एकदा
स्वामी विवेकानंद अमेरिका में जाने-माने व्यक्ति बन गए थे। एक बार रेलवे स्टेशन पर जब वे गाड़ी से उतर रहे थे, उनका भव्य स्वागत किया जा रहा था, तभी वहां एक नीग्रो कुली ने आगे बढ़कर उनसे हाथ मिलाते हुए कहा, ‘बधाई! मुझे खुशी है कि मेरी जाति के एक व्यक्ति ने इतना बड़ा सम्मान प्राप्त किया है। इस देश के पूरे नीग्रो समुदाय को आप पर गर्व है।’ स्वामीजी ने कुली से स्नेहपूर्वक हाथ मिलाया और नम्रता से कहा, ‘धन्यवाद! भाई धन्यवाद!’ उन्होंने यह कहने से इनकार कर दिया कि वे नीग्रो नहीं हैं। वास्तव में इतनी प्रसिद्धि होने के पश्चात भी स्वामीजी का अपमान व तिरस्कार किया गया और अमेरिका के दक्षिणी राज्यों में नीग्रो समझकर कई होटलों में उन्हें जाने नहीं दिया गया। लेकिन उन्होंने कभी इसका विरोध नहीं किया और न ही यह कहा कि मैं नीग्रो नहीं हूं। मैं तो भारतीय हूं। एक पश्चिमी शिष्य ने एक बार उनसे कहा कि ऐसी स्थितियों में वे उनको क्यों नहीं बताते कि मैं भारत का हूं। स्वामीजी ने उत्तर दिया, ‘दूसरों को नीचा दिखाकर मैं ऊपर उठूं! मैं इस पृथ्वी पर इसलिए नहीं आया हूं।’ प्रस्तुति : देवेन्द्रराज सुथार