एकदा
एक दिन फ्रांसिस रेशमी वस्त्र की अपनी दुकान पर बैठे एक धनवान ग्राहक से बातचीत कर रहे थे, तभी उन्हें एक भिखारी ने आवाज दी, लेकिन उन्होंने बातचीत के चलते अनदेखा कर दिया। वह भिखारी वहां से चला गया। जब उनकी बातचीत खत्म हुई तो फ्रांसिस उस भिखारी की खोज-खबर करने लगे। उनका मन आत्मग्लानि से भर गया। इसके बाद वह उस भिखारी को खोजने के लिए कई गलियों में घूमते रहे। जब वह भिखारी फ्रांसिस को मिला तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने कहा, ‘मैं बातचीत में इतना उलझा हुआ था कि आपके लिए वक्त नहीं दे पाया।’ और फिर फ्रांसिस ने कोट से सारा पैसा निकाल कर उस भिखारी को दे दिया। आगे चलकर यही फ्रांसिस, संत फ्रांसिस ऑफ असीसी के नाम से विख्यात हुए। इस महापुरुष ने मानव सेवा को साधना के अंग के रूप में प्रतिष्ठित करके संवेदनशीलता की उपयोगिता को नया आयाम दिया।
प्रस्तुति : निशा सहगल