गांठ का धन ही सहेजेगा आपका बुढ़ापा
हाल ही में एक बीमा कम्पनी के सर्वेक्षण पर नजर पड़ी। खास बात यह कि इसके नतीजे चौंकाने वाले थे। इसमें बताया गया था कि जो लोग पचास वर्ष से ऊपर हैं, उनमें से बहुतों को दुःख है कि उन्होंने अपनी सेवानिवृत्ति के बाद के जीवन के बारे में गंभीरता के साथ नहीं सोचा। आय के साधन जब नहीं रहेंगे तो जीवन कैसे चलेगा, इस पर ध्यान ही नहीं दिया। उस हिसाब से की गई बचत और उसकी योजना भी नहीं बनाई। इनमें से हर तीसरे व्यक्ति का कहना था कि उसकी जो बचत है, वह तो मात्र पांच साल में ही खत्म हो जाएगी। फिर आगे क्या होगा, इसकी भारी चिंता है।
हालांकि, सर्वे में देखा गया कि महिलाएं इस बारे में ज्यादा जागरूक हैं। इसमें यह बात भी सामने आई कि पांच में से दो लोगों ने अपनी सेवानिवृत्ति को ध्यान में रखते हुए कहीं कोई निवेश तक नहीं किया है। इनमें से अधिकांश लोगों का मानना था कि उनके पास अपनी सम्पत्ति है। बुरे वक्त में वह काम आएगी। साथ ही नौकरी के बाद उनके बच्चे उनका ध्यान रखेंगे। अगर सम्पत्ति के बारे में बात करें तो या तो वह किराए पर हो तो कुछ आमदनी हो सकती है, या फिर उसे बेचना पड़ेगा। बेची गई सम्पत्ति के पैसे कितने दिन चलेंगे।
पुरानी कहावत है कि अगर नियमित आय न हो, तो भरी हुई खत्तियां भी खाली हो जाती हैं। इसके अलावा आज की स्थिति को देखते हुए कितने बच्चे ऐसे हैं जो अपने माता-पिता की आर्थिक जरूरत, उनका चिकित्सा व्यय तथा अन्य खर्चों का भार उठा सकते हैं। वैसे भी यदि आप आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं हैं, तो हमेशा दूसरों पर आश्रित रहना पड़ता है, और बुढ़ापा काटे नहीं कटता। बच्चों के अपने घर-परिवार हो जाते हैं। उनकी अपनी जरूरतें होती हैं। ऐसे में वे अपनी जरूरतें पूरी करें, अपने परिवार को देखें या माता-पिता का खर्च उठाएं। और अपने यहां बुजुर्गों की स्थिति किसी से छिपी भी नहीं है। बहुत बार बच्चे ऐसा मुंह मोड़ते हैं कि देखभाल करना तो दूर, पलटकर देखते भी नहीं हैं। इसलिए बच्चे ही सब कर लेंगे, यह सोच कोई अग्रगामी सोच भी नहीं है। इससे आफतें ही बढ़ सकती हैं।
बच्चे अच्छे और देखभाल करने वाले हों यह एक बोनस प्वाइंट है। मगर ऐसा हमेशा ही होगा, इसे कौन बता सकता है। बच्चों की क्या गारंटी है। जीवन कितना लम्बा है, आपके कितने खर्चे हैं, इसका हिसाब न बच्चे लगा सकते हैं, न इसे बच्चों के ऊपर छोड़ा ही जाना चाहिए। कायदे से तो अगर पचास की उम्र में भी बचत की शुरुआत कर ली जाए, खर्चे कुछ कम किये जाएं तो कुछ सहारा तो रहेगा। अफसोस है कि लोगों ने इस बात को नहीं ध्यान में रखा।
इस सर्वेक्षण को भारत के अट्ठाईस शहरों में किया गया। इसमें दो हजार से अधिक लोगों ने भाग लिया। इसके आंकड़ों पर जाएं तो हमारी आबादी के हिसाब से बहुत बड़ी संख्या ऐसी दिखती है जिन्होंने भविष्य के बारे में नहीं सोचा है। यह एक चिंताजनक बात है। पंचतंत्र में कहा गया है कि जिनके पास कंचन नहीं, कामिनी भी उनकी नहीं रहती। यानी कि अगर आप के पास अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए धन नहीं है, आप हमेशा दूसरों के सामने हाथ फैलाते हैं तो परिवार भी साथ छोड़ देता है। ऐसे सैकड़ों उदाहरण देखने में भी आते हैं।
इस संदर्भ में अपने साथ काम करने वाली एक लड़की का ख्याल आता है। वह भी अब पचास के आसपास होगी। वह भी कहती कि मैडम बचत करके क्या करेंगे, पहले लाइफ को इंजॉय तो कर लें। इस एंजॉय करने में वह खुद ही बताती थी कि वेतन से बाहर खाने-पीने, घूमने के बाद जो कुछ बचता है उससे वह कभी नई कार खरीदती है, कपड़े, मोबाइल, अथवा अन्य चीजें। फिर जो कुछ बचता है, उससे हर साल कोई न कोई विदेश यात्रा करती है। वह कहती थी कि बचत के लिए प्रोविडेंट फंड तो है न। वह यह भूल गई कि प्रोविडेंट फंड में राशि तभी तक जमा हो पाती है, जब तक कि नौकरी हो। आजकल नौकरियों का जो हाल है, उसमें आज नौकरी है कल नहीं। स्थाई नौकरियां या तो जा चुकी हैं। जहां बची हैं, वे धीरे-धीरे खत्म हो रही हैं। अपने देश में बूढ़ों के लिए या जिनकी नौकरी चली जाए उनके लिए पश्चिम की तरह कोई सोशल सिक्योरिटी भी नहीं है। ऐसे में ले-देकर यही बात सामने आती है कि आप जो कुछ कमाएं उसे आज उड़ाने की जगह भविष्य के लिए भी एक बड़ा हिस्सा बचाएं। उन्हें उन योजनाओं में लगाएं जिनसे आगे अच्छी आय हो सके और आपका जीवन सुचारु रूप से चल सके।
संयोग से पिछले दिनों इस लड़की से मुलाकात हुई थी। वह परेशान थी क्योंकि उसके पास न नौकरी थी और उतनी बचत भी नहीं कि घर चल जाए। उसका चमकता चेहरा आभाहीन हो चुका था। उसने जो कुछ कहा उससे घबराहट भी हुई। उसका कहना था कि आने वाले दिनों में उसके पास मकान का किराया देने तक के पैसे नहीं बचेंगे। शायद वह भी पछताती होगी कि समय पर क्यों कुछ नहीं सोचा।
हालांकि इस सर्वेक्षण के मुकाबले महिलाएं बचत को लेकर ज्यादा जागरूक थीं। इसमें से कुल बावन प्रतिशत महिलाएं सुरक्षित भविष्य के लिये इसे बहुत जरूरी भी मानती हैं। इसी में दस में से नौ लोगों ने इस बात पर बहुत दुःख भी जाहिर किया था कि उन्होंने सही समय पर अपने भविष्य के बारे में नहीं सोचा और बचत नहीं की।
सर्वेक्षण में जो बात अच्छी लगी वह यह कि इसमें मिलेनियल्स ने भी भाग लिया था। वे बचत को लेकर ज्यादा जागरूक नजर आए। यानी कि युवा पीढ़ी अपने भविष्य की चुनौतियों को समझ रही है। वह भविष्य को लेकर जागरूक है और बचत भी करना चाहती है। जो लोग इस बारे में जागरूक नहीं दिखे, वे हैं जो अस्सी के दशक में बड़े हो रहे होंगे। यह वह जमाना था, जब अपने देश में खाओ-पिओ मौज उड़ाओ की संस्कृति का बहुत विकास हुआ था। आज जिओ, कल की चिंता मत करो। ये सब चार्वाक के शिष्य मालूम होते हैं जिन्होंने कहा था कि ऋण लेकर भी अगर घी पीना पड़े, तो भी ऐसा करो। जबकि हम जानते हैं कि अपनी मेहनत की कमाई को हम जिन उत्पादों को खरीदने पर खर्च कर रहे हैं, इतरा रहे हैं, अपने को ताकतवर समझ रहे हैं, उनसे कम्पनियों का मुनाफा दिन दूना- रात चौगुना बढ़ता है। लेकिन यदि आप किसी आपदा में फंसते हैं, तो ये कम्पनियां कभी इसलिए आपको बचाने नहीं आएंगी कि आप उनके कितने भरोसेमंद ग्राहक रहे हैं। ऐसे वक्त में सिर्फ आपकी जमा-पूंजी ही आपको सुरक्षा कवच उपलब्ध कराएगी। इसलिए बचत के मामले में बूंद-बूंद से घट भरे की कहावत को याद रखना चाहिए। उसको व्यावहारिक रूप भी देना चाहिए। इसके अलावा यह भी कि किसी भी मुसीबत में आपके पास का धन ही आपका सबसे सच्चा हितैषी और मित्र साबित होता है। वरना तो मुश्किल वक्त में तो अपने भी मुंह फेरने में देर नहीं करते।
लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।