मासूमाना इज़हार की कवयित्री
मख़फ़ी अफ़ग़ानिस्तान के प्रांत बदख़्शां के फैज़ाबाद नाम की जगह पर पैदा हुई। इनके पिता मीर मोहम्मद शाह बदख़्शी उस दौर के बदख़्शां के अमीरों में गिने जाते थे। शुरू में मख़फ़ी ने पिता की संगत में रह इल्म व हुनर की तरबियत ली। बाद में भाषा और साहित्य के साथ धार्मिक शिक्षा हासिल की। बहुत कम समय में मख़फ़ी ने शायरी में नाम पैदा कर लिया। मख़फ़ी की उसी दौर की एक शायरा महज़ूबा हरवी के साथ दोस्ती और हमदर्दी थी। दोनों के बीच ख़त व किताबत भी थी जिसमें वह दर्दे दिल कह लेती थी। महज़ूबा के दिल में मख़फ़ी बदख़्शां के लिए बहुत प्यार और इज़्ज़त थी। मख़फ़ी की कई ग़ज़लें महज़ूबा ने अपने दीवान में सम्मान की ख़ातिर शामिल की थी।
मख़फ़ी बदख़्शी
तुम्हारा ख़त जो आया सफेद चादर पर आहिस्ता-आहिस्ता
जैसे चमन के चारों तरफ़ उग आया सब्ज़ा आहिस्ता-आहिस्ता
देखो तो बाग़बान उसके कहे लफ़्ज़ फूलों में ढल गये
सुबह की हवा बाग के कान में कहती है कुछ आहिस्ता-आहिस्ता
मेरी जान फ़िदा हो क़ासिद तुम पर जो मेरा ख़त पहुंचाया वहां तक
धीरे-धीरे करके मेरा हाल भी कह सुनाया आहिस्ता-आहिस्ता।
अनुवाद : नासिरा शर्मा