मुख्यसमाचारदेशविदेशखेलबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाब
हरियाणा | गुरुग्रामरोहतककरनाल
रोहतककरनालगुरुग्रामआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकीरायफीचर
Advertisement

जन संसद

07:55 AM Apr 08, 2024 IST
Advertisement

निष्पक्षता की जवाबदेही

सत्तारूढ़ दल आगामी चुनाव में पुनः सत्ता पाने के लिए सभी राजनीतिक हथकंडे अपनाने के लिए प्रयत्नशील है। राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप, व्यक्तिगत आक्षेप विपक्षी दलों की छवि धूमिल करने की चाल है। हालांकि चुनाव घोषित होने के बाद चुनाव आयोग स्वायत्त संस्थाओं में घोटाला, अकारण आरोप, विपक्षी दल के नेताओं को जेल यात्रा, बैंक खातों की जांच करवाना सरकारी एजेंसियों पर सवालिया निशान है। ईवीएम का दुरुपयोग करने का बहाना विपक्षी पार्टियों पर भारी पड़ सकता है। चुनाव आयोग की जिम्मेवारी निष्पक्ष चुनाव करवाने की अधिक बढ़ जाती है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल

पिंजरे से बाहर निकले

यूपीए सरकार के ज्यादातर घोटालों का पर्दाफाश संवैधानिक संस्थाओं ने यूपीए राज में ही किया था। लेकिन आज विपक्ष के भ्रष्टाचार उजागर करने वाले प्रवर्तन निदेशालय, सीबीआई, आयकर विभाग आदि में इतनी हिम्मत नहीं है कि वह भाजपा सरकारों के भ्रष्टाचार को उजागर कर सके। सुप्रीम कोर्ट ने यूपीए शासनकाल में सीबीआई को पिंजरे में बंद तोता कहा था। आज सीबीआई ही नहीं अपितु सभी केंद्रीय एजेंसियां पिंजरे में बंद तोता ही हैं जो सिर्फ़ सरकार की भाषा बोलती हैं। इन संस्थाओं की उपयोगिता और प्रासंगिकता यहीं तक सीमित है।
बृजेश माथुर, गाजियाबाद, उ.प्र.
Advertisement

जिम्मेदारी बड़ी है

यह तो सर्वविदित है कि देश की सरकारी एजेंसियों का मुखिया कार्यपालिका प्रमुख होता है। यदि देश की कोई एजेंसी विपक्ष के किसी नेता या राजनेता के विरुद्ध कोई भी भ्रष्टाचार की जांच-पड़ताल करती है तो शक की सूई अवश्य ही मुखिया और उसके दल के इर्दगिर्द ही घूमेगी। भ्रष्टाचार करने वाला सज़ा का हकदार है और उसे दण्ड मिलना भी चाहिए। परंतु यदि वही भ्रष्ट नेता सत्तापक्ष में शामिल हो जाता है तो उसके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं होती, वह पाक साफ हो जाता है। सत्तापक्ष की की जिम्मेदारी बड़ी है। जहां भ्रष्टाचार को संरक्षण देना लोकतंत्र के लिए घातक है।
खुशपाल सिंह पतवान, अम्बाला शहर

मूल्यों का निर्वहन

कांग्रेस पार्टी का आरोप था कि चुनाव नजदीक आने पर सत्तापक्ष उन्हें आयकर विभाग की कार्रवाई से परेशान करके वित्तीय संकट में डाल रहा है। लोकसभा के चुनावों की घोषणा के पश्चात प्रशासन को निष्पक्ष होकर लोकतांत्रिक मूल्यों का निर्वहन करना चाहिए, जिससे चुनाव प्रक्रिया न्यायसंगत बनी रह सके। चुनावों के समय विपक्षी दल का खाता फ्रीज करके वित्तीय संकट उत्पन्न करना स्वस्थ लोकतंत्र व्यवस्था के लिए शुभ संकेत नहीं है। वहीं विपक्षी दलों को भी स्वतंत्र रूप से जांच करवाने के लिए सरकारी एजेंसियों की जांच में सहयोग करना चाहिए, जिससे निष्पक्ष जांच हो सके।
जयभगवान भारद्वाज, नाहड़

एकतरफा कार्रवाई

नि:संदेह सरकारी एजेंसियों का मुख्य कार्य यह देखना है कि किसी राजनीतिक दल, संस्था या व्यक्ति ने अपने कार्यों को अंजाम देते हुए तय की गई कानूनी प्रक्रिया का ठीक ढंग से पालन किया या नहीं। सभी सरकारी एजेंसियां एक स्वतंत्र संस्था के रूप में कार्य करती हैं। सरकारी एजेंसियों की कार्यशैली की तार्किकता तब संदेह के घेरे में आती है जब इनकी कार्रवाई विपक्षी दलों, व्यक्तियों के खिलाफ ज्यादा व सत्तारूढ़ दलों तथा इनसे जुड़े लोगों या संस्थाओं के विरुद्ध कम होती है। वर्तमान समय में देश में कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है।
सतीश शर्मा, माजरा, कैथल

कायम रहे भरोसा

सत्तारूढ़ दल पर केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोप लगाना विपक्षी दलों का काफी पुराना जुमला है। कोई भी विपक्षी पार्टी जब सत्ता में आती है तो उस पर भी यही आरोप लगते हैं। जांच एजेंसियों की कार्यशैली सदैव सही और निष्पक्ष भी नहीं होती। कभी-कभी ये आरोप सही भी प्रतीत होते हैं। कहना गलत नहीं होगा कि इस मामले में हमाम में सब नंगे हैं। कई दफा केंद्रीय जांच एजेंसियों का प्रयोग बदले की भावना से प्रेरित होते देखा है। राजनीतिक दुर्भावनावश कोई जांच नहीं होनी चाहिए। इससे न सिर्फ बेकसूर लोगों की छवि धूमिल होती है बल्कि जनता का जांच एजेंसियों से विश्वास भी उठ जाता है।
सुरेन्द्र सिंह 'बागी', महम

Advertisement
Advertisement