जन संसद
महज विरोध न हो
लोकतंत्र और राजनीतिक शुचिता ने पक्ष-विपक्ष दोनों की भूमिका और जिम्मेदारियां तय कर रखी हैं। देखा जाये तो सरकार के साथ रचनात्मक सहयोग और उस पर अंकुश लगाने की जिम्मेदारी विपक्ष की भूमिका को अक्सर पक्ष से भी बड़ा करती है। लगता है विपक्ष लोकसभा चुनाव में सीटों में बढ़ोतरी का श्रेय अपनी दस साल की नकारात्मक और सिर्फ विरोध के लिए विरोध करने वाली राजनीति को देता है। इसे जीत का इस सूत्र मान कर ही विपक्ष आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है। विपक्ष की ये मानसिकता और रवैया लोकतंत्र और राष्ट्रहित में नहीं है। ऐसे में विपक्ष की सकारात्मक मुद्दों पर आधारित बातें भी अनसुनी रह जाएंगी।
बृजेश माथुर, गाजियाबाद, उ.प्र.
गरिमा बनाये रखें
देखा गया है कि राजनीति में विरोधी पक्ष अक्सर संसद की कार्यप्रणाली में बाधा डालते नजर आते हैं। बात-बात में बहस, कटाक्ष व एक-दूसरे पर दोषारोपण संसद का अमूल्य समय ही नष्ट करता है। विपक्षी नेता सरकार को सिर्फ ग़लत साबित करने में लगे रहते हैं। विपक्ष को अपनी बात शालीनतापूर्वक और सौम्य तरीके से रखनी चाहिए। दूसरे को नीचा दिखाना मकसद नहीं होना चाहिए। लोकतंत्र में सभी को अपनी बात रखने का स्वतंत्र अधिकार है लेकिन संसद की गरिमा को बनाए रखना भी विपक्ष की जिम्मेदारी है।
अभिलाषा गुप्ता, मोहाली
देशहित में हो विरोध
लोकतंत्र में पक्ष-विपक्ष का अपना-अपना महत्व होता है। कोई भी पार्टी अपनी बात के लिए अपना पक्ष रख सकती है। किसी बात के लिए विरोध भी कर सकती है। सवाल उठता है कि क्या विपक्षी पार्टी खुलकर अपना पक्ष नहीं रख सकती। क्या उसके विरोध को नकारा जाना चाहिए। एक बार उस व्यक्ति की बात को अवश्य सुनना चाहिए। किसी भी बात के लिए विरोध करने को लेकर गलत ठहराना भी उचित नहीं है। विपक्षी पार्टी के विरोध को दरकिनार न करके अगर वह विरोध देशहित के लिए है तो उस पर अवश्य विचार किया जाना चाहिए।
सतपाल, कुरुक्षेत्र
जनहित हो प्राथमिकता
देखने में आता है कि विपक्ष का सत्तापक्ष की हर बात का विरोध करने का फैशन हो गया है। वहीं अन्य राजनीतिक दलों का भी मानना है कि संविधान और कानून के दायरे में रहकर निष्पक्षता के साथ जनहित और जनकल्याण के लिए काम करना जरूरी होता है। सरकार का फैसला धर्मनिरपेक्षता की दृष्टि से उचित नहीं है। विरोधी दल सरकार को निशाने पर ले रहे हैं। किसी भी सरकार के सही निर्णय को देशहित में स्वीकार करना चाहिए। राजनीतिक लाभ के लिए हर बात का विरोध करना जनता में हताशा पैदा करता है।
रमेश चन्द्र पुहाल, पानीपत
स्वस्थ परंपरा निभाएं
लोकतंत्र में विपक्ष की अपनी एक अहम भूमिका होती है। विपक्ष के कमजोर होने से जनतंत्र कमजोर होता है। सत्तापक्ष अपनी हर बात मनवाना चाहती है तो विपक्ष का कर्तव्य बनता है कि उस पर तार्किक और सार्थक बहस करे। केवल विरोध के लिए विरोध की राजनीति कदापि फलदायी नहीं होती। विरोध के चलते कई बार राष्ट्र हित के मुद्दे पीछे रह जाते हैं। देश के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। राजनीति केवल सत्ता का खेल नहीं बल्कि स्वस्थ परंपरा का निर्वहन करना भी जरूरी है।
देवी दयाल दिसोदिया, फरीदाबाद
विरोध की राजनीति
आजकल की राजनीति स्वार्थपरक हो गई है। वे लोग चले गये जो सत्तापक्ष के किसी निर्णय, नीति का अच्छी तरह से अध्ययन करके अपनी बात रखते थे। आज की राजनीति सत्तापक्ष की हर बात का विरोध करने पर ही टिकी है। पार्टी चाहे कोई भी हो, केवल सत्तापक्ष का विरोध करना है। उन्हें इस बात की कोई परवाह नहीं कि जनता सब देख-समझ रही है। होना यही चाहिए कि जो बात देश-समाज के लिए सही हो, उसका समर्थन करना चाहिए। जब लगे कि यहां सत्ता अपने पद का दुरुपयोग कर रही है तो उसका विरोध करें। यही सच्चे अर्थों में राजनीति है।
सत्यप्रकाश गुप्ता, बलेवा, रेवाड़ी
देशहित सर्वोपरि
लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष का होना बहुत जरूरी है ताकि सत्तापक्ष की मनमानी को रोका जा सके। इसी तरह सत्तापक्ष का भी कर्तव्य है कि विपक्ष की जनकल्याण तथा देशहित की बातों को स्वीकार करे। एक-दूसरे के सहयोग से सदन के अंदर तथा सदन के बाहर गरिमामय तथा सौहार्दपूर्ण तरीके से शासन चलाया जा सकता है। सदन के अंदर या बाहर किसी भी पार्टी को अपने हितों को ध्यान में रखकर विरोध के लिए विरोध नहीं करना चाहिए। इसलिए विरोध की नीति को त्यागना होगा और देशहित को सर्वोपरि मानकर व्यवहार करना होगा।
शामलाल कौशल, रोहतक