Pauranik Kathayen : माता सीता को कैकेयी ने मुंह दिखाई में दिया था यह भवन, हनुमानजी को भी नहीं थी अंदर जाने की अनुमति
चंडीगढ़, 27 दिसंबर (ट्रिन्यू)
अयोध्या को भगवान राम का जन्मस्थान कहा जाता है, जहां हजारों की संख्या में मंदिर बने हुए हैं। इन मंदिरोंं को देखने के लिए पर्यटक देश-विदेश से आते हैं। उन्हीं में से एक कनक भवन भी है, जो अपनी अनूठी कलाकृति के लिए प्रसिद्ध है।
अयोध्या के पवित्र शहर के बीच में भगवान राम और देवी सीता को समर्पित एक पूजनीय मंदिर कनक भवन स्थित है। पौराणिक कथाओं से भरपूर और जटिल वास्तुकला से सुसज्जित, कनक भवन भक्तों और पर्यटकों को बहुत आकर्षित करता है। किंवदंती है कि कनक भवन को देवी सीता की सास रानी कैकेयी ने भगवान राम से विवाह के बाद मुंह दिखाई उपहार के रूप में दिया था। यह मंदिर भगवान राम और देवी सीता की बेहद खूबसूरत मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है, जिन्हें सोने के एक ही ब्लॉक से बनाया गया है।
रानी कैकेयी ने उपहार में क्यों दिया भवन?
पुराणों के अनुसार, त्रेता युग में भगवान श्री राम माता सीता के लिए एक सुंदर महल बनवाना चाहते थे। उसी समय रानी कैकेयी को भी स्वप्न में एक भव्य महल दिखाई दिया, जिसके बाद उन्होंंने राजा दशरथ से आग्रह करके कनक भवन बनवाया। इस मंदिर का निर्माण देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा जी की देखरेख में किया गया था। जब भगवान राम नंदनी वैदेही माता सीता को व्याह करके अयोध्या लाए तो कैकयी उनके रूप को देखकर मोहित हो गई और उन्हें मुंह दिखाई में कनक भवन उपहार में दे दिया।
भगवान कृष्ण ने भी किए थे दर्शन
कहा जाता है कि भगवान श्री राम माता सीता के साथ आज भी इस भवन में भ्रमण करते हैं। कनक भवन मंदिर का इतिहास किंवदंतियों और पुरातनता से भरा हुआ है, जो पारंपरिक मंदिरों की बजाए भारत के बुंदेलखंड और राजस्थान क्षेत्रों के शानदार महलों जैसा दिखता है। कहा जाता है कि मंदिर का पुनर्निर्माण सर्वप्रथम द्वापर युग की शुरुआत में राम के पुत्र कुश ने करवाया था, उसके बाद राजा ऋषभदेव ने इसका जीर्णोद्धार करवाया और कलियुग से पहले 614 ई. में भगवान कृष्ण ने स्वयं यहां दर्शन किए थे।
कनक भवन में सिर्फ हनुमान को थी अनुमति
अक्सर माता सीता और श्रीराम के साथ हनुमान जी की मूर्ति भी स्थापित की जाती है लेकिन इस मंदिर के गर्भगृह में हनुमान जी मौजूद नहीं हैं। मान्यता है कि भगवान श्री राम के अलावा किसी अन्य पुरुष को कनक भवन में आने की अनुमति नहीं थी। हालांकि राम के प्रिय भक्त हनुमानजी भवन के आंगन में रहते थे लेकिन वह भवन के अंदर प्रवेश नहीं करते थे।