यह इंसानी जिजीविषा का ही परिणाम है कि यदि प्रकृति हमें कोई चुनौती नहीं देती है, तो हम खुद को नई चुनौतियां देना स्वीकार करते हैं। एक एवरेस्ट फतेह करते हैं, तो पराक्रम की किसी दूसरे एवरेस्ट की खोज और उस पर विजय पाने की होड़ में जुट जाते हैं। इस दार्शनिक विवेचना को यदि हम भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन- इसरो के क्रियाकलापों से जोड़ें तो पता चलता है कि यह संगठन ऐसी ही चुनौतियों का मुरीद है, जिन्हें ठोस इरादे, कड़ी मेहनत और सतत परिश्रम से हासिल किया जा सकता है। इसरो की हालिया उपलब्धि इंसान को अंतरिक्ष में भेजने वाली परियोजना- गगनयान के एक अहम परीक्षण की सफलता है जिसने सूर्य, चंद्र और मंगल अभियानों समेत इसरो के तमाम अन्वेषणों की नींव को और पुख्ता कर दिया है। इसरो की नई परियोजना- गगनयान से जुड़ा व्हीकल अबॉर्ट मिशन-1 (टीवी-डी1) नामक यह परीक्षण मिशन के निष्फल होने की स्थिति में बाह्य अंतरिक्ष से अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी पर सुरक्षित वापस लाने वाले ‘क्रू एस्केप सिस्टम’ यानी चालक दल बचाव प्रणाली (सीईएस) का था। इसमें परीक्षण यान यानी ‘क्रू मॉड्यूल’, जिसमें अंतरिक्ष यात्री सवार होंगे, को बंगाल की खाड़ी में सटीकता के साथ वापस लाया गया। करीब 20-25 मिनट की अवधि में परीक्षण के दौरान एकल चरण वाले तरल प्रणोदक रॉकेट से ‘क्रू मॉड्यूल’ को जमीन से 16.9 किलोमीटर ऊपर ले जाया गया। इस ऊंचाई पर पहुंचने के बाद ‘क्रू एस्केप सिस्टम’ यानी चालकदल बचाव प्रणाली (सीईएस) को सक्रिय करते हुए रॉकेट से ‘क्रू मॉड्यूल’ को सटीक तरीके से अलग किया गया। बंगाल की खाड़ी में ‘क्रू मॉड्यूल’ को सफलता के साथ उतारने से इसरो के वैज्ञानिक आश्वस्त हुए कि अपने आखिरी चरणों में जब तीन दिवसीय गगनयान मिशन के तहत तीन अंतरिक्ष यात्रियों को 400 किलोमीटर ऊपर पृथ्वी की निचली कक्षा वाले अंतरिक्ष में भेजा जाएगा, तो उन्हें पृथ्वी पर सुरक्षित वापस लाया जा सकेगा। इस सफलता पर इसरो ने कहा कि इससे शेष परीक्षणों और मानवरहित मिशन के लिए आधार तैयार हुआ है, जो गगनयान कार्यक्रम की शुरुआत के लिए जरूरी है। हालांकि अभी जांचे गए क्रू एस्केप सिस्टम का औचित्य उन क्षमताओं का आकलन करना था कि यदि ‘गगनयान’ अभियान की लॉन्चिंग के दौरान उसे प्रक्षेपित करने वाले रॉकेट में बीच रास्ते में कोई गड़बड़ी हो जाती है तो यान में मौजूद अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी पर सुरक्षित वापस लाया जा सके। क्रू एस्केप सिस्टम समेत अभी ऐसे चार परीक्षणों की योजना है, जिनके पश्चात अगले वर्ष 2024 में ‘गगनयान’ का अनमैन्ड मिशन भेजा जाएगा। उसकी सफलता के बाद ही समानव ‘गगनयान’ को लॉन्च करने की योजना है।
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परीक्षणों की कसौटी
गगनयान मिशन के लिए ड्रोग पैराशूट नामक पहला सफल परीक्षण अगस्त में ही हो चुका है। टर्मिनल बैलिस्टिक अनुसंधान प्रयोगशाला, चंडीगढ़ की रेल ट्रैक रॉकेट स्लेज (आरटीआरएस) सुविधा में ड्रोग पैराशूट परिनियोजन परीक्षणों की एक शृंखला सफलतापूर्वक आयोजित की गई थी। इन पैराशूट्स की उपयोगिता यह है कि वापसी के वक्त जमीन पर सुरक्षित लैंडिंग में ये मददगार साबित होंगे। इनकी मदद से क्रू मॉड्यूल की गति नियंत्रित की जा सकती है। क्रू मॉड्यूल को स्थिर करने और पृथ्वी के वायुमंडल में पुन: प्रवेश के दौरान उसके वेग को सुरक्षित स्तर तक कम करने में ड्रोग पैराशूट महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसरो के मुताबिक इस परियोजना के अगले चरणों में टीवी-डी2 मिशन, मानवरहित जी-एक्स ऑर्बिटल (कक्षीय) उड़ान, एकीकृत एयर-ड्रॉप टेस्ट (आईएडीटी) और पैड अबॉर्ट टेस्ट आयोजित किए जाने हैं। इसके उपरांत वर्ष 2024 में गगनयान कैप्सूल की पहली, दूसरी और तीसरी कक्षीय परीक्षण उड़ानें आयोजित कराई जाएंगी। यदि ये परीक्षण सफल रहे तो वर्ष 2025 में परियोजना के अंतिम चरण में ‘गगनयान’ के जरिये तीन भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों 3 दिनों के लिए 400 किलोमीटर ऊपर पृथ्वी की कक्षा में अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। इनमें एक महिला अंतरिक्ष यात्री भी होंगी। इन यात्रियों को व्योममित्र कहा जाएगा। अंतरिक्ष में 5 से 7 दिन व्यतीत करने के बाद क्रू मॉड्यूल के जरिये सभी अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाकर समुद्र में लैंड कराया जाएगा। ‘गगनयान’ मिशन सफल रहा तो अमेरिका, रूस और चीन के बाद ऐसा करने वाला भारत चौथा देश होगा।
दुनिया में जागती नई दिलचस्पी
इस बारे में तथ्य हैं कि सबसे पहले सोवियत संघ (मौजूदा रूस) के यूरी गागरिन 12 अप्रैल, 1961 को अंतरिक्ष में गए थे। उनके बाद 5 मई 1961 को अमेरिका के एलन शेफर्ड और 15 अक्तूबर 2003 को चीनी अंतरिक्ष यात्री यांग लिवेड अंतरिक्ष में पहुंचे थे। हालांकि एक भारतीय अंतरिक्ष यात्री के रूप में राकेश शर्मा पहले ही 3 अप्रैल, 1984 को स्पेस में कदम रख चुके हैं। अंतरिक्ष में पहुंचने के बाद स्पेस स्टेशन- सोल्यूत-7 में सात दिन 21 घंटे और 40 मिनट बिताने के बाद वह पृथ्वी पर वापस लौट आए थे। यूं तो पहले भारतीय और अंतरिक्ष में जाने वाले 128 वें इंसान के रूप में उनका नाम इतिहास में दर्ज है, लेकिन उन्होंने अंतरिक्ष में जाने का यह करिश्मा दो रूसी यात्रियों यूरी माल्यशेव और गेनाडी सट्रेकालोव के साथ सोवियत संघ के रॉकेट सोयूज टी-11 से किया था। इसमें भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी का योगदान नहीं था। यही वजह है कि अब भारत यह कारनामा अपने बलबूते और अपने संसाधनों से करना चाहता है। ध्यान रहे कि ‘गगनयान’ की सफलता चंद्रमा पर भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों के पदार्पण की राह भी खोलेगी। चंद्रमा पर पहुंचना कई मायनों में उल्लेखनीय है क्योंकि पृथ्वी के बाहर इस सबसे नजदीकी अंतरिक्षीय पिंड में पूरी दुनिया की दिलचस्पी नए सिरे से जाग उठी है। असल में, एक दौर था जब अंतरिक्ष संबंधी किसी भी उपलब्धि को दुनिया की दो महाशक्तियों- अमेरिका और सोवियत संघ (मौजूदा रूस) से संबद्ध किया जाता था। लेकिन भारत और उसके पड़ोसी देश चीन ने अंतरिक्ष में ढेर सारे करिश्मों के बल पर दिखा दिया कि एशियाई देश किसी से कमतर नहीं हैं। इधर, जब चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर ने दुनिया में पहली बार सफलतापूर्वक पदार्पण किया, तो साबित हो गया कि अंतरिक्ष के किसी भी मोर्चे की बात हो तो भारत अब पीछे रहने वाला मुल्क नहीं रहा है। वह अब दुनिया के दूसरे देशों को प्रेरणा दे रहा है। बल्कि कह सकते हैं कि अंतरिक्ष के मामले में अब होड़ तो भारत से है।
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अंतरिक्ष के भावी पड़ाव
कुछ मोर्चे ऐसे हैं जो दूसरे मुल्कों से बराबरी करने से ज्यादा इस मायने में महत्वपूर्ण हैं कि उनमें सफल हुए बिना अंतरिक्ष के भावी पड़ावों तक नहीं पहुंचा जा सकता। जैसे चंद्रमा पर मानव का पदार्पण और मंगल ग्रह की यात्रा। यूं तो चंद्रमा पर मानव सभ्यता के कदम करीब 55 साल पहले नील आर्मस्ट्रॉन्ग और एडविन बज़ एल्ड्रिन नामक अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों के रूप में पड़ चुके हैं। अमेरिकी स्पेस एजेंसी- नासा के 6 अपोलो अभियानों के जरिये कुल 12 अंतरिक्ष यात्री चांद पर पहुंच चुके हैं। लेकिन अब अंतरिक्ष कार्यक्रमों को लेकर दुनिया में नई होड़ पैदा हो गई है। यह कई बातों से साबित होता है। जैसे इंसानों को चंद्रमा पर उतारने वाली अमेरिकी स्पेस एजेंसी- नासा एक बार फिर अपने अंतरिक्ष विज्ञानियों को चंद्रमा पर उतारने के लिए नई योजना ‘आर्टेमिस-1’ का आरंभ कर चुकी है। इधर, अचानक रूस भी अंतरिक्ष के मामलों में सक्रिय हो उठा है। यह इससे साबित होता है कि जब चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग होने वाली थी, तो भारत को पछाड़ने के उद्देश्य से रूस ने अपना मिशन लूना-25 रवाना किया, जो जल्दबाजी और आधी-अधूरी तैयारियों के कारण नाकाम साबित हुआ।
स्पेस पर्यटन की नई मंज़िल
गगनयान की तैयारियों और इसकी सफलता को अंतरिक्ष पर्यटन (स्पेस टूरिज्म) की नई संभावनाओं के रूप में भी देखना गलत नहीं होगा। एक बार इसरो अंतरिक्ष में इंसानों को कामयाबी से भेजने में महारत हासिल कर ले, तो बहुत मुमकिन है कि निजी एजेंसियों के गठजोड़ से वह भी अंतरिक्ष पर्यटन का सिलसिला शुरू कर अंतरिक्ष से कमाई का एक नया जरिया बना ले। अभी जहां तक दुनिया में ऐसे करिश्मों की बात है तो अमेरिका की दो निजी स्पेस एजेंसियों- वर्जिन गैलेक्टिक और ब्लू ऑरिजिन के प्रयासों से दो वर्ष पूर्व 2021 में कुछ ऐसे अभियान संचालित हुए थे, जिनसे अंतरिक्ष पर्यटन और इससे होने वाली कमाई का दरवाजा खुलता दिखाई दिया है। जुलाई 2021 में वर्जिन गैलेक्टिक के मालिक रिचर्ड ब्रैन्सन अपने पांच कर्मचारियों के साथ अंतरिक्ष की उपकक्षीय (सब-ऑर्बिटल) उड़ान करने में सफल रहे थे। अमेजॉन के संस्थापक जेफ बेजोस ने भी जुलाई 2021 में अपनी कंपनी ब्लू ऑरिजिन के न्यू शेपर्ड यान से अंतरिक्ष की उड़ान भरी थी। निजी अंतरिक्ष कंपनियों की इन कोशिशों से लगने लगा है कि अंतरिक्ष एक बार फिर इंसान के सपनों की नई मंजिल बन गया है। ब्रैन्सन और बेजोस की कंपनियों की पहलकदमियां नई जरूर हैं, पर अंतरिक्ष की सैर और उसमें निजी कंपनियों की भागीदारी की पहल अरसे से की जा रही है। तीन साल पहले 30 मई 2020 को एक निजी उड़ान की मदद से दो अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) पहुंचे थे। इस उपलब्धि के साथ अमेरिका, कनाडा और दक्षिण अफ्रीका की एक साथ नागरिकता रखने वाले अरबपति एलन मस्क की कंपनी- स्पेसएक्स दुनिया की पहली ऐसी प्राइवेट कंपनी बन गई थी, जो अपने रॉकेट से दो अंतरिक्ष यात्रियों को आईएसएस तक सफलतापूर्वक ले गई थी। बता दें कि 30 मई, 2020 की रात स्पेसएक्स का ताकतवर रॉकेट फॉल्कन-9 स्पेसएक्स ड्रैगन कैप्सूल लेकर कैनेडी स्पेस सेंटर से उड़ा था जिसने 19 घंटे की यात्रा के बाद उसने कैप्सूल को आईएसएस से जोड़ दिया। इस कैप्सूल में रॉबर्ट बेनकेन और डगलस हर्ले नामक दो अंतरिक्ष यात्री थे, जिन्हें एक विशुद्ध निजी उड़ान से अंतरिक्ष में पहुंचने का गौरव मिला। हालांकि यह अभियान आईएसएस से जुड़ा था, लेकिन इससे उम्मीद जगी थी कि जल्दी ही दुनिया के और भी कई लोग अंतरिक्ष पर्यटन का अपना सपना पूरी कर सकेंगे। कह सकते हैं कि गगनयान परियोजना जिस राह है, वह इसरो को भी ऐसी ही एक मंजिल की ओर ले जाने में सफल होगी, जहां भारतीय भी गर्व के साथ कहेंगे कि अब अंतरिक्ष हमारे लिए भी अनुसंधान के साथ-साथ पर्यटन की एक नई जगह है। भूलें नहीं कि कुछ ही माह पहले चंद्रयान-3 के लैंडर के चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पदार्पण के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह उक्ति खूब प्रचलित हुई थी- चंदा मामा टूर के। संभव है कि गगनयान से नजदीकी अंतरिक्ष में हमारे भ्रमण का एक नया ठिकाना बन जाए।
... इसरो का इरादा
चंद्रमा पर तीन और मंगल पर अपना एक मिशन भेजकर भारत और उसका अंतरिक्ष संगठन – इसरो उन देशों की गर्वीली पांत में शामिल है जो सक्रिय रूप से अंतरिक्ष अनुसंधान कर रहे हैं। अपने अभियानों के बल पर हमारे देश ने कई उल्लेखनीय मकसद हासिल किए हैं। दूरसंचार के विस्तार और मौसम की जानकारियां जुटाने से लेकर शत्रु देशों की हरकतों की अंतरिक्ष निगरानी के अलावा अंतरिक्ष में जंग की तैयारी की एक झलक - मिशन शक्ति के रूप में मिसाइल से भारत अपने एक सैटेलाइट को तबाह करते हुए काफी पहले दे चुका है। इसरो दुनिया भर के उपग्रहों को अपने भरोसेमंद रॉकेटों से अंतरिक्ष की कक्षाओं में पहुंचाकर एक रुतबा भी कायम कर चुका है। लेकिन अंतरिक्ष अनुसंधान का काम सिर्फ सरकारी पैसे से न चले- इसके लिए दो साल पहले अक्तूबर 2021 में भारत ने एक उल्लेखनीय पहल की थी। तब देश में अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर काम करने वाली सरकारी और निजी कंपनियों को साथ लाने के लिए ‘इंडियन स्पेस एसोसिएशन’ (इस्पा) की शुरुआत की गई थी, जिसमें इसरो के अलावा टाटा, भारती, और एलएंडटी जैसी बड़ी निजी कंपनियां भी शामिल हैं। इस संगठन (इस्पा) के फौरी उद्देश्यों में अगले कुछ वर्षों में देशी-विदेशी करीब साढ़े छह सौ सैटेलाइट प्रक्षेपित करना है ताकि अंतरिक्ष से कमाई को और विस्तार दिया जा सके। ध्यान रखना होगा कि इस वक्त ग्लोबल स्पेस मार्केट करीब 360 अरब डॉलर की है, जिसमें भारत की हिस्सेदारी सिर्फ दो फीसदी है। इस्पा जैसा संगठन खड़ा करके देश अपनी हिस्सेदारी को 2030 तक नौ से दस फीसदी तक ले जाना चाहता है। साथ ही भारत इस क्षेत्र में अमेरिकी दबदबे को चुनौती देने की हैसियत में आ सकता है।