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जाति के बंधनों से अलग हैं गुरुग्राम जिले के राजनीतिक समीकरण

07:06 AM Sep 25, 2024 IST

* बनिया व पंजाबी के अलावा जाट भी बनते रहे विधायक, राजपूत-यादवों का भी अपना प्रभाव

* तावड़ू से अलग होकर अस्तित्व में आई सोहना सीट मुस्लिम बाहुल्य, बनते-बिगड़ते हैं समीकरण

दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
गुरुग्राम, 24 सितंबर
राष्ट्रीय राजधानी – नई दिल्ली से सटे गुरुग्राम जिला के राजनीतिक हालात प्रदेश के बाकी हिस्से से एकदम अलग हैं। यह ऐसा इलाका है, जहां जातिगत समीकरण काम नहीं करते। जातियों के बंधन में बंधने की बजाय यहां का मतदाता विकास और विजन के नाम पर वोट डालना पसंद करता है। जिले के चारों हलकों – गुरुग्राम, बादशाहपुर, सोहना और पटौदी को शहरी क्षेत्र कहा जाता है। इनमें पटौदी अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। बाकी तीन सीटों पर अलग-अलग जातियों के नेता विधायक बनते रहे हैं। प्रदेश में बड़ी संख्या में ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं, जहां विधायकों का चयन जाति के आधार पर होता है। इससे इत्तर गुरुग्राम में स्थानीय मुद्दों को वोटर तवज्जो देते हैं। शहरी क्षेत्र होने की वजह से इस एरिया में मतदान प्रतिशत भी कम रहता है। बात अगर गुरुग्राम की सीट की करें तो हरियाणा विधानसभा के पहले यानी 1967 के चुनावों में भारतीय जनसंघ के प्रताप सिंह ठाकरान ने जीत हासिल की। वे जाट थे। इसके बाद 1968 और 1972 में कांग्रेस टिकट पर महाबीर सिंह ने लगातार दो चुनाव जीते।
इस बार बादशाहपुर सीट से भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ रहे राव नरबीर सिंह के पिता महाबीर सिंह हरियाणा सरकार में ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर भी रहे। 1977 में प्रताप सिंह ठाकरान ने फिर से जीत हासिल की। 1982 के चुनावों में पंजाबी समुदाय से कांग्रेस टिकट पर धर्मबीर सिंह गाबा ने चुनाव जीता और विधानसभा पहुंचे। इसके बाद 1987 में वैश्य समुदाय के सीता राम सिंगला भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर विधायक बने। धर्मबीर सिंह गाबा ने 1991 में फिर से जीत हासिल की।
गाबा 1996 और 2005 में भी कांग्रेस टिकट पर गुरुग्राम से विधायक बने। वहीं 2000 में जाट बिरादरी के गोपीचंद गहलोत ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीता। वे चौटाला सरकार में विधानसभा के डिप्टी स्पीकर भी रहे। 2009 में जाट समुदाय के लिए सुखबीर सिंह कटारिया ने भी निर्दलीय चुनाव जीता और वे हुड्डा सरकार में राज्य मंत्री रहे। 2014 में भाजपा टिकट पर उमेश अग्रवाल और 2019 में सुधीर सिंगला भाजपा के विधायक बने। इस बार भाजपा ने गुरुग्राम सीट पर ब्राह्मण कार्ड खेलते हुए मुकेश शर्मा को टिकट दिया है।
गुरुग्राम को हाई-राइज बिल्डिंग्स के लिए भी जाना जाता है। आसमान छूती इमारतें इस शहर की शान तो बढ़ाती हैं, लेकिन बढ़ती आबादी की वजह से मूलभूत इंफ्रास्ट्रक्चर का भी दम फूल रहा है। जलापूर्ति इस इलाके की सबसे बड़ी समस्या है। कई इलाकों से यह शिकायत आती है कि दूषित जलापूर्ति हो रही है। वहीं सीवरेज ओवरफ्लो होना भी बड़ी परेशानी का सबब यहां के लोगों के लिए बना रहता है। शहर की मुख्य सड़कों को छोड़ दें तो पुराने शहर व साथ लगते कस्बों एवं गांवों की सड़कों की हालत सही नहीं है।

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गुरुग्राम से निकला बादशाहपुर

2008 के परिसीमन में बादशाहपुर नया विधानसभा क्षेत्र बना। गुरुग्राम और तावड़ू सीट के इलाकों को जोड़कर यह हलका बनाया गया। इस सीट पर यादव व जाट समुदाय का दबदबा देखने को मिल रहा है। 2009 के पहले चुनाव में बादशाहपुर से कांग्रेस टिकट पर धर्मपाल सिंह यादव ने जीत हासिल की। इसके बाद 2014 में भाजपा टिकट पर राव नरबीर सिंह विधायक बने और वे मनोहर सरकार में पीडब्ल्यूडी मंत्री रहे। 2019 में उनका टिकट काटकर भाजपा ने मनीष यादव पर दांव खेला। मनीष यादव को निर्दलीय प्रत्याशी राकेश दौलताबाद से चुनाव में पटकनी दी। राकेश दौलताबाद जाट समुदाय से आते थे।

तावड़ू से बना सोहना हलका

2008 के परिसीमन से पहले तक तावड़ू हलका हुआ करता था। नये परिसीमन में तावड़ू को खत्म करके सोहना नई सीट बना दी। 1967 में भारतीय जनसंघ की टिकट पर तावड़ू ने पहली बार प्रताप सिंह ठाकरान विधायक बने। उन्होंने दो सीटों से एक साथ चुनाव लड़ा था और दोनों पर जीत हासिल की थी। 1968 और 1972 में तावड़ू से गुर्जर बिरादरी के कन्हैया लाल ने कांग्रेस टिकट पर लगातार दो चुनाव जीते। 1977 में राजपूत समाज के विजय पाल सिंह ने जनता पार्टी की टिकट पर जीत हासिल की। इसके बाद 1982 में राव नरबीर सिंह के चाचा विजय वीर सिंह ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीत हासिल की। 1987 में राव धर्मपाल ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीता और 1991 में वे कांग्रेस टिकट पर विधायक बने। 1996 में राव नरबीर सिंह ने चौ. बंसीलाल की हरियाणा विकास पार्टी ने जीत दर्ज की। 2000 में राव धर्मपाल फिर से विधायक बने। 2005 के चुनावों में सुखबीर सिंह जौनपुरिया यानी गुर्जर बिरादरी के नेता ने निर्दलीय विधायक के तौर पर तावड़ू का प्रतिनिधित्व किया। 2009 में जाट समुदाय के धर्मबीर सिंह सोहना से विधायक बने। वे वर्तमान में भिवानी-महेंद्रगढ़ से भाजपा के लगातार तीसरी बार सांसद हैं। 2014 में गुर्जर समाज के तेजपाल तंवर और 2019 में राजपूत बिरादरी के संजय सिंह ने सोहना ने जीत हासिल की।

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इनका समाधान जरूरी

जलनिकासी

दुनिया के नक्शे पर अपनी अलग पहचान रखने वाले साइबर सिटी में जल निकासी की समस्या आज भी बनी हुई है। बारिश के दिनों में पूरा शहर जाम हो जाता है। जलभराव की वजह से लोगों का घर से निकलना मुश्किल हो जाता है। घंटों के जाम लगते हैं। यह ऐसी समस्या है, जिसे कई बाद नेशनल मीडिया भी उठा चुका है। बेशक, इसके लिए कई प्रोजेक्ट‍्स भी बने लेकिन समस्या दूर नहीं हो पाई। ऐसा भी नहीं है कि यह समस्या नई है। बरसों से चली आ रही है। पूर्व सरकारों के समय भी इस पर ध्यान नहीं दिया गया।

कूड़ा-कचरा

कहने को तो राज्य की मौजूदा भाजपा सरकार ने गुरुग्राम को साफ-सुथरा बनाने के बड़े दावे किए लेकिन इस शहर की सफाई में कोताही ही देखने को मिली। गुरुग्राम नगर निगम के अलावा गुरुग्राम मेट्रोपोलिटन डेवलेपमेंट अथॉरिटी ने भी कूड़े की समस्या से निपटने के लिए मोटा पैसा खर्च किया लेकिन शहर साफ नहीं हो पाया। इको ग्रीन नामक कंपनी पर बड़े स्तर पर गोलमाल करने के आरोप भी लगे। यहां के स्थानीय प्रतिनिधियों के अलावा सांसद व विधायकों की शिकायत के बाद भी कंपनी को पेमेंट होती रही। टेंडर में भी गड़बड़ करने के आरोप खुद केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने लगाए। हालांकि बाद में नायब सरकार ने कंपनी को ब्लैक लिस्ट किया लेकिन इस समस्या का हल नहीं निकल पाया।

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