जन संसद
राष्ट्रहित में स्थायित्व हो
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली
उदार व सकारात्मक रहें
18वीं लोकसभा में गठबंधन की सरकार बनी है। गठबंधन सरकार के समक्ष अग्निपथ, समान नागरिक संहिता, बेरोजगारी व महंगाई समेत देश के विकास हेतु अनेक मुद्दे होंगे। इन सभी मुद्दों पर गठबंधन सरकार को सभी दलों के नेताओं को साथ लेकर चलना एक चुनौती होगी। सहयोगी दलों की आकांक्षाओं के अनुरूप काम करना तभी संभव हो सकता है जब आपसी सहयोग व सकारात्मकता के भाव सभी में हों। इसके लिए सभी सहयोगी दलों से सामंजस्य स्थापित कर अपने राजनीतिक हितों व स्वार्थ से ऊपर उठकर देशहित में काम करना होगा। गठबंधन सरकार को चाहिए कि वह सहयोगी दलों के साथ उदार व सकारात्मक रूप से काम करें।
सुनील कुमार महला, सीकर
गठबंधन की तार्किकता
गठबंधन को बांधने वाली गांठें अक्सर सत्तासुख, निहित स्वार्थ, निजी महत्वाकांक्षाओं आदि से ढीली पड़ जाती हैं। एनडीए के घटकों ने मोदी के नेतृत्व में और उनको प्रधानमंत्री मानकर ही चुनाव लड़ा है। इसलिए गठबंधन की सफलता के लिए ज़रूरी आपसी विश्वास, सामंजस्य और सम्मान एनडीए में पहले से ही मौजूद है। साथ ही अगर एनडीए के घटक दल दो सौ इकतालीस सीटों वाली भाजपा का सहयोगी बनने और निन्यानवे सीटों वाली कांग्रेस की ताकत के बीच का फ़र्क़ समझें तो चुनौतियां कम रहेंगी। उम्मीद है कि एनसीपी व शिवसेना का मंत्री पदों को लेकर असंतोष आदि शुरुआती झटकों के बाद आगे की राह आसान रहेगी।
बृजेश माथुर, गाजियाबाद, उ.प्र.
तालमेल की जरूरत
अभिलाषा गुप्ता, मोहाली
मजबूत विपक्ष जरूरी
18वीं लोकसभा के लिए किसी भी राजनीतिक दल को बहुमत नहीं मिला। ऐसे में एक गठबंधन सरकार का गठन हुआ है। गठबंधन सरकार के लाभ और हानि दोनों ही हैं। वहीं संसद में एक मजबूत विपक्ष का होना लाजिमी है। गठबंधन सरकार में क्षेत्रीय दलों का महत्व बढ़ जाता है। परंतु कई बार छोटे दल अपनी झूठी शान के लिए जब केंद्र सरकार को बाध्य करने लगते हैं तो वह देशहित में नहीं होता। ऐसे में यदि गठबंधन सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं करती है तो फिर अनावश्यक चुनावी खर्च भी देश को झेलना पड़ता है। यह भी संभव है कि एक मजबूत विपक्ष के चलते सरकार चाहे एक दल की हो अथवा मिलीजुली हो, अपना कार्यकाल पूरा करती है। लेकिन ऐसे में सहयोगी दलों से सामंजस्य स्थापित कर सरकार चलाना एक चुनौती तो रहती है।
सुरेन्द्र सिंह, महम