अनुभवों के संग जीवन की तस्वीर
पुस्तक समीक्षा
केवल तिवारी
पुस्तक : मेरी जि़न्दगी के अनुभव लेखक : प्रवीन विज प्रकाशक : साहित्य सेवा, चंडीगढ़ पृष्ठ : 248 मूल्य : रु.400.
जीवन के अनेक अनुभव ऐसे होते हैं जिनके सबक संभवत: दूसरों के काम आ जायें। इन अनुभवों को अगर कलमबद्ध किया जाए तो वे और महत्वपूर्ण हो जाते हैं। मुद्दा यह है कि अनुभव किसके हैं और उन्हें किस तरह से प्रस्तुत किया गया है। अनुभवों के संबंध में एक किताब आई है ‘मेरी जिंदगी के अनुभव।’ लेखक हैं प्रवीन विज। बैंक की नौकरी से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वाले प्रवीन विज बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। पुस्तक से स्पष्ट है कि उन्होंने कविता रचना में भी कलम चलाई है। किताब में उन्होंने बेशक लिखा है, एक बैंकर की आत्मकथा, लेकिन जीवन के विविध रंग इसमें शामिल हैं। वैसे विज अगर किसी एक मुद्दे पर किताब को फोकस करते तो संभवत: पाठकों को ज्यादा फायदा होता, लेकिन आत्मकथा के रूप में लिखी गयी पुस्तक का विविध रूपों में फैलाव स्वाभाविक ही है। चूंकि निजी अनुभवों की यह पुस्तक है, इसलिए जाहिर है शैली आत्मकथात्मक ही होनी है।
पुस्तक में रहस्य-रोमांच के भी कुछ हिस्से हैं। कोई इन्हें अंध-विश्वास से जोड़ सकता है, लेकिन हम-आप सभी के जीवन में कुछ ऐसे किस्से जुड़े हैं जिनके रहस्यों से शायद ही कभी पर्दा उठता हो। आत्माएं फेंकती थी पत्थर, तंत्र, मंत्र का रहस्य जैसे कुछ लेख ऐसे ही रहस्यों पर आधारित हैं। इसके लिए लेखक ने बाकायदा एक सेगमेंट तय किया है। कुल 28 शीर्षकों से युक्त लेखों के इस पुस्तक में नोटबंदी के किंतु-परंतु से लेकर नौकरी के दौरान अलग-अलग शहरों के अनुभवों को समेटा गया है। बचपन की यादें हों या बैंक में नौकरी का दौर, बैंक कर्मियों की समस्याएं हों या हिंदी दिवस कार्यक्रम की बातें या फिर तस्वीरों के जरिये कुछ कहने, बताने की कोशिश। इस पुस्तक में अनेक पहलुओं को लेखक ने उजागर किया है। कुछ जगह प्रूफ संबंधी त्रुटियां रह गयी हैं।
खिलखिलाते बचपन की स्मृतियां
सरोज गुप्ता
‘जो मन की तहों में छुपा कर रखे बचपन को थोड़े-थोड़े अंतराल पर धूप-हवा दिखलाते रहते हैं, उन्हें पचपन में भी बचपन का अहसास होता है’ इन पंक्तियों के माध्यम से अपनी बात कहने वाली कवयित्री डॉ. अंजु दुआ जैमिनी के लघुकविता संग्रह में 10-10 पंक्तियों से सुसज्जित 101 कविताएं हैं जो 10 खंडों के अंतर्गत हैं।
मुक्तछंद की इन कविताओं को पढ़ते हुए उनके बचपन के आंगन में फुदक रही स्मृतियां चलचित्र की भांति आंखों के समक्ष आ जाती हैं। आज से कुछ वर्ष पहले विद्यालयों में कैसा वातावरण था, उस समय बच्चे कौन से खेल खेलते थे, वे कैसे त्योहार मनाते थे, संयुक्त परिवार में क्या सीखते थे, किस-किस का प्यार उन्हें मिलता था, आंगन में घर के सदस्य कैसे बैठकर सुख-दुख साझा करते थे, ददिहाल-ननिहाल का क्या आकर्षण होता था और बच्चों के माता-पिता के साथ कैसे संबंध होते थे, ये सभी बातें कविताओं में बुनी गई हैं।
भोला, निडर और हंसता-खिलखिलाता बचपन तथा बचपन की स्मृतियां इन कविताओं में निहित हैं। बच्चों की मासूम शरारतें कविताओं के वातायन से झांकती प्रतीत हुई हैं। पिट्ठू गर्म, खो-खो, कबड्डी, चिड़िया उड़, पकड़न-पकड़ाई जैसे खेलों का मज़ा ही कुछ और था। चंपक, चंदामामा, नंदन जैसी पत्रिकाएं बच्चे खूब पढ़ते थे। इन कविताओं के माध्यम से पहले और आज के बचपन का तुलनात्मक चित्र सहज प्रस्तुत हुआ है। इन्हें पढ़ कर मन में विचार आता है कि काश! वह समय फिर से आ जाए।
इनमें मुल्तानी, हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी भाषा के शब्दों का प्रयोग किया है। कविताओं में अलंकार स्वतः प्रस्फुटित हुए हैं और कोमल भावनाएं प्रवाहित हुई हैं। बारिश की बूंदों-सी बरसती निर्मल भावनाएं कविताओं के रूप में तन-मन को सराबोर करने में पूरी तरह खरी उतरी हैं। पुस्तक की कीमत अखरती है।
अमृता के सृजन को नई ऊंचाई
पुस्तक : अमृता शेरगिल/ पेंटिंग में कविता/ हाइकु रचनाकार : डॉ. नीलम वर्मा प्रकाशक : चित्रकूट आर्ट गैलरी, प्रेसीडेन्सी कोर्ट, कोलकत्ता पृष्ठ : 72 मूल्य : रु. 695.
भारतीय आधुनिक कला जगत की सशक्त हस्ताक्षर रहीं अमृता शेरगिल ने अल्पायु में अपना जो सृजन संसार रचा, उसके रंग आज भी जीवंत हैं। गहनता लिए आंखों की अभिव्यक्ति आज भी उनकी आकृतियों को विशिष्टता प्रदान करती हैं। यदि उन आकृतियों के अबोल अहसासों को शब्द मिलें तो यह मणिकंचन संयोग ही होगा। यह सुखद संयोग रचा संवेदनशील रचनाकार और पेशे से चिकित्सक डॉ. नीलम वर्मा ने। उन्होंने गहनता लिए ये शब्द मूलरूप से जापानी काव्य विधा हाइकु में उकेरे हैं। यह विधा कम शब्दों में अधिक बयां करने के लिए जानी जाती है।
‘अमृता शेरगिल : पेंटिंग में कविता’ पुस्तक काफी टेबल बुक रूप में पाठकों के हाथ में है और इसमें चित्रों के साथ शब्दों के माध्यम से जीवंत बिंब उकेरे गए हैं। जिसमें मानव जीवन में आशा-निराशा, सुख-दुख समेत विभिन्न भावों के चटख रंग उभरे हैं। हर चित्र के साथ हाइकु में सघन अभिव्यक्ति पाठकों का ध्यान खींचती है। रचनाकार ने चित्रों की आत्मा को महसूस करते हुए शब्द-चित्र उकेरे हैं। अमृता के चित्रों में जो गहन उदासी-सी नजर आती है, वह शब्दों में शिद्दत के साथ महसूस होती है।
दरअसल, अमृता के चित्रों में परंपरागत भारतीय कला के साथ पाश्चात्य कला का भी गहरा प्रभाव रहा है। जो उनके रचनाकर्म को विशिष्टता प्रदान करती हैं। डॉ. नीलम के रचे हाइकु अमृता की कला के साथ न्याय करती नजर आती हैं। उनके इस अभिनव सृजन कार्य को पूर्णता प्रदान करने में कवयित्री अलका कंसारा का भी योगदान रहा है।
अ.नै.