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एकदा

08:05 AM May 22, 2024 IST
एकदा
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महाकवि निराला जी को अलीगढ़ में एक कवि सम्मेलन में खूब दाद मिली। लौटते हुए आधी रात से अधिक हो गई थी। जो युवक उनको अपने साथ लाया था, उसने संकोच से कहा कि अब तो कोई और साधन नहीं है। आप सहूलियत समझें तो हम एक तांगा कर लेते हैं। निराला जी आनंद से तांगे में बैठ गये। युवक हैरान था, कहे बगैर रह न सका कि आपको तो बढि़या मोटरकार से लेकर गया था, और अब आपको तांगे पर वापस ला रहा हूं। आप तो अब भी वैसे ही सामान्य लग रहे हैं। न कोई नाराजगी न कोई झुंझलाहट?’ ‘अरे, मेरे लिए सब बराबर है। तुम अगर कहते तो मैं तो पैदल भी चल देता।’ कहकर निराला हंसते-हंसते चांदनी रात निहारने लगे। मगर उस युवक को जीवन में सामंजस्य की एक बहुत बड़ी सीख दे गये। प्रस्तुति : पूनम पांडे

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