प्रदूषण संकट का स्थायी समाधान
कानून का सख़्त अनुपालन
प्रदूषण संकट के स्थाई समाधान हेतु दूरगामी नीति बनाने के बजाय दिल्लीवासियों को कुछ नसीहतों और सख़्त पाबंदियों में बांधकर समस्या के समाधान की आस लगा ली जाती है। भूविज्ञान मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण में सर्वाधिक योगदान 41 फीसदी वाहनों का है, ऐसे में यदि सरकारें सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को सुगम सुविधाजनक और सुरुचिपूर्ण ढंग से संचालित करें तो निजी वाहनों का उपयोग स्वत: ही कम हो जाएगा। इसी तरह नागरिकों की जागरूकता और कानून का अनुपालन भी समस्या के स्थाई समाधान को सुनिश्चित कर सकता है।
ईश्वर चन्द गर्ग, कैथल
नागरिक सजग हों
हर साल सर्दी के मौसम की शुरुआत के साथ ही दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण संकट बढ़ जाने का मुख्य कारण दिल्ली तथा इसके आस-पास के क्षेत्र में होने वाला अनियोजित निर्माण कार्य तथा सरकारों की उदासीनता है। पराली जलाना तथा दिवाली के अवसर पर पटाखे चलाना भी इस समस्या को बढ़ाता ही है। इस समस्या के शीघ्र स्थायी समाधान के लिए शीघ्र स्थायी कदम उठाने की जरूरत है। वहीं यह भी जरूरी है कि देश का प्रत्येक नागरिक इस समस्या के प्रति सजग हो।
सतीश शर्मा माजरा, कैथल
जीवनशैली के दोष
हर साल तापमान में गिरावट आने व हवा की रफ्तार कम होने से प्रदूषण बढ़ता है। बेहद तेजी से बने बहुमंजिला इमारत के निर्माण से हवा के मूल प्रवाह मार्ग में अवरोध पैदा हो जाता है। सिर्फ पराली ही प्रदूषण का कारण नहीं है। बदलती जीवनशैली के चलते हर घर में कई-कई कारें रखने से भी प्रदूषण फैलता है। प्रशासन अगर सार्वजनिक यातायात व्यवस्था को सरल सहज से उपलब्ध कराए तो लोग सार्वजनिक परिवहन का प्रयोग कर सकते हैं। केंद्र व राज्य सरकारों को मिलकर पराली संकट को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। किसानों को फसल चक्र में बदलाव के लिए भी प्रेरित किया जा सकता है। साथ ही किसानों को पराली के निस्तारण में सहायक मशीन उपलब्ध करवाना भी सरकारों का कर्तव्य है। तभी इस समस्या से निजात पाई जा सकती है।
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली
जागरूकता जरूरी
दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण की समस्या को कुछ लोग धान की पराली को जलाने और कुछ दिवाली के पटाखे फोड़ने को दोष देते हैं। लेकिन पर्यावरण को दूषित करने के अनेक कारण हैं जैसे अनियोजित निर्माण, जगह-जगह कूड़े के ढेर, फ़सल कटाई-कढ़ाई की अवस्था, बचे हुए खाद्य पदार्थों की अवस्था, पॉलिथीन, आवारा पशु आदि। इन सबसे बचने के लिए हमें पर्यावरण के अनुरूप जीवनशैली को अपनाने हेतु व्यक्तिगत एवं सामूहिक प्रयास करने से इस समस्या का स्थाई समाधान हो सकेगा। पर्यावरण के प्रति सभी को समर्पित भाव से जागरूक करना होगा।
जयभगवान भारद्वाज, नाहड़
रिन्यूएबल एनर्जी
वैसे तो प्रदूषण संकट का स्थाई समाधान नहीं हो सकता क्योंकि यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। जिसमें सरकार, प्रशासन और नागरिकों का सम्मिलित प्रयास निहित है। फिर भी इस संकट को कम करने के लिए जीवाश्म ईंधन के बजाय रिन्यूएबल एनर्जी के उपयोग से पानी और हवा के प्रदूषण को रोकने में मदद मिल सकती है। वहीं पब्लिक ट्रांसपोर्ट, इलेक्ट्रिक व्हीकल से हवा का और कचरे के निष्पादन को बेहतर तरीके से करने से जमीन का प्रदूषण रोका जा सकता है। हरियाली बढ़ाने और खेती में उपयोग किए जाने वाले रसायनों का सीमित उपयोग करने से भी जमीनी प्रदूषण से बचा जा सकता है।
भगवानदास छारिया, इंदौर
विकेंद्रीकृत विकास हो
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का प्रमुख कारण बढ़ती आबादी है। हरित क्षेत्र कंक्रीट का जंगल बन रहा है। देशभर से रोज हजारों ट्रक सामान आ रहा है। संसाधनों के अत्यधिक दोहन से बड़ी मात्रा में कूड़ा और सीवरेज अवरोध उत्पन्न हो रहा है। कोने-कोने में चल रहे निर्माण कार्यों ने क्षेत्र को भवन निर्माण सामग्री की खपत में अव्वल बना दिया है। बढ़ती आबादी और अवैध निर्माणों की गति सार्वजनिक परिवहन एवं आधारभूत ढांचे के विकास की गति से बहुत तेज है। ये अनियोजित विकास पर्यावरण के लिए विनाशकारी है। प्रदूषण के स्थायी समाधान के लिए विकेंद्रीकृत विकास जरूरी है। तभी शहरों की ओर पलायन रुकेगा और बढ़ती आबादी पर रोक लगेगी।
बृजेश माथुर, गाजियाबाद, उ.प्र.
पुरस्कृत पत्र
पर्यावरण के प्रति चेतना
प्रदूषण के संकट से निपटने के लिए सरकार को चाहिए कि वह सार्वजनिक वाहनों जैसे बस, रेलगाड़ी, मेट्रो की संख्या में बढ़ोतरी करे। लोगों को इनके प्रयोग के लिए प्रोत्साहित किया जाए। कर्मचारियों को आवास सुविधा प्रदान की जाए अथवा उनकी नियुक्ति घर से नजदीकी क्षेत्र में की जाए। उन्हें निर्देश दिए जाएं कि वे साइकिल का प्रयोग करें। सड़कों के दोनों ओर नीम आदि के पौधे रोपित किए जाएं और सड़क के बीच में यदि डिवाइडर है तो वहां पर भी पौधे रोपित किए जाएं। अनावश्यक पहाड़ों और प्राकृतिक स्थलों पर कटाव और निर्माण पर नियंत्रण करने की आवश्यकता है। पर्यावरण शिक्षा का प्रचार-प्रसार प्राथमिक कक्षाओं से होना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ी में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता हो।
अशोक कुमार वर्मा, कुरुक्षेत्र