राजनीतिक हसरत
अठारह सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून में राजकुमार सिंह का लेख ‘राजा पर राजनीति के अनुत्तरित प्रश्न’ महापुरुषों की गरिमामय विरासत पर राजनीतिक कब्जेदारी की हकीकत का चित्र दर्शाता है। लेख यह सोचने पर विवश करता है कि राजनीतिक दल कैसे एक महान स्वतंत्रता सेनानी के बड़े कद को जातिवादी सांचे में ढालकर संकुचित करना चाहते हैं। लेकिन एक अच्छी बात जरूर है कि नई पीढ़ी के लोग राजा महेंद्र प्रताप सिंह के योगदान से परिचित हुए। ऐसे ही प्रयास दूसरे भूले-बिसरे स्वतंत्रता सेनानियों को नई पीढ़ी से अवगत कराने के लिये भी होने चाहिए। लेख राजनीति का संकुचित चेहरा दिखाने में कामयाब रहा है।
मधुसूदन शर्मा, रुड़की, हरिद्वार
रिश्तों की अहमियत
चौदह सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून में क्षमा शर्मा का ‘असहनशीलता के दौर में रिश्तों का कत्ल’ संतानों में बढ़ती हिंसक प्रवृत्ति की ओर ध्यान आकर्षित करने वाला था। बच्चों में ऑनलाइन शिक्षा के बहाने मोबाइल से प्रेरित हिंसक फिल्मी कार्टून, धारावाहिक किशोर काल में पथभ्रष्ट करते हैं। माता-पिता को युवा काल की भावनाओं, रुचियों काे व उनकी मानसिकता को स्नेहिल मित्रवत् बर्ताव करते हुए समझना चाहिए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल