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पूर्वोत्तर में शांति के प्रयासों को मिली गति

07:47 AM Jan 03, 2024 IST
उल्फा से त्रिपक्षीय समझौता

शशिधर खान

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नया साल पूर्वोत्तर शांति के लिए शुभ माना जा सकता है क्योंकि 2023 समाप्त होते-होते असम और उत्तर पूर्वी राज्यों में 40 वर्षों से हिंसा का पर्याय बने यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असोम (उल्फा) के साथ त्रिपक्षीय समझौता शांति के एक नए युग की शुरुआत है। नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (एनएससीएन-आईएम) को छोड़ दें तो उल्फा के साथ शांति समझौते के बाद पूर्वोत्तर में हिंसा और अलगाववाद पर आधारित उग्रवाद का लगभग खात्मा होने का विश्वास है। नागालैंड और मणिपुर में सक्रिय एनएससीएन के बाद पूर्वोत्तर क्षेत्र का सबसे मजबूत और खूंखार उग्रवादी गुट उल्फा का नेटवर्क असम ही नहीं समूचे पूर्वोत्तर तक पसरा हुआ था। इसलिए उल्फा के साथ शांति समझौता सही मायने में ऐतिहासिक और बहुत बड़ी उपलब्धि है।
यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असोम (उल्फा) के अस्तित्व में आने की कहानी 1980 के दशक के असम छात्र आंदोलन के समय से जुड़ी है। हिंसा की बदौलत ‘स्वाधीन असोम’ की मांग भारत सरकार से मनवाने के लिए 1979-80 में उल्फा की नींव रखी गयी। असम छात्र आंदोलन की आड़ में यह ऐसा उग्रवाद पनपा, जिसे भारत राष्ट्र से अलग ‘स्वाधीन असोम’ चाहिए था, जहां असमिया के अलावा कोई अन्य न रहे।
यह अच्छा संयोग रहा कि 29 दिसंबर को दिल्ली में हुए त्रिपक्षीय समझौते के समय उल्फा के संस्थापक अरविंद राजखोबा मौजूद थे, जो अभी-भी उल्फा के प्रमुख हैं। समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले को अन्य उल्फा नेता अनूप चेतिया और सशाधर चौधुरी भी संस्थापकों में से हैं। यह त्रिपक्षीय समझौता केंद्र, राज्य सरकार और उल्फा नेताओं के बीच हुआ है। ये लोग हिंसा छोड़कर भारतीय संवैधानिक दायरे के अंतर्गत राष्ट्रीय मुख्यधारा में शामिल होने को राजी हुए हैं। वर्ष 2009 में बांग्लादेश से प्रत्यर्पण संधि के बाद इन उल्फा नेताओं को भारत लाया गया। पहले कुछ दिन हिरासत में रखा गया, फिर शांति वार्ता शुरू हुई। 2011 से शांति वार्ताओं की जानकारी आने लगी। खुफिया अधिकारियों के प्रयास विफल होने के बाद असम के गणमान्य नागरिकों की भी मदद मिल गयी, जिसमें प्रख्यात असमिया लेखिका ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता इंदिरा गोस्वामी भी शामिल थीं। मगर कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में उत्तर पूर्व में शांति और विकास के क्रम में 9 शांति समझौते उल्लेखनीय हैं, जो पूर्वोत्तर शांति वार्ता में कई दशकों से रोड़े थे। 2019 में इसकी शुरुआत त्रिपुरा के एनएलएफटी (नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा) से हुई। उसके बाद 2020 का बोडो और ब्रू समझौता, 2021 में कर्बी एंग्लोंग, 2022 का आदिवासी समझौता के अलावा मणिपुर के सबसे पुराने उग्रवादी गुट युनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) के साथ समझौता (2023) गिनाया जा सकता है। असम-मेघालय और असम-अरुणाचल सीमा विवाद कई वर्षों से हिंसक झड़पों का कारण बना हुआ था। 2023 में इस पर भी केंद्र ने राज्य सरकारों में सहमति बनायी।
शुरू से ही वार्ता विरोधी उल्फा संस्थापकों में से एक परेश बरूआ के बारे में कोई पक्की सूचना नहीं है कि वह अपनी हिंसक गतिविधियां म्यांमार से चलाता है या बांग्लादेश से।
जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी, तब उल्फा के विषय में रिपोर्ट थी कि इसका अड्डा बांग्लादेश में है। 1993 में प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव से मिलने अपने गुप्त अड्डे से निकलकर उल्फा नेतागण दिल्ली आए थे, यह जानकारी अभी समझौते के समय असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने दी। उनसे पहले असम के मुख्यमंत्री रहे सर्वानंद सोनोवाल (अभी केंद्रीय मंत्री) उल्फा नेताओं को गुवाहाटी से लेकर 29 दिसंबर को दिल्ली आए थे।
2011 में जब उल्फा के राजखोवा गुट की केंद्र से वार्ता शुरू हुई तो गुवाहाटी से उल्फा नेताओं से मिलकर दिल्ली लौटी लेखिका इंदिरा गोस्वामी ने असम भवन में बातचीत के दौरान मुझसे कहा- ‘दोनों पक्षों में से किसी को पीपुल्स कन्सलटेटिव ग्रुप (पीएसजी) पर भरोसा नहीं है। वार्ता बिना शर्त शुरू होने की बात थी और उल्फा तथा केंद्र दोनों अपनी-अपनी शर्तों में ही उलझे रहे।’ पीएसजी का गठन इंदिरा गोस्वामी की अध्यक्षता में असम के गणमान्य नागरिकों को मिलाकर उल्फा को केंद्र के साथ वार्ता के टेबल पर आने के लिए किया गया था। केंद्र के वार्ताकार पूर्व खुफिया प्रमुख पीसी हलदर को उल्फा का विश्वास जीतने में सफलता नहीं मिली। उस समय तक यही चर्चा थी कि उल्फा को बांग्लादेश और म्यांमार से शह मिलती है। प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के शासनकाल के दौरान भूटान सरकार की मदद से उल्फा पर काबू पाने में काफी हद तक सफलता मिली।
असम हिंसा का अगर छात्र आंदोलन के समय से जिक्र करें तो उबरे असम गण परिषद उभरे नेता सत्ता में आए। मगर जनता का विश्वास नहीं रख पाए और उल्फा के प्रति नरम बने रहे।

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