एकदा
एक बार एक राजा ने एक कैदी को किसी संगीन अपराध पर मृत्यु की सजा सुनायी। कैदी ने सोचा कि मरना ही है, तब राजा से क्या डरना। अत: उसने राजा को अनेक गालियां दे डालीं। राजा कैदी की भाषा कुछ कम समझता था और कुछ वह जानबूझकर अनजान बन गया। उसने अपने मंत्री से पूछा कि कैदी क्या कह रहा है? मंत्री- ‘महाराज, ये कैदी कह रहा है कि जो क्षमा करना जानता है, वह ईश्वर को प्रिय होता है।’ राजा-‘अरे! ऐसी बात है तो इसको ससम्मान छोड़ दिया जाए।’ दूसरा मंत्री-‘राजन! मंत्री जी आपसे झूठ बोल रहे हैं। कैदी तो आपको गालियां दे रहा है।’ राजा-‘मंत्री जी, आपकी सत्यता से मुझे आपके साथी मंत्री का झूठ अधिक अच्छा लगा क्योंकि इस झूठ में एक जीवन को बचाने का आग्रह है। अतः यह झूठ होते हुए भी झूठ नहीं है, जबकि तुम्हारे सत्य में द्वेष का विष है। अतः यह सत्य होकर भी अच्छा नहीं है।’ राजा ने यह कहकर कैदी को मुक्त कर दिया।
प्रस्तुति : राजकिशन नैन