आत्मघाती है हद से ज्यादा सोचना
डॉ. मोनिका शर्मा
आजकल हर कोई यह कहता नजर आता है कि 'मैं किसी बात को लेकर ज्यादा कुछ नहीं सोचना चाहता।' 'मुझे इस मामले को लेकर कोई टीका-टिप्पणी नहीं करनी।' 'उस घटना को लेकर किसी तरह का कोई विचार अपने मन में नहीं लाना।' बावजूद इसके हम कुछ ज्यादा ही सोचने लगे हैं। हर पल सोचने लगे हैं। कुछ न कुछ दिमाग में चलता ही रहता है। कई बातें मन में हलचल मचाए रखती हैं। जबकि सब कुछ जरूरी नहीं होता। बहुत सारे गैर-जरूरी विचार भी मन में उछल-कूद करते रहते हैं। यह आम सी बात लगती है पर गहराई से समझने पर इसका खास असर नजर आता है। मन की सेहत से लेकर शरीर की सेहत सब कुछ इससे प्रभावित होता है। दृष्टिकोण के बनने से लेकर सामाजिक जीवन तक इससे अछूता नहीं रहता। इसीलिए हद से ज्यादा सोचने की आदत पर लगाम लगाना जरूरी है। कुछ बातें जो विचारों से भंवर से बचा सकती हैं।
व्यस्त रहना
सार्थक कार्यों में व्यस्त रहना हमें ओवरथिंकिंग से बचाता है। हां, इतनी सजगता जरूरी है कि 'बिजी विदाउट बिजनेस' वाली व्यस्तता के फेर में न पड़ जाएं। देखने में आता है कि आजकल अधिकतर लोग इस जुमले के मुताबिक ही व्यस्त हैं। खासकर सोशल मीडिया पर मौजूदगी में ज्यादा समय बीत रहा है। वहां हर पल सामने आने वाले अजब-गजब समाचार और जानकारियां चाहे-अनचाहे मन में हलचल मचाते हैं। ऐसे में सही ढंग से मन और मस्तिष्क को व्यस्त रखकर ज्यादा सोचने के भंवर में फंसने से बचा जा सकता है। वर्तमान पर ध्यान देकर खुद को व्यस्त रखना सबसे सहज राह है।
हालात को स्वीकारें
परिस्थितियों के प्रति स्वीकार्यता हमें बेवजह की सोच में गुम हो जाने के जाल में फंसने से बचाती है। कई बार जिंदगी के साथ जो है, जैसा है के भाव से चलना बेहद जरूरी हो जाता है। उलझन भरे हालात में बहुत ज्यादा सोच कर भी जब कोई राह नहीं निकाली जा सकती तो कुछ समय के लिए ठहर जाने में कोई बुराई भी नहीं। साथ ही यह समझना भी जरूरी है कि अकेले आप ही नहीं बल्कि बहुत से लोग अनचाहे हालात से जूझ रहे हैं। ऐसी बातें हमें अपनी परिस्थितियों को सहजता से स्वीकार करने का मन बनाने में मददगार बनती हैं। साथ ही आगे के लिए भी एक सकारात्मक भाव मन में लाती हैं।
शारीरिक सक्रियता
किसी भी तरह की एक्सरसाइज, योग, सैर या कोई खेल बेवजह के विचारों पर लगाम लगाने में बहुत हद तक कारगर हैं। ऐसी एक्टिविटीज करते हुए आम तौर पर हम अपने परिवेश से जुड़ते हैं। यह सब कुछ हमें मन के भीतर मची उथल-पुथल से बाहर लाता है। इतना ही नहीं, शारीरिक सक्रियता से होने वाली थकान के चलते अच्छी नींद का आना भी आपको ओवरथिंकिंग से बचाता है। देखने में आता है कि बहुत ज्यादा सोचने वाले लोग अच्छी नींद नहीं ले पाते। ऐसे में शारीरिक रूप से सक्रिय रहना इंसान को हर तरह से पॉजिटिव बनाने में ही मददगार है।
मन का ठहराव
ध्यान और मेडिटेशन इस मोर्चे पर आपके लिए बेहद मददगार साबित हो सकते हैं| आंकड़े बताते हैं कि आज हर पांच में से एक इंसान ओवरथिंकिंग का शिकार है। ऐसे में मन के भीतर सुकून लाने के प्रयास जरूरी भी हैं। वरना यह आदत कई गंभीर बीमारियों की ओर भी धकेल सकती है। निराशा का शिकार बना सकती है। वर्तमान या बीत चुके समय में झेले गए भावनात्मक ट्रॉमा को भूलने के बजाय ओवरथिंकिंग उस पीड़ा से निकलने ही नहीं देती। मन दुख के उस चक्रव्यूह से निकलने से बजाय और फंसता जाता है, फंसा ही रहता है। यह स्थिति निर्णय लेने में अस्पष्टता और उलझन लाती है। विचारों का यह चक्रव्यूह जिंदगी के हर पहलू को प्रभावित करने लगता है। ऐसे में मन के ठहराव के लिए ध्यान का सहारा लिया जा सकता है। ध्यान का अभ्यास हमारे विचारों में स्पष्टता लाता है। दोषारोपण के बजाय स्वयं का मूल्यांकन करने और अपने भीतर झांकने का दृष्टिकोण देता है। मन-मस्तिष्क ज्यादा सोचने के बजाय किसी एक पल में अपने काम को बेहतर करने पर केन्द्रित होने लगता है।