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एकदा

08:09 AM Feb 14, 2024 IST

निजामुद्दीन ओलिया और तत्कालीन सुल्तान एक-दूसरे को पसन्द नहीं करते थे। सुलतान ने दरगाह को मिलने वाली इमदाद पर रोक लगा दी। लेकिन निजामुद्दीन ने जनसहयोग से लंगर चलाया। सुलतान नाराज हो गया। मगर कुछ समय के बाद सुलतान गम्भीर रूप से बीमार हो गया। उसका पेशाब बन्द हो गया। सुलतान की मां जियारत करने ओलिया निजामुद्दीन की दरगाह पर आई। हजरत निजामुद्दीन ने सुलतान को ठीक करने के लिए सम्पूर्ण राज-पाट के पट्टे की मांग की। राजमाता ने सुलतान को कहा। सुलतान ने सम्पूर्ण राजपाट निजामुद्दीन ओलिया के नाम कर दिया और शाही मोहर के साथ पट्टा लिख दिया। सुलतान के स्वास्थ्य में तुरन्त सुधार शुरू हुआ। पट्टा लेकर जब हजरत निजामुद्दीन के पास कारिन्दे पहुंचे तो हजरत ने राजपाट के पट्टे के टुकड़े-टुकड़े करके पेशाब के बर्तन में फेंक दिए और कहा, ‘दरवेशों के लिए राज-पाट का महत्व इतना ही है।’ और हजरत खुदा की इबादत करने में मसरूफ हो गए। प्रस्तुति : यशवंत कोठारी

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