मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

नियमित संवाद से निखरता है व्यक्तित्व

07:58 AM Aug 07, 2023 IST
A fan of Tunisia watches his mobile phone prior to the World Cup group D soccer match between Tunisia and Australia at the Al Janoub Stadium in Al Wakrah, Qatar, Saturday, Nov. 26, 2022. AP/PTI(AP11_26_2022_000129A)

रेनू सैनी

Advertisement

आज शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो मोबाइल के बिना अपने जीवन की कल्पना कर पाए। लेकिन किसी भी चीज का आविष्कार तभी तक सुकून देता है जब वह तन-मन को शांति प्रदान करे। यदि यह शांति अशांति में बदल जाए तो सुख-चैन, जीना सब कुछ दुष्कर हो जाता है। मोबाइल ने जहां जीवन को बेहद सुगम बना दिया है, वहीं इसने संबंधों और भावनाओं को भी उपेक्षित कर दिया है। यही कारण है कि आज लगभग परिवार में कई सदस्य ऐसे हैं जिन्हें फबिंग की आदत है। आप यही सोच रहे होंगे न कि भला यह फबिंग क्या बला है? फबिंग की आदत मोबाइल से जुड़ी हुई है। यह एक ऐसा शब्द है जो र्स्माटफोन की लत से जुड़ा है। वे लोग जो अपने मित्रों, परिवार और समाज में बैठे लोगों के बीच में भी फोन पर ज्यादा ध्यान देते हैं, यह शब्द उनके लिए प्रयोग किया जाता है।
दरअसल, फबिंग शब्द फोन और स्नबिंग शब्दों को मिलाकर बनाया गया है। इसका अर्थ किसी व्यक्ति द्वारा किसी इंसान से बातचीत करने के बजाय उसके समक्ष अपने फोन में ज्यादा लगे रहने से है। या आपके साथ ऐसा कभी होता है कि घर में कोई महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा चल रही है, कक्षा में महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाया जा रहा है, कार्यालय में जरूरी फाइल पर विमर्श हो रहा है और आप चुपके-चुपके अपने फोन पर ध्यान गड़ाए हुए हैं।
एक सर्वे के अनुसार, ‘लगभग 32 प्रतिशत लोग दिन में कम से कम तीन से चार बार फबिंग करते हैं।’ फबिंग की यह आदत जहां व्यक्तियों को सामान्य वार्तालाप से काट देती है, वहीं उन्हें अकेलेपन का शिकार भी बना देती है। धीरे-धीरे आसपास के लोगों को यही लगने लगता है कि मोबाइल में लगे व्यक्ति को मोबाइल की सूचनाओं के अलावा जीवंत व्यक्ति की बातों और कार्यों में कोई दिलचस्पी नहीं है। इसलिए वे उससे दूर रहने लगते हैं। फबिंग में लगे व्यक्ति को यह बात तब समझ आती है जब सर से पानी गुजर चुका होता है लेकिन अफसोस कई बार फिर से पुराने संबंधों में पहले जैसी गर्मजोशी लाना मुश्किल हो जाता है। इसलिए समय रहते फबिंग की लत से स्वयं को बचाना ही श्रेष्ठ उपाय है। आखिर यह पता कैसे चले कि व्यक्ति को फबिंग की लत है। यदि किसी भी व्यक्ति के अंदर निम्न लक्षण नज़र आएं तो समझ लीजिए कि उसके अंदर फबिंग की लत घर कर चुकी है :-
परिवार, मित्रों या संबंधियों के बीच बैठकर भोजन करते समय स्मार्टफोन का बार-बार इस्तेमाल करना।
किसी व्यक्ति, मीटिंग या समारोह में होने पर भी बार-बार फोन चेक करना।
लगभग हर जगह यहां तक कि बाथरूम में भी फोन को अपने साथ रखना।
रात्रि को बिस्तर में जाते वक्त तब तक फोन में लगे रहना जब तक नींद न आने लगे।
पढ़ते-लिखते या ऑफिस के जरूरी कार्य करते समय भी बार-बार फोन चेक करना।
उपरोक्त लक्षण फबिंग की आदत को पुख्ता करते हैं। अच्छी आदतें जहां जीवन को सुगम बना देती हैं, वहीं बुरी आदतें व्यक्ति के जीवन को दुर्गम बना देती हैं। ये बुरी आदतें धीरे-धीरे लत में बदल जाती हैं। फबिंग शब्द का प्रयोग पहले पश्चिमी देशों में उनके लिए इस्तेमाल किया जाता था जो स्मार्टफोन के लिए अपने पार्टनर को नज़रअंदाज करते थे। इस शब्द को वर्ष 2012 में ऑस्ट्रेलिया की विज्ञापन एंजेसी मैक्केन ने गढ़ा था। उन्होंने शब्दकोश की बिक्री बढ़ाने के लिए शुरू किए एक कैम्पेन में इसका प्रयोग किया था और कहा था, ‘स्टॉफ फबिंग।’
फबिंग की ये आदत धीरे-धीरे व्यक्ति के अंदर मानसिक विकार भर देती है। ऐसे लोग अकेलेपन, अवसाद, चिंता और नींद न आने की समस्या से ग्रस्त हो सकते हैं। प्रारंभ में अकेलापन, अवसाद, चिंता और नींद महसूस नहीं होते लेकिन जब ये व्यक्ति की प्रतिदिन की दिनचर्या का अंग बन जाते हैं तो जीना मुश्किल हो जाता है।
अक्सर लोग एक-दूसरे से कहते हुए भी मिल जाते हैं कि मोबाइल एक ऐसा डिवाइस है जो व्यक्ति को अकेलापन महसूस नहीं होने देता। आज मोबाइल के अंदर अनेक ऐसे लुभावने एप हैं जिन पर छोटे-छोटे वीडियो व्यक्ति का अच्छा-खासा मनोरंजन करते हैं। ऐसे में जब एक बार इन एप को देखना प्रारंभ करते हैं तो एक-दो घंटे कब व्यतीत हो जाते हैं पता ही नहीं चलता। प्रत्येक गजट और डिवाइस हमारे प्रयोग के लिए हैं, हमारे साधन हैं, साध्य नहीं। यदि ऐसे डिवाइस जीवन का साध्य बन जाते हैं तो व्यक्ति का गर्त में जाना तय है।
इसलिए समय रहते फबिंग की आदत पर लगाम दें। अपने जीवन में शामिल परिवार, मित्रों, संबंधियांे का स्थान मोबाइल को कदापि न लेने दें। यदि संभव हो तो परिवार और मित्रों के साथ होते हुए फोन का कम से कम प्रयोग करें। अधिक से अधिक संवाद करें। कुछ समय बाद ही आप सकारात्मक परिणाम पाएंगे और कभी भी अकेलेपन या अवसाद का शिकार नहीं होंगे। सुप्रसिद्ध लेखक ब्रायन ट्रेसी का कहना है कि, ‘संवाद एक ऐसी योग्यता है जो साइकिल चलाने या टाइपिंग करने जैसी होती है। अगर आप इस पर मेहनत करने के इच्छुक हैं तो आप अपने जीवन के हर पहलू की गुणवत्ता को तेजी से सुधार सकते हैं।’
नि:संदेह, लोगों से संवाद की आदत आपके व्यक्तित्व के हर पहलू को निखारती है और फोन में लगे रहने की लत आपको बिगाड़ती है।

Advertisement
Advertisement