जन संसद
राजनीतिक पक्ष भी
अयोध्या में राम मंदिर का बनना तथा रामलला की मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा न केवल भारत बल्कि विश्व के हिंदुओं के लिए एक सपने के साकार होने के बराबर है। अयोध्या में राम जन्म मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा का निहित अर्थ जहां आध्यात्मिक है उससे बढ़कर राजनीतिक है। एक प्रकार से यह सारा कार्यक्रम भाजपा का राजनीतिक कार्यक्रम था। अधिकांश विपक्षी दल इस राजनीतिक कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए। वहीं शंकराचार्यों ने इसको लेकर प्रश्न उठाये और वे प्राण-प्रतिष्ठा में शामिल नहीं हुए। इस कार्यक्रम में सरकारी मशीनरी का भरपूर इस्तेमाल किया गया।
शामलाल कौशल, रोहतक
युगांतरकारी घटना
सतीश शर्मा, माजरा, कैथल
मर्यादित मूल्य अपनाएं
अयोध्या में राम जन्म मंदिर स्थापना में प्राण प्रतिष्ठा जन-जन की सनातनी भावनाओं का सम्मान व राजनीतिक लाभ से जुड़ा पहलू है। शायद आगामी 2024 के संसदीय चुनाव में जनहित के बदले वोट बैंक की मजबूती। यह राजनीतिक आयोजन चुनावी मद्देनजर संपन्न हुआ। इस कारण चार शंकराचार्यों ने अपनी भागीदारी नहीं दिखाई। धर्मनिरपेक्ष हिंदुत्व के सहारे सत्तारूढ़ दल अपनी विजय कामयाबी लक्ष्य साधना चाहता है। आवश्यकता है रामराज के मर्यादित नैतिक सामाजिक आदर्श मूल्यों को अपनाने व साफ-सुथरी नि:स्वार्थ राजनीति की।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
जीवन का अनुसरण हो
श्वेता चौहान, जालंधर
मानवीय मूल्यों की रक्षा
अयोध्या में राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा वैश्विक स्तर पर राम के न्याय, समता और समानता का संदेश देगी। मूर्ति-पूजक बहुसंख्यक हिंदू समुदाय के रामायण महाग्रंथ में जिस राम राज्य की कल्पना मानव मात्र के कल्याण के लिए की गई थी उसका यह शुरुआती दौर है। अयोध्या में प्रतिष्ठा का यह आयोजन समूचे विश्व के लिए मानवता और मर्यादा के पालन का संदेश वाहक होगा। अब लोग मत, पंथ और मजहब से परे हटकर राम के आदर्शों को जीवन में आत्मसात कर समाज, देश और दुनिया में भाईचारा स्थापित करें जो मानवता की रक्षा के लिए निहित जरूरी है।
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.
सांस्कृतिक पुनर्जागरण
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का संकल्प पूरा होना आजाद भारत की बड़ी उपलब्धि है। इससे भारत के स्वाभिमान और संस्कृति को बल मिला है। राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा से देशवासियों में नई ऊर्जा व उत्साह का संचार हुआ। निर्माण एक तरह से रामराज्य की संकल्पना की ओर संकेत करता है। रामराज्य में सभी के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुलभ थी। यह सांस्कृतिक पुनर्जागरण के साथ तीर्थाटन के नए युग की ओर भी संकेत कर रहा है। भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने एक पुत्र, पति, भाई व शासक के रूप में सभी मर्यादाओं का पालन किया।
सोहन लाल गौड़, कैथल
एकता के सूत्र
रमेश चन्द्र पुहाल, पानीपत