एकदा
सांगानेर (राजस्थान) में पैदा हुए पठान रज्जब अली संत दादूजी से बहुत प्रभावित थे। दादूजी ने देखा कि कुछ समय में ही रज्जब ने नशा और मांसाहार त्यागकर सात्विक वृत्ति अपना ली है। दादू को लगने लगा कि यह युवक उच्च कोटि का भक्त-साधक बनेगा। परिवार वालों ने रज्जब का विवाह तय कर दिया। रज्जब की बारात सांगानेर से आमेर जा रही थी। आमेर से कुछ मील पहले ही दादू की कुटिया थी। रज्जब उनसे आशीर्वाद लेने वहां पहुंचे। ध्यान से जैसे ही उठे कि उन्होंने अपने प्रिय शिष्य को दूल्हे के वेश में देखते ही कहा- तू तो भगवान का भजन करने व अपने सद्विचारों से संसार का कल्याण करने आया था। अब संसार के प्रपंचों में फंसकर जीवन को नरक बना लेगा। रज्जब की विरक्ति भावना जाग उठी। उन्होंने अपने सिर का मौर उतारकर छोटे भाई को सौंपते हुए पिता से कहा, ‘उस लड़की का विवाह इससे कर दें। मैं अविवाहित रहते हुए हरि भजन व संत सेवा करूंगा।’ उसी क्षण से रज्जब गुरु दादूजी की सेवा व साधना में लग गए। दादू के भक्तिमय पदों के संकलन का ऐतिहासिक काम उन्होंने किया। संत रज्जब ने स्वयं भी असंख्य भक्ति पदों की रचना की। प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी