मुख्यसमाचारदेशविदेशखेलबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाब
हरियाणा | गुरुग्रामरोहतककरनाल
रोहतककरनालगुरुग्रामआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकीरायफीचर
Advertisement

एकदा

07:59 AM Feb 24, 2024 IST
Advertisement

दुःख के बीज

एक बार बुद्ध वन के रास्ते से जा रहे थे। तभी एक व्यक्ति उनके पास आकर बोला, ‘मैं बहुत दुखी हूं, लेकिन दुःख निवारण की कोई युक्ति नहीं सूझ रही।’ बुद्ध ने पूछा, ‘क्या दुःख है तुम्हें?’ उस व्यक्ति ने कोई जवाब नहीं दिया। तब बुद्ध बोले, ‘दुःख की गहराई में जाकर देखो।’ उस व्यक्ति ने पूछा, ‘वह कैसे?’ बुद्ध ने उसे जंगल से अलग-अलग किस्म के पौधों के बीज लाने को कहा। थोड़ी देर में वह व्यक्ति कई पौधों के बीज की गुठलियां ले आया। बुद्ध ने एक गुठली उसके हाथ से लेकर पूछा, ‘यह क्या है?’ उस व्यक्ति ने जवाब दिया, ‘यह तो निबौरी है।’ बुद्ध ने दूसरी गुठली दिखाकर पूछा, ‘और यह क्या है?’ उस व्यक्ति ने कहा, ‘यह बेर है।’ यह सिलसिला कुछ देर तक चला। बुद्ध ने सभी बीजों के बारे में उस व्यक्ति से पूछा और वह उनके नाम बताता रहा। फिर बुद्ध ने कहा, ‘ऐसे ही दुःख के बीज होते हैं। कोई दुःख बिना बीज के नहीं उगता। दुःख के बीज पहचानो, फिर उसकी दवा कोई-न-कोई बता ही देगा।’ यह सुनकर उस व्यक्ति को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया। प्रस्तुति : देवेन्द्रराज सुथार

Advertisement
Advertisement
Advertisement