एकदा
07:45 AM Jul 18, 2024 IST
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एक युवक अपने अतीत से कभी भी अलग नहीं रह पाता था। बहुत मानसिक तनाव रहता था। मगर अतीत की खिड़की को खुला ही रखता था। उसने अपनी समस्या एक संत को बताई। संत ने कहा, ‘इधर आओ। इस नदी की धारा पर पैर रखो।’ युवक ने पैर रखा। दो पल बाद संत ने कहा, ‘चलो उसी धारा पर पैर जमाकर रखना।’ ‘मगर वह धारा तो आगे बढ़ गई।’ ‘तो तुम पीछे किसलिए। तुम भी आगे चलो। यह जीवनधारा भी पल-पल बह रही है। सब बीत ही जाता है। अतीत से मुक्त नहीं होंगे तो वर्तमान के सही दर्शन कैसे करोगे।’ युवक को बात समझ आ गई। वह तनाव से बाहर आ गया। प्रस्तुति : मुग्धा पांडे
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