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जन संसद

08:41 AM Dec 25, 2023 IST
जन संसद
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कमाई का सच

पिछले दिनों एक सांसद के व्यावसायिक ठिकानों से 350 करोड़ रुपये की राशि का मिलना चौंकाने वाला है। वैसे इस प्रकार के बहुत राजनेता हो सकते हैं जिन पर शिकंजा कसना बाकी है। उपर्युक्त मामले में विभिन्न राष्ट्रीय टीवी चैनलों ने प्रमुखता से इतने बड़े धन की बरामदगी का मामला सनसनीखेज तरीके से दिखाया। वैसे सांसद ने स्पष्टीकरण दिया है उनका सालों साल से शराब का धंधा है और उनका बहुत बड़ा संयुक्त परिवार है इसलिए लेनदेन के लिए उनको भारी मात्रा में नगद राशि रखनी पड़ती है। उसका पार्टी के साथ इस धन को लेकर कोई संबंध नहीं! कानून को इस मामले में आवश्यक कार्रवाई करनी चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक

भ्रष्टाचार की वजह

हमारे देश की राजनीति अब कमाई का साधन भी बन गई है। बहुत से लोग राजनीति में आकर अमीर बनते दिखे हैं और इसका कारण है भ्रष्टाचार। यहां जिसकी लाठी उसकी भैंस होती है। ऐसा लगता है कि कानून भी राजनेताओं और पैसे वालों के हाथ की कठपुतली है, नहीं तो कभी भी कुछ लोगों के घर काली कमाई के अंबार नहीं लगते। न ही देश में आर्थिक भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी होती। जब तक देश में भ्रष्टाचार रहेगा तब तक लोग काली कमाई करते रहेंगे और देश दिन-प्रतिदिन आर्थिक स्थिति से कमजोर भी रहेगा।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर

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व्यवस्था की चूक

राजनीति समाज सेवा करने का अच्छा माध्यम होता है। लेकिन आजकल इसके मायने बदल चुके हैं। जो यह कहता है कि मैं तो समाज सेवा करने के लिए राजनीति में आया हूं, वह सरासर झूठ बोल रहा है। बेशक इसमें कुछ-एक लोग अपवाद हो सकते हैं। इनकी काली कमाई का पता सबको होता है। प्रशासन को, पुलिस को। परन्तु इनके खिलाफ कार्रवाई करने से हिचकते हैं। जब जनसेवा करने राजनीति में आते हैं तो इतनी अकूत संपदा का क्या अर्थ? देश की व्यवस्था में तो चूक है ही। वरना इतनी मोटी सम्पत्ति कोई कैसे जुटा सकता है। ऐसे लोगों को राजनीतिक लाभ देने का कोई अर्थ नहीं है।
सत्यप्रकाश गुप्ता, बलेवा, गुरुग्राम

कठोर दंड मिले

भारत की सभ्यता और संस्कृति मानवीय मूल्यों पर आधारित है। पौराणिक ग्रन्थ, वेद और पुराणों के साथ-साथ रामायण और गीता में भी अति धन संचय न करने की सीख दी गई है। काला धन संचय करने वाले न केवल राष्ट्रीय कोष के प्रवाह को अवरुद्ध कर देते हैं अपितु राष्ट्र के विकास में सबसे बड़ी बाधा उत्पन्न करते हैं। वैसे देश की व्यवस्था में भी कहीं न कहीं सुराख अवश्य है। गलत तरीके से कमाई में लिप्त लोगों के लिए कठोर से कठोर दंड निर्धारित किए जाने की आवश्यकता है ताकि अन्य लोगों को भी सीख मिल सके।
अशोक कुमार वर्मा, कुरुक्षेत्र

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कानूनी शिकंजा कसें

सांसद और विधायक जनता द्वारा, जनता के लिए होते हैं। जनकल्याण के लिए सरकारी धनराशि से अपने खजाने भरना अनुचित लाभ-प्रलोभन व जनता से विश्वासघात है। एक ओर भूख- महंगाई से आमजन में त्राहि-त्राहि मची है दूसरी ओर लोक कल्याण की उपेक्षा करती टैक्स रहित काली कमाई के अंबार। सरकार को ऐसे सांसदों को बर्खास्त कर उनकी संपत्ति जब्त कर लेनी चाहिए। सांसद-विधायकों द्वारा अर्जित संपत्ति का सरकार के पास हिसाब- किताब होना चाहिए। अपार धन मालिकों के प्रति कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए।

अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल

राजनीतिक विद्रूपता

देश में महंगाई और रोजगार की अनिश्चितता के चलते आम आदमी का जीवन दूभर हो गया है। ऐसे में नेताओं के यहां अरबों की बेनामी संपत्ति जब्त होना इस बात का संकेत है कि राजनीति सेवा नहीं कमाई का धंधा बन गया है। दुख तब होता है जब इस मामले में कानून इसे रोकने में असहाय सिद्ध होता है। जब छापे पड़ते हैं और लाॅकर नगदी और आभूषण उगलते हैं, तब जाकर लगता है कि कारोबारी नेताओं की सफेद की आड़ में काली कमाई कितनी है? देश में लगातार बढ़ती आर्थिक असमानता के चलते अगर ऐसे कारोबार नहीं रोके गए तो गरीब और अधिक गरीब और करोड़पति अरबपति बनते जाएंगे।
अमृतलाल मारू, इन्दौर, म.प्र.

जांच एजेंसियां स्वतंत्र हों

आजकल धनबल और बाहुबल से ही काली कमाई की जा रही है। उन नेताओं पर सियासी वरदहस्त होता है। झारखंड के सांसद के यहां पड़े छापे में भी बड़ी मात्रा में काली कमाई उजागर हुई है। सांसद दो बार चुनाव हार गए, क्योंकि ये लोकप्रिय नहीं, बल्कि केवल धनप्रिय होने से धन के बल पर ही राज्यसभा में पहुंचे। जन लोकपाल कानून तो बन गया किंतु इसका कायदे से गठन नहीं हुआ। जांच एजेंसियों को‌ भी निष्पक्ष रूप से काम करने नहीं दिया जाता बल्कि कुछ छापे तो‌ सियासी निर्देश पर होते हैं। जांच एजेंसियां पूर्णतया निष्पक्षता से काम करेंगी तो‌ ही काला धन नियंत्रित होगा अन्यथा काला धन और अपराधी बढ़ते रहेंगे। साथ ही आमजन को सदैव धन की कमी में ही जिंदगी गुजारनी होगी।
बीएल ‌शर्मा, तराना, उज्जैन

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