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परमात्मा से जुड़कर होता है सकारात्मक विस्तार : माता सुदीक्षा

08:03 AM Nov 20, 2024 IST
समालखा में मंगलवार को निरंकारी संत समागम में मंचासीन सतगुरु माता सुदीक्षा। -निस

विनोद लाहोट/निस
समालखा, 19 नवंबर
‘तंग दायरों की तोड़ दीवार, असीम की ओर हो विस्तार’ के संदेश के साथ तीन दिवसीय निरंकारी संत समागम का भक्तिभावपूर्ण वातावरण में सफल समापन हुआ। मंगलवार को निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने 77वें वार्षिक निरंकारी संत समागम के अंतिम दिन अमृतमयी प्रवचनों के माध्यम से दिव्य संदेश दिया। उन्होंने कहा कि परमात्मा असीम है और इससे जुड़ने वाला हर पहलू असीम होता चला जाता है। ब्रह्मज्ञान द्वारा परमात्मा को जानने के उपरांत जब हम इससे जुड़ते हैं तो जीवन के हर क्षेत्र में सकारात्मक विस्तार होता चला जाता है।
सतगुरु माता जी ने अज्ञानता से उत्पन्न भेदभावों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि समाज में जाति, जीवनशैली और निवास स्थान जैसे मुद्दों को लेकर भेदभाव होता है जबकि ब्रह्मज्ञानी संत समदृष्टि के भाव से इन संकीर्णताओं से ऊपर उठकर जीवन जीते हैं। सतगुरु माता जी ने भक्ति में भोले भाव की महत्ता बताते हुए कहा कि परमात्मा भोले भाव से रीझता है। चेतन और सजग रहते हुए भक्त भ्रम और भ्रांतियों से प्रभावित नहीं होते। उन्होंने श्रद्धालुओं से समागम में ग्रहण की गई शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाने का आह्वान किया।
इसके पूर्व समागम समिति के समन्वयक जोगिंदर सुखीजा ने सतगुरु माता एवं परम आदरणीय निरंकारी राजपिता का समस्त साध संगत की ओर से आभार प्रकट किया तथा सभी सरकारी विभागों का धन्यवाद किया जिन्होंने इस पावन संत समागम आयोजन
के लिए अपना महत्वपूर्ण सहयोग दिया।

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समागम में प्रस्तुति देते कलाकार। -निस

बहुभाषी कवि दरबार का आयोजन

निरंकारी संत समागम के तीसरे दिन का मुख्य आकर्षण बहुभाषी कवि दरबार रहा जिसमें देश-विदेश के 19 कवियों ने विस्तार-असीम की ओर विषय पर हिंदी, पंजाबी, मुल्तानी, हरियाणवी और अंग्रेजी भाषाओं में प्रेरणादायक ज्ञानवर्धक रचनाएं प्रस्तुत कीं। इसके अतिरिक्त, बाल कवि दरबार और महिला कवि दरबार जैसे आयोजन भी समागम की विशेषताएं रहीं जिनमें बाल कवियों और कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से भावनाओं को अभिव्यक्त किया।

चार मैदानों में लंगर की व्यवस्था

करीब 650 एकड़ में फैले समागम परिसर में श्रद्धालुओं के लिए चार मैदानों में लंगर सेवा की व्यवस्था की गई। इसमें एक साथ 20 हजार संतों ने प्रसाद ग्रहण किया। दिव्यांग और वयोवृद्धों के लिए विशेष व्यवस्था की गई। पर्यावरण के प्रति जागरूकता रखते हुए भोजन स्टील की थालियों में परोसा गया। लंगर के माध्यम से सारा संसार एक परिवार जैसा नजारा दिखाई दिया जिसमें विभिन्न सांस्कृतिक सभ्यताओं और धार्मिकता से जुड़े श्रद्धालु भक्तों ने एक साथ बैठकर प्रसाद ग्रहण किया।

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