मुख्यसमाचारदेशविदेशखेलबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाब
हरियाणा | गुरुग्रामरोहतककरनाल
रोहतककरनालगुरुग्रामआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकीरायफीचर
Advertisement

एकदा

08:02 AM Jul 19, 2024 IST
Advertisement

जैन गुरु बांकेई ने जब जनसाधारण के लिए ध्यान साधना के शिविर लगाने शुरू किये तो जापान के कई हिस्सों से लोग उसमें भाग लेने के लिए आने लगे। ऐसे ही एक सत्र में एक शिष्य चोरी करता हुआ पकड़ा गया। लोगों ने इसकी सूचना बांकेई को दी। बांकेई ने नजरअंदाज कर दिया। वह शिष्य दोबारा चोरी करते हुए पकड़ा गया। दूसरी बार भी बांकेई ने कोई ध्यान नहीं दिया। शिविर में भाग लेने वाले शिष्यों ने सम्मिलित रूप से एक पत्र लिखा और बांकेई को बताया कि यदि चोर को शिविर से बाहर नहीं निकाला गया तो वे सभी शिविर का त्याग कर देंगे। पत्र को पढ़कर बांकेई ने सभी को बुलाया और उनसे कहा, ‘आप सभी बुद्धिमान व्यक्ति हैं। आप को सही और गलत की पहचान है। यदि आप यहां नहीं पढ़ेंगे तो आपको कहीं और पढ़ने का अवसर मिल ही जाएगा, लेकिन आपके ही बीच आपका यह बेचारा भाई है, जिसे अच्छे और बुरे कर्मों का बोध नहीं है। यदि मैं उसे शिविर से निकाल दूं तो वह कहां जायेगा? कौन उसे सन्मार्ग पर लायेगा? इसलिए मैं तो उसे यहां से नहीं निकाल सकता। यदि आप सभी चाहें तो शिविर छोड़कर जा सकते हैं।’ चोरी करने वाले शिष्य के चेहरे पर अश्रुओं की धारा बहने लगी। दूसरों की वस्तुएं चुराने की कामनाएं समाप्त हो गईं।

प्रस्तुति : प्रवीण कुमार सहगल

Advertisement

Advertisement
Advertisement