आर्थिक बदहाली से पाक में राजनीतिक अस्थिरता
जी. पार्थसारथी
पाकिस्तान की उच्च न्यायपालिका की सत्यनिष्ठा और विश्वसनीयता को लेकर अक्सर सवाल उठते रहते हैं। लेकिन 26 जुलाई को सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब विधानसभा अध्यक्ष के दिए निर्णय, जो जाहिर तौर पर गैरकानूनी था, पर तेजी से काम किया है। विधानसभा अध्यक्ष दोस्त मोहम्मद मज़ारी द्वारा कुछ दिन पहले दिए गए उस फैसले को उलट दिया जिसमें उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ के बेटे हमज़ा शहबाज़ को नए मुख्यमंत्री के लिए हुए मतदान में विजेता घोषित किया। सदन अध्यक्ष ने घपलेबाजी कर कहा कि हमज़ा को 179 वोट तो विरोधी उम्मीदवार और मुस्लिम लीग के वरिष्ठ नेता चौधरी परवेज़ इलाही को 176 मत मिले। जबकि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा परवेज़ इलाही को विजेता घोषित करने का फैसला ऐसे वक्त पर आया है जब जरूरत की वस्तुओं जैसे कि गेहूं, सब्जियाें, चीनी और मांस की आसमान छूती कीमतों की वजह से पाकिस्तान भर में अशांति बढ़ रही है। इस स्थिति के लिए पूरा देश शहबाज़ शरीफ के नेतृत्व वाली संघीय सरकार को जिम्मेवार मानता है।
यह घटनाक्रम ऐसे वक्त पर है जब इमरान खान फिर से लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं और लोगों का गुस्सा यह कहकर भुना रहे हैं कि शहबाज़ सरकार ने देश को नीचे गिराया है। जबकि आर्थिक नीतियों में शहबाज़ शरीफ की कारगुज़ारी इमरान खान से ज्यादा बढ़िया रही है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के बारे में सबसे अहम यह है कि आम आदमी की जिंदगी खाद्य पदार्थों की कीमतों और छत्ता फाड़ने को उद्यत मुद्रा स्फीति की वजह से कष्टकारी होती जा रही है। निचले और मध्यम वर्ग के लिए खाने-पीने की वस्तुएं, परिवहन और बिजली पहुंच से बाहर होती जा रही है। आधिकारिक तौर पर माना गया है कि मुद्रा स्फीति की दर 21.3 फीसदी है।
पाकिस्तान को लंबे समय से यकीन है कि वह अपना कर्ज चुकाने में अमेरिका पर प्रभाव डाल सकेगा, जैसा कि विगत में शीत युद्ध और अफगानिस्तान में अमेरिकी फौजों की उपस्थिति के दौरान अमेरिका करता रहा। अमेरिका और उसके सहयोगी हालांकि इस खेल को अब समझ चुके हैं। पाकिस्तान का बाहरी कर्ज तेजी से बढ़ रहा है वहीं विदेशी मुद्रा भंडार एकदम घटकर 10 बिलियन डॉलर के आसपास रह गया है। बेशक पाकिस्तान खुद को चीन का सदाबहार दोस्त कहता आया है परंतु चीनी किसी को कुछ भी मुफ्त में नहीं देते। हालांकि पाकिस्तान को चीन से घटी दरों पर हथियार मिलने जारी हैं। लेकिन शी जिनपिंग का चीन जो कुछ देता है उसकी कीमत जरूर वसूलता है। पाकिस्तान को याद रखना चाहिए कि श्रीलंका को हम्बनतोता बंदरगाह के निर्माण कार्य के लिए उठाया कर्ज न चुका पाने की एवज में उसका नियंत्रण चीन को सौंपना पड़ा है। बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह के विकास या चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा बनाने के लिए उठाया चीनी ऋण अदा न कर पाने की सूरत में यही कुछ हो सकता है। बेशक फिलहाल यह होता दिखाई नहीं दे रहा। आखिरकार चीन की भारत की सामरिक घेराबंदी करने वाली योजना में पाकिस्तान महत्वपूर्ण साझेदार है।
पाकिस्तान को लंबे समय से यकीन है कि वह बड़ी ताकतों से जुड़कर अपने बजट को संतुलित कर पाएगा। वह दशकों तक चीन और अमेरिका का सहयोगी मुल्क रहा है। हाल ही में चीन ने पाकिस्तान को उबारने के लिए 2.3 बिलियन डॉलर का कर्ज दिया है। पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय कार्यबल द्वारा लगाए प्रतिबंध हटवाने की कोशिश में चीन पूरी तरह साथ दे रहा है। इसी बीच चीन की इस किस्म की हरकतों का जवाब देने के लिए भारत विएतनाम, फिलीपींस और इंडोनेशिया को ब्रह्मोस मिसाइलें मुहैया करवा रहा है, जिन्हें अपनी जलीय सीमाओं में जब-तब चीनी युद्धक पोतों के अतिक्रमण का सामना करना पड़ता है। जाहिर है चीन का अगला कदम पाकिस्तान से होकर अफगानिस्तान पहुंचने का गलियारा बनाना होगा ताकि अफगानिस्तान की खनिज और धातु रूपी अकूत प्राकृतिक संपदा का दोहन किया जा सके।
हाल के घटनाक्रम को लेकर इमरान खान उत्साहित हैं, जिससे उन्हें लगता है कि सत्ता में वापसी की राह प्रशस्त हो रही है। पाकिस्तान के सबसे ज्यादा आबादी वाले सूबे पंजाब में हालिया उप-चुनावों के परिणाम संकेत देते हैं कि इमरान खान राष्ट्रीय स्वीकार्यता की लहर पर सवार हैं। आम चुनाव अक्तूबर 2023 में होने हैं किंतु इस साल नवम्बर माह में नियत नए सेनाध्यक्ष की नियुक्ति भी इतनी ही महत्वपूर्ण है। वह सेना प्रमुख, जो अपने पूर्ववर्तियों की भांति, सरकार, संसद और यहां तक कि न्यायपालिका पर बहुत प्रभाव रखने वाला होगा। इमरान खान अपनी पसंद के जिस ले. जनरल फैज हमीद को अगला सेनाध्यक्ष देखना चाहते हैं वह फिलहाल पेशावर स्थित सेना कोर के कमांडर हैं और उन्होंने आईएसआई प्रमुख रहते हुए इमरान खान की वफादारी से सेवा की है। जबकि सेनाध्यक्ष बनने की पात्रता के लिए मौजूदा ले़ जनरलों की वरीयता सूची में फैज़ हमीद दसवें नंबर पर हैं।
अगले सेनाध्यक्ष की नियुक्ति में इमरान खान अपनी निर्णायक भूमिका चाहेंगे। उन्हें निजी तौर पर सेनाध्यक्ष के प्रभाव और ताकत का अनुभव मौजूदा जनरल बाजवा से हो चुका है, जब उन्हें सत्ता से गैर-रस्मी ढंग से हटा दिया गया था। इसलिए उनकी मांग है कि शहबाज शरीफ को जल्द ही नहीं बल्कि फौरन हटाकर समय-पूर्व आम चुनाव करवाए जाएं। जनरल बाजवा 29 नवंबर तक पद पर बने रहेंगे। उनका जानशीन कौन होगा इसकी सिफारिश उन्हें करनी है। अगले साल अक्तूबर माह में नियत आम चुनाव होने तक इमरान खान अपना शोर जारी रखे रहेंगे, हो सकता है ये चुनाव कुछ महीने पहले हो जाएं।
भारत को दक्षतापूर्वक आगे देखना होगा कि पाकिस्तान पर आतंकवाद को समर्थन बंद करने के लिए लेकर जो दबाव है, वह जारी रहे। यह अतंर्राष्ट्रीय वित्तीय कार्यबल का दबाव ही था जिससे पाकिस्तान को लश्कर-ए-तैयबा प्रमुख हाफिज़ मोहम्मद सईद पर कार्रवाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा। लेकिन वहीं अन्य आतंकी सरगना जैसे कि जैश-ए-मोहम्मद का मौलाना मसूद अज़हर, जो इंडियन एअरलाइन्स की उड़ान आईसी-814 और उसके बाद अनेक आतंकी हमलों का मुख्य षड्यंत्रकारी था, वह अछूता है। चीन ने भी साफ कर दिया है कि वह प्रतिबंध हटवाने के पक्ष में है ताकि पाकिस्तान की हरकतों और नीतियों पर अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय कार्यबल की कड़ी निगरानी खत्म हो सके।
नि:संदेह, यदि भारत विरोधी सोच वाले राजनीतिक दल की वापसी सत्ता में हुई तो पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद नए आयाम ले सकता है। यह इसलिए साफ है क्योंकि वर्तमान सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा को यकीन है कि वे काबीना मंत्रियों से ज्यादा काबिल हैं तो उन्होंने अमेरिका के उप विदेश मंत्री वेंडी शर्मन को फोन करके कहा कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से पाकिस्तान के लिए धन जारी करने में मदद करें, जिसकी पाकिस्तान को सख्त जरूरत है। हालांकि इमरान खान ने स्पष्ट कर दिया है कि उनका नजरिया आईएसआई के रिवायती दृष्टिकोण से अलहदा नहीं है। इमरान खान और बाइडेन प्रशासन के बीच स्नेह अभी भी पहले जितना है। लेकिन यदि इमरान खान दोबारा सत्तासीन हुए तो अंतर-सीमा आतंकवाद और भारत से तनाव बढ़ाने को कोई कोर-कसर नहीं रखेंगे।
लेखक पूर्व वरिष्ठ राजनयिक हैं।