एकदा
एक बार लाल बहादुर शास्त्री ने बिहार के कुछ लोगों को प्रधानमंत्री निवास पर मिलने का समय दिया। संयोग से उसी दिन एक विदेशी अतिथि के सम्मान में एक कार्यक्रम का आयोजन हो गया। शास्त्री जी को वहां जाना पड़ा। बिहार से आए हुए लोग उनका इंतजार करके निराश होकर वापस चले गए। उनके जाने के कुछ देर बाद ही शास्त्री जी लौट आए। उन्होंने अपने सचिव से पूछा, ‘बिहार से कुछ लोग मुझसे मिलने आने वाले थे, क्या वे आ चुके हैं?’ सचिव बोला, ‘वे आए तो थे, लेकिन आपकी प्रतीक्षा करने के बाद अभी-अभी यहां से निकल गए।’ यह सुनकर शास्त्री जी ने सचिव से पूछा, ‘कुछ मालूम है कि वे लोग कहां गए हैं?’ सचिव ने कहा, ‘वे कह रहे थे कि सामने के स्टॉप से बस पकड़नी है।’ शास्त्री जी तुरंत बस स्टॉप की ओर लपके। यह देखकर सचिव बोला, ‘श्रीमान! आप यह क्या कर रहे हैं? यदि बुलाना ही है तो मैं उन्हें बुला लाता हूं।’ शास्त्री जी बोले, ‘नहीं! मुझे ही जाना होगा। मुझे उनसे क्षमा मांगनी है और क्षमा मांगने का इससे अच्छा तरीका और क्या होगा कि मैं स्वयं बस स्टॉप से उन्हें बुलाकर लाऊं।’ इसके बाद शास्त्री जी तेजी से बस स्टॉप पहुंचे। उन्हें देख एक अतिथि ने कहा, ‘दिल्ली में वैसे तो हमने बहुत कुछ देखा, लेकिन सबसे अच्छा यह लगा कि हमारे प्रधानमंत्री में सच्ची मानवता है।’ प्रस्तुति : मुकेश ऋषि