एकदा
विनम्रता की प्रतिष्ठा
पंडित विद्याभूषण बहुत बड़े विद्वान थे। उन्हीं के पड़ोस में एक अशिक्षित व्यक्ति रहते थे-रामसेवक। वे अत्यंत सज्जन थे और लोगों की खूब मदद किया करते थे। पंडित जी रामसेवक को ज्यादा महत्व नहीं देते थे और उनसे दूर ही रहते थे। एक दिन पंडित जी अपने घर के बाहर टहल रहे थे। तभी एक राहगीर उधर आया और मोहल्ले के एक दुकानदार से पूछने लगा, ‘भाई यह बताओ कि पंडित विद्याभूषण जी का मकान कौन-सा है।’ यह सुनकर पंडित जी की उत्सुकता बढ़ी। वह सोचने लगे कि आखिर यह कौन है जो उनके घर का पता पूछ रहा है। तभी दुकानदार ने उस राहगीर से कहा, ‘मुझे तो किसी पंडित जी के बारे में नहीं मालूम।’ तब राहगीर ने कहा, ‘क्या रामसेवक जी का घर जानते हो?’ दुकानदार ने हंसकर कहा, ‘अरे भाई उन्हें कौन नहीं जानता। वे बड़े भले आदमी हैं।’ फिर उसने हाथ दिखाकर कहा, ‘वो रहा रामसेवक जी का घर।’ दुकानदार ने राहगीर से सवाल किया, ‘लेकिन आपको काम किससे है? पंडित जी से या रामसेवक जी से?’ राहगीर कहने लगा, ‘भाई काम तो मुझे रामसेवक जी से है। पर उन्होंने ही बताया था कि उनका मकान पंडित विद्याभूषण जी के पास है।’ यह सुनकर पंडित जी ग्लानि से भर उठे।
प्रस्तुति : मुकेश ऋषि