनसभा को संबोधित करते हुए पार्टी प्रत्याशी को जिताने की अपील की। भारी संख्या में लोग उन्हें सुनने आए, मगर जब चुनाव परिणाम आए तो कांग्रेस प्रत्याशी अपने प्रतिद्वंद्वी से 1948 मतों के अंतर से हार गए।
वर्ष 1972 के चुनाव में कांग्रेस ने राजेंद्र सिंह मलिक को टिकट दे दिया। इससे नाराज होकर प्रताप सिंह त्यागी ने निर्दलीय नामांकन भर दिया। मगर इस बार क्षेत्र के मतदाताओं ने प्रताप सिंह को 1040 मतों के अंतर से जिता दिया। 1977 के विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी शांति राठी ने निर्दलीय राजेंद्र सिंह को 4850 से हराया। वर्ष 1982 के चुनाव में कांग्रेस ने इस क्षेत्र से लुधियाना कृषि विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर व पंजाब एंड सिंध बैंक के डायरेक्टर अमरीक सिंह चीमा के बेटे जगदीप चीमा को टिकट दिया। चीमा का गन्नौर क्षेत्र में कृषि फार्म था तथा क्षेत्र में उनका अच्छा खासा रूतबा था। संयोग से इस बार भी कांग्रेस प्रत्याशी का मुकाबला निर्दलीय प्रत्याशी राजेंद्र सिंह मलिक से था। चीमा के चुनाव की कमान दिल्ली से सांसद जगदीश टाइटलर संभाले हुए थे।
चीमा के समर्थन में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने गन्नौर के जनता स्कूल के मैदान में विशाल रैली को संबोधित करते हुए उन्हें जिताने की अपील की। रैली में मौजूद भीड़ को देखकर कांग्रेसियों को विश्वास हो गया था कि इस बार उनकी जीत पक्की है लेकिन कांग्रेस को निराशा हाथ लगी और निर्दलीय राजेंद्र सिंह मलिक बाजी मार ले गए। यही नहीं, कांग्रेस प्रत्याशी इस चुनाव में लोकदल के प्रत्याशी चंद्र सिंह राठी के बाद तीसरे स्थान पर रहे। कांग्रेस की धुरंधर नेता व देश की प्रधानमंत्री द्वारा प्रचार किए जाने के बाद दोनों बार हार का मुंह देखने वाले पुराने कांग्रेसी आज भी उन चुनावों को याद कर बेचैन हो जाते हैं।

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चौ. चरण सिंह की अपील नाकाम रही

वर्ष 1982 के चुनाव में लोकदल के टिकट पर गन्नौर से एडवोकेट चंद्र सिंह राठी चुनाव मैदान में थे। उनके समर्थन में पूर्व प्रधानमंत्री चौ. चरण सिंह ने गन्नौर में एक विशाल जनसभा को संबोधित कर अपने प्रत्याशी को जिताने की अपील की। मगर उनकी अपील भी काम नहीं आई और चंद्र सिंह राठी दूसरे नंबर पर रहे।

कांग्रेस को हराकर उसी के मंत्री बने

1982 के चुनाव में 16 निर्दलीयों ने बाजी मारकर कांग्रेस का गणित बिगाड़ दिया था। ऐसे में कांग्रेस बहुमत का आंकडा नहीं छू पायी। सरकार बनाने का जिम्मा चौ. भजनलाल को सौंपा गया। राजनीतिक विशलेषक प्रो. सतीश गुप्ता बताते हैं कि बहुमत जुटाने के लिए चौ. भजनलाल खुद राजेंद्र के आवास पर पहुंचे और समर्थन की गुजारिश की, जिसे राजेंद्र ने स्वीकार कर लिया। कांग्रेस सरकार के गठन के बाद राजेंद्र सिंह मलिक को कैबिनेट मंत्री के पद से नवाजा गया।

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