जन संसद
दांव पर प्रतिभा
राजनीति ऐसा दखल है जो किसी भी क्षेत्र को दूषित करने में सक्षम है। आनुपातिक रूप से देखें तो जब से खेलों में राजनीति घुसी है आर्थिक और नैतिक पराभव ही हुआ है। हाल ही में कुश्ती महासंघ के सुप्रीमो के खिलाफ महिला पहलवानों की शिकायत, फिर कोर्ट की दखल और अंत में नए चुनाव के बावजूद मामला विवादों में ही घिरा है। इससे प्रतिभावान खिलाड़ियों का भविष्य दांव पर लगा हुआ है। राजनीतिक सूरमाओं की बजाय संबंधित खेल क्षेत्र के ही किसी पूर्व खिलाड़ी को संघ की कमान सौंपनी चाहिए। इससे न केवल प्रतिभाएं निकलेंगी बल्कि उनकी योग्यताओं का लाभ भी युवा खिलाड़ियों को मिलेगा।
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.
दबाव में खिलाड़ी
भारतीय कुश्ती महासंघ का भंग करने से उन खिलाड़ियों को इंसाफ मिल गया होगा जो इस महासंघ के सदस्यों के रवैये से परेशान चल रहे थे। अगर संजय सिंह के चुनाव जीतने पर खिलाड़ियों को एतराज था तो खेल मंत्रालय ने इसके लिए पहले एक्शन क्यों नहीं लिया? विवाद को इतना क्यों बढ़ने दिया गया? क्या इस विवाद से देश के अन्य खेलों के संघों और महासंघों पर गलत असर नहीं पड़ेगा? साक्षी मलिक और बजरंग पूनिया ने तो खेल से रिटायरमेंट लेने का मन बना लिया था। इस मुद्दे की निष्पक्ष और उचित जांच होनी चाहिए। खेलों के मुद्दे पर राजनीति हरगिज नहीं होनी चाहिए। इससे खिलाड़ी दबाव में आ सकते हैं और वो खेलों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाएंगे।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
पूर्व खिलाड़ी संभालें
देश में जितने भी छोटे-बड़े खेल संगठन हैं लगभग सभी पर राजनेता काबिज हैं। राजनेताओं का खेल संगठनों से क्या मतलब? पिछले एक साल से देश के कुश्ती खिलाड़ी सड़कों पर हैं और सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंगी। अब जब उन्होंने अपने पदक लौटा दिये, खेल से संन्यास की घोषणा कर दी तो आनन-फानन में कुश्ती की नवनिर्वाचित कार्यकारिणी को भंग करना पड़ा। बेशर्मी की भी हद होती है। देश के तमाम खेल संगठनों को सिर्फ और सिर्फ पूर्व खिलाड़ी ही सम्भालें, जो खिलाड़ी देश का गौरव बढ़ाते हैं।
सत्यप्रकाश गुप्ता, बलेवा, गुरुग्राम
शीघ्र न्याय मिले
देश में खेल संगठनों पर राजनेताओं का ही दबदबा रहा है। वास्तव में उनका हस्तक्षेप खिलाड़ियों के खेल प्रतियोगिताओं की चयन प्रक्रिया को प्रभावित करता है। इससे खेलों की पारदर्शिता पर भी असर पड़ता है। एक साल से कुश्ती महिला पहलवानों के आंदोलन पर निष्पक्ष जांच न होना सरकार पर उंगली उठती नजर आती है। भविष्य में खेल संगठनों पर कोई राजनेता काबिज न हो, ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए। बेशक भारतीय कुश्ती महासंघ को भंग करने का सरकार का फैसला देर से लिया गया कदम है। लेकिन संशय अभी भी बरकरार है। महिला पहलवानों को समय रहते न्याय मिलना चाहिए ताकि उनकी विश्वसनीयता बनी रहे। नहीं तो आने वाले खेलों में इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
गणेश दत्त शर्मा, होशियारपुर
महिला हो अध्यक्ष
ओलंपिक पदक विजेता साक्षी मलिक ने एक प्रेस वार्ता में कुश्ती संघ के चुनाव को लेकर रोष व्यक्त करते हुए कुश्ती को अलविदा कहा। उसके बाद पहलवान बजरंग पूनिया तथा गूंगा पहलवान ने पद्मश्री लौटाने की घोषणा की थी। फिलहाल तदर्थ कमेटी बनाने को कहा है। देखा जाये तो कुश्ती संघ में राजनेताओं का क्या काम है। महिला पहलवानों को न्याय पाने के लिए आन्दोलन करना पड़ा। जबकि सरकार को सहानुभूति दिखानी चाहिए थी। आम चुनाव की ओर बढ़ते देश में जनाक्रोश से बचने के लिए सरकार ने यह कार्रवाई की है। संघ में महिला खिलाड़ी की इस पद पर नियुक्ति हो ताकि महिला खिलाड़ियों को सुरक्षित वातावरण मिल सके।
शिवरानी पुहाल, पानीपत
विशेष कमेटी बने
पीड़ित महिला पहलवानों के अलावा कुछ और खिलाड़ियों ने जब अपने मेडल सरकार को वापस करने का फैसला किया तब सरकार ने कुश्ती संघ को भंग कर दिया और कामकाज चलाने के लिए तदर्थ कमेटी बना दी। पूछा जा सकता है कि खेल संघों के काम में राजनेताओं के हस्तक्षेप का क्या औचित्य है? जरूरी है कि खेल संघों के लिए अनुभवी, निष्पक्ष, गैर-राजनीतिक तथा जहां तक हो सके महिला खिलाड़ियों को अध्यक्ष पद पर चुनावों द्वारा नियुक्त करना चाहिए। एक विशेष कमेटी खेल संघ में किसी प्रकार की अनैतिकता को रोकने के लिए नियुक्त की जाए।
शामलाल कौशल, रोहतक
एकाग्रता बाधित
भले ही भारतीय कुश्ती संघ को निलंबित कर दिया गया है मगर लंबे समय से संघर्षरत महिला पहलवानों को विश्वास दिलाना जरूरी है। हर देश अपने खिलाड़ियों पर गर्व करता है। खिलाड़ी तमाम मुश्किलें झेलते हुए अपनी अथक मेहनत और प्रयास से पदक जीत कर देश को गौरवान्वित करते हैं। खेलों में राजनीति की कोई जगह नहीं होनी चाहिए। भारत में खेलों और राजनीति का चोली-दामन का साथ है। देश के तमाम संगठनों पर राजनेता या उनकी संतानें काबिज हैं। खिलाड़ियों के चयन में भी उनका हस्तक्षेप रहता है। राजनीति के दखल से खेल और खिलाड़ी तो प्रभावित होते ही हैं, खेलों में विश्वपटल पर भी हम पिछड़ जाते हैं। राजनीति के दखल से खिलाड़ियों की एकाग्रता पर भी असर पड़ता है।
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली