मुख्यसमाचारदेशविदेशखेलबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाब
हरियाणा | गुरुग्रामरोहतककरनाल
रोहतककरनालगुरुग्रामआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकीरायफीचर
Advertisement

एकदा

07:36 AM Jun 19, 2024 IST
Advertisement

समरपुर गांव में नदी किनारे एक महात्मा जी का आश्रम था। चारों ओर का वातावरण सुख शांति से भरा था। महात्मा जी से ज्ञान प्राप्ति हेतु कई शिष्य आते। एक दिन महात्मा जी ने शिष्यों से कुएं और नदी से जल लाने को कहा। कुछ ही देर में जल पात्र में जल लेकर लौटे। कुएं के जल लाने वालों से पूछा, ‘क्या विशेषता रही?’ शिष्य सोच में पड़ गए। यही प्रश्न नदी से जल लाने वालों से पूछा। पर कोई भी सही जवाब नहीं दे सका। सभी शिष्यों से महात्मा जी ने कहा, ‘कुएं के जल से प्यास तभी बुझ सकती है जब कोई एक व्यक्ति किसी जल पात्र को रस्सी से बांधकर कुएं से पानी निकाल पाता है। लेकिन नदी का जल जो उसके किनारे पहुंचता है, सभी जीव-जंतुओं और प्राणियों की समान रूप से प्यास बुझाता है। इसलिए जीवन में नदी की तरह बनकर सबके लिए सेवा-भावी बनो।’

प्रस्तुति : दिनेश विजयवर्गीय

Advertisement

Advertisement
Advertisement