एकदा
भगवान रामचंद्र जिस समय सीता और लक्ष्मण के साथ घर से वनवास को जाने लगे तो उन्होंने जरूरतमंद लोगों को बहुत सारा अन्न-धन अपने हाथों से दान किया था। उन दिनों अयोध्या में एक बूढ़ा गरीब ब्राह्मण अपने परिवार के साथ रहता था। जिस समय दशरथ नंदन दान की वस्तुएं बांट रहे थे, उस समय वह ब्राह्मण जंगल में लकड़ियां काटने के लिए गया हुआ था। घर लौटने पर जब उसे राम के दान करने की सूचना मिली तो वह दौड़ा-दौड़ा उसी स्थान पर पहुंचा, जहां दान दिया जा रहा था। उसने विनयपूर्वक झुक कर रामचंद्र से दान की याचना की। राम ने ब्राह्मण की ओर देखा और हंसकर बोले, ‘विप्र देवता, आपने आने में बड़ी देर कर दी। मैं तो थोड़ी देर पहले सब नकदी दान कर चुका, परंतु अभी भी थोड़ी गाएं शेष हैं और वे सरयू पार चर रही हैं। आप तत्क्षण नदी पार जाकर अपना डंडा जोर लगाकर फेंकिए, जहां तक आपका डंडा जाएगा वहां तक की परिधि की सारी गाएं आपकी।’ बूढ़ा शीघ्रता से चलता हुआ नदी लांघकर गायों के पास पहुंचा। उसने अपनी पूरी ताकत से अपना डंडा गायों को लक्ष्य करके फेंका और वह बड़ी संख्या में गाएं हांक कर ले गया। प्रस्तुति : राजकिशन नैन