आराधना एवं आध्यात्मिक चिंतन का अवसर
चेतनादित्य आलोक
प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को अमावस्या कहा जाता है और सोमवार के दिन पड़ने वाली अमावस्या सोमवती अमावस्या कहलाती है। चैत्र अमावस्या हिंदू संवत्सर यानी विक्रम संवत का अंतिम दिन होता है। विक्रम संवत को हिन्दू कैलेंडर के नाम से भी जाना जाता है। चैत्र अमावस्या तिथि के बाद चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि आती है, जो नववर्ष का प्रथम दिन होता है। शास्त्रों में वर्णन है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही ब्रह्मदेव ने सृष्टि की रचना की थी। हिन्दू नववर्ष की पहली तिथि यानी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही ‘चैती नवरात्र’ या ‘चैत्र नवरात्र’ की शुरुआत भी हो जाती है। इस बार चैत्र महीने की अमावस्या तिथि सोमवार के दिन ही पड़ रही है। बता दें कि चैत्र महीने की अमावस्या का शास्त्रों में विशेष महत्व बताया गया है। वहीं, सोमवार के दिन पड़ने के कारण इसका धार्मिक-आध्यात्मिक महत्व और भी अधिक हो जाता है। सोमवती अमावस्या के दिन शास्त्रीय मान्यताओं का अनुकरण करते हुए देश भर में महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखकर बरगद एवं पीपल के वृक्ष की पूजा करती हैं। इस दिन पितरों के नाम से पूजा करने का बड़ा महत्व माना जाता है। वहीं उनके निमित्त ब्राह्मणों को भोजन कराने एवं दान करने का वर्णन पुराणों में मिलता है। सोमवती अमावस्या को शास्त्रों में संतान-सुख एवं धन-लक्ष्मी प्राप्ति के प्रयासों के लिए भी उत्तम दिन बताया गया है।
नदी या जलकुंड में स्नान करने का विधान
इस वर्ष चैत्र माह में सोमवती अमावस्या 8 अप्रैल को पड़ रही है। पुराणों के अनुसार, सोमवती अमावस्या का दिन स्नान, दान-पुण्य और दीपदान करने के लिए उत्तम है। इस दिन गंगा अथवा अन्य किसी पवित्र नदी या जलकुंड में सूर्योदय से पूर्व स्नान करने का विधान है। नदी या जलकुंड में स्नान करना संभव न होने पर घर पर ही जल में गंगा जल मिलाकर स्नान कर सकते हैं। शास्त्रों में इसे पितृ-कर्म के लिए भी विशेष दिन माना गया है। इस तिथि पर पितरों की संतुष्टि के लिए श्राद्ध का भी विधान बताया गया है। मान्यता है, इस दिन पीपल की पूजा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं। श्रीमद्भगवत गीता में उल्लेख है कि पीपल में भगवान श्रीहरि विष्णु का वास होता है। वहीं, पुराणों के मुताबिक पीपल ही एक ऐसा वृक्ष है, जिसमें एक तरह से पितृ एवं देवता दोनों का वास होता है। इसलिए चैत्र महीने की अमावस्या पर सुबह उठकर कच्चा दूध और तिल मिला जल पीपल के वृक्ष को अर्पित करने का विधान शास्त्रों में है। इस दिन जरूरतमंद लोगों को भोजन, कपड़े, फल, मिट्टी के जलपात्र और जूते-चप्पल एवं मंदिर में आटा, घी, नमक तथा अन्य वस्तुओं का दान करना पितृ के निमित्त उत्तम माना गया है।
महाभारत का प्रसंग
महाभारत ग्रंथ के अनुसार एक बार गंगापुत्र भीष्म ने पांडुपुत्र युधिष्ठिर को सोमवती अमावस्या का महत्व समझाते हुए कहा था कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करना समृद्धि व स्वास्थ्य के लिए बेहतर है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-आराधना करनी चाहिए। अन्य महीनों की अमावस्या तिथियों के समान ही चैत्र अमावस्या के दिन तर्पण करना पितरों के निमित्त अच्छा माना जाता है। साथ ही, पितृ दोष से निवारण के लिए पीड़ित व्यक्तियों को अमावस्या का व्रत करने का विधान भी शास्त्रों में बताया है।
ज्योतिषीय महत्व
चैत्र महीने की अमावस्या के ज्योतिषीय महत्व की बात करें तो इस दिन सूर्य और चंद्रमा के एक ही राशि में होने के कारण चंद्रमा प्रभावहीन हो जाता है, क्योंकि सूर्य आग्नेय तत्व को दर्शाता है और चंद्रमा शीतलता का प्रतीक है। जाहिर है कि सूर्य के प्रभाव में आकर चंद्रमा का प्रभाव शून्य हो जाता है। इसलिए इस दिन मन को एकाग्रचित्त करने के लिए पूजा-आराधना के अतिरिक्त ध्यान, प्राणायाम एवं आध्यात्मिक चिंतन आदि करना लाभकारी होता है।
पूजन विधि
सोमवती अमावस्या के दिन प्रातः उठकर व्रत और पूजा का संकल्प लें। तत्पश्चात भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें। पूजा के दौरान भगवान शिव को प्रिय अक्षत, बेलपत्र, भांग, मदार, धूप, दीप, शहद एवं नैवेद्य आदि अर्पित करें। साथ ही, इस अवसर पर माता पार्वती को अक्षत, सिन्दूर, फूल, फल, धूप, दीप एवं शृंंगार सामग्री आदि अर्पित करें। उसके बाद शिव चालीसा एवं पार्वती चालीसा का पाठ अथवा श्रवण करें। दोनों की आरती करने के बाद प्रसाद का वितरण करें। ब्राह्मणों एवं जरूरतमंद लोगों को भोजन कराने तथा दान-दक्षिणा आदि देने के बाद अंत में स्वयं पारण करें।