हमारी संस्कृति अरण्य संस्कृति है : मोहन भागवत
समालखा, 22 सितंबर (निस)
समालखा के पट्टीकल्याणा में आयोजित अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के तीन दिवसीय कार्यकर्ता सम्मेलन का समापन आरएसएस के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत की उपस्थिति में हुआ। उन्होंने देशभर से आए सभी प्रतिनिधियों से आह्वान किया कि वे अपने क्षेत्रों में जनजाति बंधुओं के बीच व्यापक कार्य करें। सम्मेलन के तीसरे दिन की शुरुआत अरुणाचल प्रदेश की स्थानीय भाषा में प्रार्थना से हुई, जिसका भावार्थ ‘सबका कल्याण हो’ था। भागवत ने कहा कि हमारी संस्कृति अरण्य संस्कृति है।
प्रथम सत्र में वनवासी कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय अध्यक्ष सत्येंद्र सिंह ने कहा कि जनजाति समाज विशाल सनातनी समाज का आधार स्तंभ है। उन्होंने बताया कि हमारी जड़ें वनों से जुड़ी हुई हैं। प्राचीन वेदों की रचना में वनवासी समाज का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने इंगित किया कि जनजातियों के पर्व-त्यौहार और पूजा पद्धति सनातनी परंपरा से मेल खाते हैं। उन्होंने कहा कि अलग करने का षड्यंत्र अंग्रेजों का था, जिन्होंने इतिहास को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया। जनजाति समाज प्रकृति से उतना ही लेता है जितना उसे आवश्यकता होती है, इसलिए उनके अस्तित्व की रक्षा करना हम सबका कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में समाज में फैले भ्रामक विमर्शों से बचने के लिए हमें सही विमर्श स्थापित करना होगा, जो हमारी अरण्य संस्कृति पर आधारित हो।
डॉ. राजकिशोर हांसदा ने लव जिहाद और लैंड जिहाद की समस्याओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह मुद्दा झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र में बढ़ता जा रहा है। बांग्लादेशी मुसलमान संथाली लड़कियों को झांसे में लेकर विवाह कर रहे हैं, जिससे जनसंख्या बढ़ाने के साथ-साथ भूमि भी हड़पी जा रही है। इसके खिलाफ हमें अपने धर्म, बहन-बेटियों, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए एकजुट होना होगा।
नागालैंड के डॉ. थुंबई जेलियांग ने नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों में धर्मांतरण के विषय में कहा कि मतांतरित लोग स्थानीय लोगों को बाहरी साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। वनवासी कल्याण आश्रम द्वारा संचालित विद्यालयों के माध्यम से स्थानीय बच्चों को शिक्षा देने से धर्मांतरित लोग परेशान हो गए हैं।
छत्तीसगढ़ के संगठन मंत्री रामनाथ ने बस्तर में माओवादी समस्या पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि माओवादी जनजाति क्षेत्रों में लैंड माइंस बिछाकर स्थानीय लोगों को स्वतंत्रता से जीने नहीं दे रहे हैं।
सरकारी सुविधाओं से भी वंचित रहना पड़ रहा है क्योंकि कई लोगों के पास आधार कार्ड नहीं हैं। माओवादी अशिक्षा का फायदा उठाकर गांव वालों को अपने पक्ष में कर लेते हैं, इसलिए इन क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य के कार्यों की आवश्यकता है। मंच पर अन्य उपस्थित वक्ताओं में डॉ. मोहन भागवत, बिरहोर जनजाति के लिए काम कर रहे जशपुर के पद्मश्री जगेश्वर भगत और दोनों उपाध्यक्ष शामिल थे।