सेना के साये में चुनाव की ओर पाकिस्तान
अब जबकि पाकिस्तान आगामी राष्ट्रीय चुनाव की तैयारी में लगा है, नवनियुक्त सेनाध्यक्ष जनरल असीम मुनीर ने आनन-फानन में ऐसा पक्का इंतजाम कर डाला है कि लोकप्रिय क्रिकेटर से राजनेता और फिर प्रधानमंत्री बने इमरान खान चुनाव में भाग न ले सकें। इसके वास्ते गिरफ्तारी उपरांत उन्हें सजा और जेल करवा दी। इमरान के प्रति जनरल मुनीर की चिढ़ काफी पुरानी है। पिछले सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा ने उन्हें आईएसआई मुखिया का प्रतिष्ठित पद देने का प्रस्ताव किया था लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान चूंकि अपने चहेते ले. जनरल फैज़ हमीद को बैठाना चाहते थे इसलिए उन्होंने जनरल बाजवा का फैसला उलटकर ले. जनरल फैज़ हमीद को आईएसआई प्रमुख बना डाला। इसलिए यह केवल वक्त की ही बात थी कि जनरल बाजवा इमरान खान की प्रधानमंत्री पद से विदाई सुनिश्चित करवा देते, लिहाजा संसद में बहुमत न होने के बाद इमरान को इस्तीफा देना पड़ा।
इसके बाद जनरल बाजवा ने नवम्बर, 2022 में सेवानिवृत्ति उपरांत अपने खासमखास ले. जनरल असीम मुनीर को शाहबाज़ शरीफ सरकार से सेनाध्यक्ष बनवा दिया। यह जनरल बाजवा ही थे, जिन्होंने भारत से पर्दे के पीछे वार्ताओं की राह खुली रखी। इसी बीच शाहबाज़ शरीफ और उनके वित्त मंत्री इशाक डार के अथक प्रयासों ने पाकिस्तान के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष से राहत प्राप्ति हेतु बाइडेन प्रशासन की सिफारिशें अर्जित की। तत्पश्चात सऊदी अरब और यूएई ने आर्थिक मदद देने का अपना वादा निभाया। हालांकि, पाकिस्तान अभी भी ‘खैरात का अंतर्राष्ट्रीय कटोरा’ बना हुआ है, जिसका गुजारा बड़े-बड़े विदेशी चंदे पाकर चल रहा है। मजेदार यह कि यह विदेशी मदद पाने के पीछे एक बड़ी वजह है, यूक्रेन तक पश्चिमी हथियार पहुंचाए जाने में पाकिस्तान की भागीदारी। अमेरिकी प्रशासन ने इमरान खान के प्रति अपनी नापसंदगी कभी नहीं छिपायी, खासकर जब उन्होंने यूक्रेन पर रूस की चढ़ाई से ऐन पहले बहुप्रचारित मास्को यात्रा में राष्ट्रपति पुतिन से मुलाकात करना चुना।
इस दौरान, पाकिस्तान की संवैधानिक रीति के मुताबिक प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ ने अपना इस्तीफा सौंप दिया। विपक्ष के नेता को साथ लेकर शाहबाज शरीफ ने बलोचिस्तान से 2018 में चुनकर आए और काफी पढ़े-लिखे पश्तून सीनेटर अनवर-उल-हक को अगले चुनाव तक अंतरिम प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव दिया। वे ककड़ समुदाय से हैं और यह बलोचिस्तान के उन चंद कबीलों में से एक है, जिसके रिश्ते पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान से मधुर रहे हैं। यह एकदम स्पष्ट है कि इन परिस्थितियों में, अंतरिम सरकार बेझिझक सेनाध्यक्ष मुनीर की इच्छाओं का पालन करेगी। इस बीच अमेरिका को खुश रखने के लिए पाकिस्तान यूक्रेन तक हथियार पहुंचाने में लगातार साथ निभा रहा है। यह देखना बाकी है कि क्या रूस पाकिस्तान को घटी दरों पर तेल आपूर्ति जारी रखेगा।
अपने उस्ताद जनरल बाजवा के बरअक्स, जो कि भारत को लेकर अधिक दमगज़े नहीं मारते थे, मौजूदा सेनाध्यक्ष असीम मुनीर ने भारत को ‘क्षेत्रीय शांति के लिए खतरा’ बताया है, और नई दिल्ली में जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी से कार्रवाई करने मांग भी की है। मुनीर के उक्त शब्द 14 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाने के अवसर पर दिए भाषण के हैं। उम्मीद है, वे अपने पूर्ववर्तियों, जनरल परवेज़ मुशर्रफ और जनरल बाजवा की लीक पर चलते हुए आतंकवाद को हवा देने से परहेज़ रखना चाहेंगे।
भारत अब अनेक पड़ोसी मुल्कों से व्यापार में लेन-देन रुपये में करने पर काम कर रहा है। यदि पाकिस्तान ने मौजूदा नीतियां कायम रखीं तो वह दक्षिण एशिया में और ज्यादा अलग-थलग पड़ जाएगा, यह बात रावलपिंडी स्थित सेना मुख्यालय और इस्लामाबाद में बैठी सरकार समझे। पाकिस्तान के ‘सदाबहार दोस्त’ चीन का विदेशी मुद्रा भंडार 3176.5 बिलियन डॉलर है और वह चाहता तो अपने ‘सदाबहार मित्र’ पाकिस्तान की जरूरतों के लिए इसमें से 0.01 फीसदी मदद कर सकता था।
जनरल मुनीर कोई पहले सेनाध्यक्ष नहीं होंगे जिन्हें अपने नेतृत्व को राजनीतिक प्रतिरोध की चिंता करनी पड़ेगी। न केवल उन्हें लोगों के रोष का बल्कि खुद सेना के अंदर इमरान समर्थक गुट का ख्याल रखते हुए सावधान रहना पड़ेगा। उनका मुख्य ध्यान पहले-पहल उन चुनौतियों से निपटने पर केंद्रित रहेगा जो इमरान खान को जेल में डालने पर बनी हैं। कोई शक नहीं इमरान खान को जनता के बड़े तबके की हिमायत हासिल है। फिर भी, पैसे के लालच या दबावों के कारण अगर उनकी पार्टी के नेता यदि उनके विरोधियों से जा मिलते हैं, तो इमरान खान के जनाधार में सेंध लगेगी। वित्तीय अनियमितताओं के अपराध में सजा होने के बाद इमरान खान सलाखों के पीछे हैं। इतना जरूर है कि जिस ढंग से उन्हें हटाया गया उसको लेकर लोगों में खासा रोष है।
पाकिस्तान की वर्तमान अस्थायी सरकार को अमेरिका और उसके सहयोगियों का समर्थन रहेगा। उम्मीद है कि पाकिस्तान सैन्य प्रतिष्ठान के ज़हन में यह बात रहेगी कि जहां भारत उसके अंदरूनी मामलों में दखल नहीं देगा, वहीं पाकिस्तानी सेना प्रायोजित आतंकवाद के जरिए भड़काने पर इतना सामर्थ्य और संसाधन रखती है कि प्रतिक्रिया तगड़ी रहेगी। पाकिस्तानी सेना फिलहाल देश के राष्ट्रीय जनजीवन में निरंतर हावी रहने और आगामी राष्ट्रीय चुनाव का परिणाम निर्णायक रूप से ढालने की जुगत में जमीन तैयार करने मे व्यस्त है।
लेखक पूर्व वरिष्ठ राजनयिक हैं।