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जन संसद

07:54 AM Mar 11, 2024 IST

स्वस्थ परंपरा नहीं

चुनाव के समय बड़ी योजनाओं का शिलान्यास-उद‍्घाटन करना अतार्किक नीति है। आनन-फानन में थोक में विभिन्न योजनाओं का शिलान्यास केवल वोटर को भ्रमित करना मात्र है। चुनाव नजदीक के समय इस प्रकार की विकास योजनाओं का उद‍्घाटन करना आचार संहित का उल्लंघन का प्रावधान होना चाहिए। स्वच्छ लोकतंत्र में स्वच्छ परंपराओं का निर्वाह होना चाहिए। वहीं राजनीतिक दलों का आचरण उच्च प्रजातांत्रिक मूल्यों की समृद्धि में सहयोगी होना चाहिए। मतदाताओं को भी चाहिए कि वे आकस्मिक प्रलोभन के लालच को समझें।
रामभज गहलावत, रोहतक
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राष्ट्रहित में नहीं

चुनाव नजदीक आते ही सत्तारूढ़ दलों द्वारा उद्घाटन-शिलान्यास और घोषणाओं की झड़ी लगाना कोई नयी बात नहीं है। अधिकांश घोषणाओं के पीछे वोटों की महत्वाकांक्षा ही छिपी होती है। जनता को लालच देकर, सब्जबाग दिखाकर जो योजनाएं बनाई जाती हैं, उनसे मुफ्तखोरी बढ़ती है। सत्ता परिवर्तन के बाद ऐसी योजनाएं नई सरकारों के लिए एक बड़ा सिर दर्द भी बन जाती हैं। चुनावी वेला में बनाई गई योजनाओं पर हमेशा संशय बना रहता है। नीतियां राष्ट्रहित में बननी चाहिए न कि पार्टी हित में।
सुरेन्द्र सिंह ‘बागी’, महम

तार्किक भी

चुनाव की तारीख घोषित होने और आचार संहिता लगने के पहले सरकार लोक लुभावन योजनाएं लाती है, जिससे वोटर को ललचा सके। इसलिए नए-नए प्रोजेक्टों का शिलान्यास भी करती है और जो प्रोजेक्ट पूरे हो गए हैं उसका उद्घाटन भी करती है। वर्तमान सरकार की खासियत है कि जिस भी प्रोजेक्ट का ये शिलान्यास करती है उसे अपने कार्यकाल के खत्म होने के पहले उसका उद्घाटन भी करती है। मुंबई का बांद्रा सेतु और कई रेलवे प्रोजेक्ट आदि का हुआ है। वोटर को ये बातें तार्किक लगती हैं।
भगवानदास छारिया, इंदौर
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जागरूक है मतदाता

चुनाव के समय में उद्घाटन और शिलान्यास को अगर राजनीति के चश्मे से देखा जाए तो यह आमजन के हित के लिए नहीं, बल्कि वोट बैंक के लिए होते हैं। लेकिन यह चीजें मतदाताओं को प्रभावित नहीं करती हैं, क्योंकि मतदाता अब राजनीतिक तौर पर जागरूक हो रहा है। मतदाता सरकार के कामों का भी विश्लेषण करके अपने कीमती मत का प्रयोग करता है जो आमजन के आधार से जुड़े मुद्दे होते हैं। आमजन विधानसभा और लोकसभा चुनाव को अलग-अलग नजरिए से देखते हुए अपने कीमती वोट का प्रयोग करता है।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर

विशुद्ध राजनीति

चुनाव पास आते ही सरकारें अपने पंचवर्षीय योजनाओं के अलावा कुछ अलग-सी गतिविधियां दिखाने की कोशिश करने लगती हैं और बड़ी-बड़ी विकास योजनाओं की घोषणा शिलान्यास और उद्घाटन में मशगूल हो जाती हैं। तुरत-फुरत तैयार की गई इन विकास योजनाओं के विभिन्न पहलुओं पर गंभीर मंथन के अभाव में अक्सर ऐसी घोषणाओं पर प्रश्न चिन्ह लगते देखे गये हैं। सरकारों की इस तरीके की कारगुज़ारियों का उद्देश्य वोटरों को सम्मोहित कर लाभ अर्जित करना ही होता है। दूसरी सरकार आते ही पूर्ववर्ती सरकार की योजनाओं को ठंडे बस्ते में डाल देती है।
मनजीत कौर, गुरुग्राम

कथनी-करनी का फर्क

चुनाव नजदीक आते ही सत्तापक्ष द्वारा अनेक प्रकार की योजनाओं का शिलान्यास तथा उद्घाटन धड़ल्ले से किया जाता है। इसका सीधा-सीधा अर्थ लोगों को अपनी तरफ आकर्षित कर वोट हथियाना होता है। इस समय की ज्यादातर योजनाओं पर सरकार द्वारा कोई ठोस होमवर्क नहीं किया जाता। सिर्फ जनता की भावनाओं से खिलवाड़ कर सत्ता पर काबिज होना होता है। वरना पूरे 5 साल तक वो कहां थे? आज राजनीति के मायने पूरी तरह बदल चुके हैं। नेताओं की कथनी-करनी में जमीन-आसमान का अंतर होता है।
सत्यप्रकाश गुप्ता, बलेवा, गुरुग्राम

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