हमारी आज़ादी और उनका कारोबार
आलोक पुराणिक
चालू बिजनेस स्कूल ने एमबीए के छात्रों के लिए निबंध प्रतियोगिता का आयोजन करवाया, विषय था—आज़ादी का कारोबार। प्रथम पुरस्कार विजेता निबंध इस प्रकार है :-
आज़ादी जैसा कि सब नहीं जानते हैं कि बहुत बड़ा कारोबार था और है और रहेगा। आज़ादी का आंदोलन कई नेताओं के लिए इतना बड़ा कारोबार साबित हुआ कि उनकी आने वाली कई पीढ़ियों की मौज हो गयी, सबको नौकरी मिलती गयी, विधायक की, मंत्री की वगैरह-वगैरह। तो हम कह सकते हैं कि जिन नेताओं ने आज़ादी का कारोबार सही समय पर सैट कर लिया, उनकी कई पीढ़ियों की मौज रही।
आज़ादी अब भी कारोबार है, आज़ादी मिलने के कई सालों बाद। आज़ादी के दिन कई तरह की सेल चला करती हैं, मोबाइल पर सेल, शर्ट पर सेल, पैंट पर सेल, कार पर सेल, यानी नागरिक को समझ में आता है कि आज़ादी का सच्चा मतलब यही है कि कुछ न कुछ खरीदा जाये। भले ही जरूरत हो या न हो, खरीदा जाये। दरअसल, अब खरीदी के काम को जरूरत से बिलकुल ही आज़ाद कर दिया गया है। इस कदर आज़ाद कर दिया गया है कि बंदा पहले खरीद लेता है कि फिर तय करता है कि जरूरत है या नहीं। जरूरत का खरीद से कोई रिश्ता न बचा। बल्कि कई मामलों में यह रिश्ता एकदम उलटा हो गया है, जिसे जरूरत नहीं है, वह सबसे ज्यादा खरीद रहा है। बेटे-बेटी अमेरिका में सैटल्ड हैं, पर मां-बाप यहा इंडिया में उनके लिए फ्लैट, मकान खऱीदे जा रहे हैं। हाल यहां तक है कि बाप की मौत के बाद बेटा बाप का आखिरी संस्कार करने भी न आ पाता, बस मजबूरी में एक बार आना पड़ता है बाप के मकान को बेचकर कैश अंदर करने। इतना भर संबंध बच रहा है, इसे कहते हैं कि धीमे-धीमे रिश्तेदारी किसी भी किस्म की भावना से आज़ाद हो रही है। कैश आन डिलीवरी की तरह हो रही भावना, जब मिलें तब डिलीवर कर दो-शुभकामना या शोक संवेदना।
तो कुल मिलाकर सब कारोबारी है अब, आज़ादी समेत।
सेल का ही खेल है। स्वतंत्रता दिवस सेल का पर्व हो गया है, तरह-तरह की सेल।
मेरा टेंशन यह है जो 15 अगस्त के दिन कुछ खरीद न पाया सेल से, तो क्या उसे आज़ाद माना जायेगा या नहीं। आज़ादी का उल्लास तब ही प्रामाणिक माना जायेगा, जब जेब में रकम हो सेल में हिस्सा लेने के लिए। सेल का हिस्सा नहीं, तो तेरी खुशी का किस्सा प्रामाणिक न माना जायेगा।