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भारतीय आकांक्षाओं के अनुरूप दंड विधान

04:00 AM Dec 06, 2024 IST

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के.पी. सिंह

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 3 दिसम्बर को चंडीगढ़ में एक भव्य समारोह में नए आपराधिक कानूनों के सफल कार्यान्वयन को राष्ट्र को समर्पित किया। गृहमंत्री ने नए कानूनों को लागू करने वाली पहली इकाई होने के लिए चंडीगढ़ पुलिस की सराहना करते हुए उम्मीद जताई कि अगले 3 वर्षों में ये कानून पूरे देश में लागू हो जाएंगे। इस प्रक्रिया में आपराधिक न्याय प्रणाली के विभिन्न स्तम्भों के बीच समन्वय और बुनियादी ढांचे के निर्माण तथा कई पोर्टलों के साथ डेटाबेस का एकीकरण जैसी समय लेने वाली प्रक्रिया शामिल है।
गृहमंत्री ने कहा कि इन कानूनों को लागू करने के लिए 11,34,698 पुलिसकर्मियों को प्रशिक्षण दिया गया है और 1 जुलाई, 2024 के बाद कानून के नए प्रावधानों के अन्तर्गत 11 लाख से अधिक आपराधिक मामले दर्ज किए जा चुके हैं, जिनमें से 9500 मामलों में पहले ही फैसला आ चुका है। इन नई कानूनी प्रक्रियाओं का ऐसा प्रभाव है कि चंडीगढ़ पुलिस ने नई योजना के बाद निर्धारित किए गए सभी मामलों में 85 प्रतिशत सजा की दर प्राप्त कर ली है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आज लोगों के लिए एक ऐतिहासिक क्षण था जब वे भारतीय आत्मा के साथ नए युग के दण्ड विधानों को अपनाने के साक्षी बने हैं। जन-केन्द्रित और न्याय-उन्मुख दृष्टिकोण को अपनाते हुए नए कानून दमन और प्रतिशोध पर आधारित औपनिवेशिक कानूनों का स्थान लेंगे।
इस अवसर ने न्याय प्रक्रिया से जुड़े पेशेवरों को नए कानूनों के लागू होने के बाद से उनके कामकाज के परिचालन ऑडिट करने का मौका भी प्रदान किया, ताकि बाधाओं और कमियों की पहचान की जा सके और भविष्य में उनके निराकरण के उपाय सुझाए जा सकें। उनके अनुसार कानून निर्वात में क्रियान्वित नहीं किए जा सकते।
इस तथ्य से कोई इंकार नहीं कर सकता है कि पुलिस जांच अधिकारियों ने सभी मामलों में आपराधिक कानूनों की नई धाराओं का उपयोग करना शुरू कर दिया है, हालंकि सफल क्रियान्वयन का अर्थ इससे कहीं अधिक होता है। जिसमें इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल बुनियादी ढांचे का निर्माण करके आपराधिक न्याय प्रणाली के प्रस्तावित डिजिटलीकरण के सपने को पूरा करना महत्वपूर्ण है। इसके लिए कर्मचारियों की भर्ती और प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी। हितधारकों के बीच सम्पर्क और समन्वय के लिए अपराध और अपराधी ट्रैकिंग नेटवर्क सिस्टम (सीसीटीएनएस) और अन्तर-संचालनीय आपराधिक न्याय प्रणाली (आईसीजेएस) से सम्बन्धित सॉफ्टवेयर को उन्नत करना भी उतना ही जरूरी है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) में परिकल्पित कई नई अवधारणाओं के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए नियम और उप-नियम बनाना सफलता की कुंजी साबित होगी। प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) का ई-पंजीकरण, समन और वारंट की ई-सेवा, जीरो एफआईआर, गवाह सुरक्षा योजनाएं, सामुदायिक सेवा की सज़ा, दोषी की अनुपस्थिति में मुकदमा, अपराधों से अर्जित सम्पत्ति की जब्ती, माल-मुकदमों की सम्पत्तियों का समयबद्ध निपटान, अपराध पीड़ितों के साथ जब्त सम्पत्ति को साझा करना, सजा में कमी, वीडियोग्राफी फुटेज का भण्डारण आदि से सम्बन्धित प्रावधानों को लागू करना तब तक वास्तविकता नहीं होगी जब तक कि राज्यों द्वारा संचालन प्रोटोकॉल और नियम तुरंत तैयार नहीं किए जाते। ऐसे नियमों व प्रोटोकॉल के अभाव में, नए कानूनों की नवीन अवधारणाएं केवल कागजों तक सीमित ही रह जाएंगी।
गृहमंत्री ने फोरेंसिक विशेषज्ञों को आपराधिक न्याय प्रणाली के पांचवें स्तम्भ की संज्ञा दी है। अब तक न्यायवैधिक विज्ञान प्रयोगशालाओं (एफएसएल) का नेटवर्क बहुत कम है। नए कानूनों के अनुसार, 7 साल से अधिक की सज़ा वाले सभी अपराधों के घटनास्थलों पर फोरेंसिक विशेषज्ञों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए, न्यायवैधिक प्रयोगशालाओं का पुलिस थाना स्तर तक विस्तार बेहद जरूरी है। वर्तमान में फोरेंसिक विशेषज्ञों की सीमित उपलब्धता के मद्देनज़र यह एक बहुत ही कठिन कार्य प्रतीत होता है।
आपराधिक न्याय के स्तम्भों अर्थात पुलिस, अदालत, अभियोजन, जेल प्रशासन और फोरेंसिक लैब का डिजीटल एकीकरण एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। इस मुद्दे पर कार्य शुरू हो चुका है लेकिन यह तब तक पूरा नहीं हो सकता जब तक कि राज्य की एजेंसियों के अधिकार क्षेत्र में आने वाले अन्य सभी सम्बन्धित कार्य उनके द्वारा पूरे नहीं कर लिए जाते। मुकदमों में शामिल सम्पत्तियों के समयबद्ध निपटान के नए प्रक्रियात्मक कानून एक स्वागतयोग्य कदम है। परन्तु कानून लागू करने वाली एजेंसियों की ओर से तत्परता की कमी या बुनियादी ढांचे के अभाव में अदालतें इस दिशा में कुछ ठोस नहीं कर पा रही हैं।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 48 के अन्तर्गत विदेशों में बैठे आतंकवादियों और गैंगस्टरों द्वारा भारत में अपराधों को उकसाने के जुर्म में सज़ा देने के प्रावधान हैं। बढ़ावा देने को अपराध की श्रेणी में लाती है। इसके अतिरिक्त भारतीय न्याय संहिता की धारा 107 अपराधियों की सम्पत्ति जब्त करने का प्रावधान करती है, जबकि धारा 356 भगौड़े अपराधी की अनुपस्थिति में उसके विरुद्ध मुकदमा चलाने की प्रक्रिया निर्धारित करती है। अभी तक देश के बाहर बैठकर अपराध करने वाले किसी भी अपराधी को इन प्रावधानों के अन्तर्गत सज़ा नहीं दी जा सकी है।
भारतीय न्याय संहिता के अन्तर्गत सज़ा की सूची में ‘सामुदायिक सेवा’ को एक सज़ा के रूप में शामिल किया गया है, जबकि अभी तक इस सज़ा के निष्पादन के लिए कोई निर्धारित तंत्र और प्रोटोकॉल नहीं बना है। नए आपराधिक कानूनों में सामुदायिक सेवा की सज़ा केवल दिखावटी प्रतीत होती है, क्योंकि भारतीय न्याय संहिता 2023 में शामिल सभी अपराधों में से केवल 6 छोटे अपराधों में शामिल अपराधियों को ही इस सज़ा से दण्डित किया जा सकता है। पहली बार अपराध करने वाले छोटे अपराधियों के लिए इस प्रकार की सज़ा का दायरा बढ़ाने की जरूरत है। नए कानूनों में कुछ अन्य ध्यान देने योग्य विसंगतियां भी हैं जिनका उचित समाधान किए जाने की आवश्यकता है।
यह सत्य है कि किसी भी नए कानून को परिपक्व होने और उसके प्रवर्तन को प्रणालियों में मजबूत जड़ें जमाने में दशकों लग जाते हैं। समय पर समीक्षा, कानूनों में जरूरत के हिसाब से फेरबदल और कड़ी निगरानी किसी भी अधिनियम की सफलता की कुंजी है। यह भी समझना होगा कि राज्यों के पास पर्याप्त वित्तीय संसाधन नहीं हैं और उनके पास सीमित तकनीकी और कानूनी जानकारी है। नए आपराधिक कानूनों का समय पर सार्थक कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए राज्यों को हमेशा केन्द्रीय एजेंसियों से सहायता की दरकार होगी।
प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा है कि विधायिका ने नए आपराधिक कानून बनाकर अपना कर्तव्य निभाया है, अब न्यायपालिका, पुलिस और अन्य हितधारकों की बारी है कि वे इन कानूनों का स्वामित्व ग्रहण करें और लोगों को न्याय सुनिश्चित करने हेतु इन्हें पूर्णरूपेण लागू करें।

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लेखक हरियाणा के पूर्व पुलिस महानिदेशक हैं।

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