एकदा
भगवान बुद्ध श्रावस्ती के निकट एक गांव में ठहरे हुए थे। एक धनी व्यक्ति उनके दर्शन के लिए पहुंचा। उसने विनम्रता से कहा, ‘भगवन, मेरा शरीर अनेक व्याधियों का अड्डा बन चुका है। मुझे रोगमुक्ति का साधन बताने की अनुकंपा करें।’ बुद्ध ने कहा, ‘प्रचुर भोजन करने से उत्पन्न आलस्य व निद्रा, भोग व अनंत इच्छाओं की कामना, शारीरिक श्रम का अभाव-ये सब रोग पनपने के कारण हैं। जीभ पर नियंत्रण रखने, संयमपूर्ण सात्विक भोजन करने, शारीरिक श्रम करने, सत्कर्मों में रत रहने और अपनी इच्छाएं सीमित करने से ये रोग स्वतः विदा होने लगते हैं। असीमित इच्छाएं और अपेक्षाएं शरीर को घुन की तरह जर्जर बना डालती हैं।’ सेठ ने उनके वचनों का पालन करने का संकल्प लिया। एक महीने में ही वह स्वस्थ हो गया। उसने बुद्ध के पास जाकर कहा, ‘शरीर का रोग तो आपकी कृपा से दूर हो गया। अब चित्त का प्रबोधन कैसे हो।’ बुद्ध ने कहा, ‘अच्छा सोचो, अच्छा करो और अच्छे लोगों का संग करो। विचारों का संयम चित्त को शांति और संतोष देगा।’ प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी