एकदा
एक बार भिक्षुक घूमते-फिरते एक दुकान पर गये। दुकान में अनेक छोटे-बड़े डिब्बे थे, एक डिब्बे की ओर इशारा करते हुए भिक्षुक ने दुकानदार से पूछा, ‘इसमें क्या है?’ दुकानदार ने कहा, ‘इसमे नमक है!’ भिक्षुक ने फिर पूछा, ‘इसके पास वाले में क्या है?’ दुकानदार ने कहा, ‘इसमें हल्दी है।’ इसी प्रकार भिक्षुक बार-बार सभी डिब्बों के बारे में पूछता गया और दुकानदार बतलाता रहा। अंत में सबसे पीछे रखे डिब्बे का नंबर आया तो भिक्षुक ने पूछा, ‘उस अंतिम डिब्बे में क्या है?’ दुकानदार बोला, ‘उसमें राम-राम हैं।’ भिक्षुक ने पूछा, ‘यह राम-राम किस वस्तु का नाम है!’ दुकानदार ने कहा, ‘सभी डिब्बों में तो कोई न कोई वस्तु है, परंतु यह डिब्बा खाली है, हम खाली को खाली नहीं कहकर राम-राम कहते हैं।’ भिक्षुक की आंखें खुली की खुली रह गईं! ‘ओह! तो खाली में राम जी रहते हैं। भरे हुए में राम को स्थान कहां? लोभ, लालच, ईर्ष्या, द्वेष और भली-बुरी बातों से जब दिल-दिमाग भरा रहेगा तो उसमें ईश्वर का वास कैसे होगा? राम जी साफ-सुथरे मन में ही निवास करता है!’ एक छोटी-सी दुकान वाले ने भिक्षुक को बहुत बड़ी बात समझा दी। प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी