मुख्यसमाचारदेशविदेशखेलबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाब
हरियाणा | गुरुग्रामरोहतककरनाल
रोहतककरनालगुरुग्रामआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकीरायफीचर
Advertisement

एक दिन दिवस और बाकी दिन विवश

07:58 AM Sep 13, 2023 IST
Advertisement

तिरछी नज़र
सूर्यदीप कुशवाहा

हिंदी दिवस आये और अंग्रेजी माध्यम स्कूलों व सरकारी विभागों में इसका उत्सव न मनाएं, ऐसा सपने में भी नहीं हो सकता। इन स्कूलों में बाकी दिनों अछूत होती है हिंदी। अन्य दिन हिंदी बोलने पर फाइन वसूल किया जाता है। एक दिन का स्वांग उत्साह के साथ होना ही चाहिए।
उस दिन हिंदी की बिंदी माथे पर लगाकर छोटे-बड़े वक्ता बोलते हैं। हिंदी सेम टू मॉम। आई लाइक हिंदी। आई लव हिंदी। हिंदी के मुखर स्वर फूट रहे हैं। यह देख सुनकर आज हिंदी माता खुश हैं। चलो आज सब उत्साह के साथ उत्सव मना रहे हैं। सबके मुख से आज गिने-चुने हिंदी के कुछ शब्द झर रहे हैं।
सरकारी ऑफिस में आयोजित हिंदी दिवस कार्यक्रम में सुनने वाले श्रोताओं के कान हिंदी खा रहे हैं। आज हिंदी खाने से अपच नहीं हो रही है। वक्ता भी बुलाए गए हैं जिनको जाते समय लिफाफे थमाए जाएंगे। इसीलिए वह भी माइक पकड़ के अकड़ रहे हैं। सरकारी कर्मचारी हिंदी दिवस से संबंधित स्लोगन का रट्टा दो दिन पहले ही लगाने लगते हैं। ताकि उस दिन उनकी जुबान हिंगलिश में न कांव-कांव करने लगे। विभिन्न विभागों में हिंदी को पानी पिलाया जाता है। हिंदी पखवाड़ा मनाया जाता है क्योंकि पिछवाड़ा से बजट आया है। बिन डकार ही पचता है। बाकी दिन हिंदी वालों को झिड़कते हैं। आज हिंदी-हिंदी का मंत्र जाप कर रहे हैं। हिंदी को स्ट्रांग बनाकर ही छोड़ेंगे।
हालांकि, अमलीजामा कहां पहनाया जाता है हिंदी की जगह मुंह में इंग्लिश को बैठाया जाता है। सभी अपने-अपने हिंगलिश वाले स्टाइल में हिंदी का उद्धार करने पर आमादा हैं। सब हिंदी का जुबानी लबादा ओढ़ लेते हैं। सोशल मीडिया में खूब बधाई और शुभकामनाएं दी जाती हैं। इंग्लिश आत्मा में बसी है और हिंदी मिथ्या-सी दिखती है। इंग्लिश सत्य है। कभी हिंदी शाश्वत थी लेकिन अब वर्ष भर खूंटी पर टंगी रहती है। बस हिंदी इसी विशेष दिवस पर खूंटी से उतारी जाती।
आज गली-मोहल्लों में हिंदी के जागरण चल रहे हैं। हिंदी के सम्मान में कार्यक्रम आयोजित करके इसका महिमामंडन करते नहीं अघा रहे हैं। बस हिंदी साल में ईद का चांद लग रही है। ओह सॉरी... ओह सॉरी... हिंदी का भाग्य जरूर चमकेगा। हर उत्सव में वक्ता उद्धार करने की वीणा बजाता है। फिर लिफाफा पाकर घर चला जाता है। हिंदी-हिंदी का शोर मचता है और बाकी दिन हिंदी बोलने से बचता है। उत्सव देख-सुनकर हिंदी भावविह्वल हो उठती है। भाषाई उच्चारण सुनकर सोचती है कि मैं हिंगलिश बोलने वालों में फंस गई। हिंदी दिवस फिर भी हमारी हिंदी कितनी विवश।

Advertisement

Advertisement
Advertisement