मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

सियासतदान रोटियां सेंक रहे और हाथ भी !

07:05 AM Aug 12, 2023 IST

सहीराम

Advertisement

म से मणिपुर ही क्यों जी, म से मेवात क्यों नहीं? वैसे होने को तो म से मोनू और म से ही मानेसर भी हो सकता है। बहुत मणिपुर-मणिपुर हो रहा था न जी, लो अब मेवात-मेवात करो। कोई बजरंगी सिर्फ गुजरात में ही क्यों हो जी। सो हरियाणा ने भी अपना एक बजरंगी तैयार कर लिया है। वैसे भी जब सब कुछ गुजरात मॉडल पर ही होना है तो यह भी सही। फर्क बहुत ज्यादा नहीं है। वह बाबू बजरंगी और यह बिट्टू बजरंगी। जो लोग कर्नाटक से निराश हो गए, उन्हें अब जाकर हौसला मिला जब जय बजरंग बली के फल प्राप्त हुए। तो जनाब बहुत पिछड़ा समझ रखा था न मेवात को। देख लो अगड़े सब धरे रह गए। बात हो रही है तो बस मेवात की ही हो रही है। वैसे तो गुड़गांव अरे सॉरी गुरुग्राम से अगड़ा भला कोई क्या होगा, उस पर भी देख लो कैसे मेवात छा गया है। कुछ-कुछ इस अंदाज में जैसे डर के काले बादल छाते हैं या संकट की घटाएं घिरती हैं। पहले वह बारिश के पानी से पानी-पानी था, अब वह मेवात के ताप से झुलस रहा है। आग और पानी का ऐसा मेल और कहां देखने को मिलेगा भला!
लोगों को बड़ी शिकायत थी कि हरियाणा बहुत दिन से तपा नहीं है। वैसे तो दूसरी हर विफलता की तरह इसका दोष भी कोरोना के सिर मढ़ा जा सकता है कि साहब महामारी आ गयी वरना तो इस शिकायत का मौका बिल्कुल नहीं दिया जाता। लोगों ने देखा कि दूर मणिपुर तो तप रहा है, पर हरियाणा बारिश में नहा रहा है। ऐसे में हरियाणा वालों को वह कहावत याद आयी कि पहाड़ जलता तो दिख जाता है, पांवों जलते न दिखते। उन्होंने अपने पांव देखे तो वे कीचड़ में सने थे। सो उन्होंने अपने पांवों के पास ही आग जला ली। फिर उसे यह शिकायत भी दूर करनी थी कि हरियाणा बहुत दिन से तपा नहीं है। पहले तो बड़ी जल्दी-जल्दी तप जाता था। कभी रामपाल जैसे किसी संत की वाणी से और कभी राम-रहीम की कहानी से। फिर जब जाट आंदोलन में तपा तो ऐसा तपा कि उसके ताप में लोग अभी तक हाथ सेंक रहे हैं। लो अब शिकायत दूर हो गयी न। अब इस आग में रोटियां भी सेंकी जा सकती हैं और हाथ भी सेंके जा सकते हैं। बुलडोजर तो खैर आ ही गया है।
गुजरात की तरह ही बुलडोजर भी एक मॉडल है। मोदी-योगी का नारा एक साथ इसी तरह लग सकता है जब यह दोनों मॉडल साथ-साथ चलें। प्रवासी मजदूरों का पलायन शुरू हो गया है। तो गुजरात और बुलडोजर मॉडल ही नहीं, कोरोना का दौर भी याद आ गया।

Advertisement
Advertisement