एकदा
एक बार एक राज्य ने दुर्भिक्ष का सामना किया। ऋषि लोगों से बोले, ‘नरमेध यज्ञ से ही दुर्भिक्ष मिटेगा। इसके लिए एक व्यक्ति की बलि देनी होगी।’ यह सुनते ही चारों ओर श्मशान-सी खामोशी छा गई। सबको शांत देख महात्मा बोले, ‘क्या आप सबमें किसी में इतना साहस नहीं, जो स्वयं का बलिदान देकर पूरे राज्य का दुर्भिक्ष मिटा सके।’ तभी शतमन्यु नामक एक बालक आगे आकर बोला, ‘महर्षि मैं अपना बलिदान देने हेतु सहर्ष प्रस्तुत हूं। मैं अपने माता-पिता की आज्ञा लेकर आता हूं।’ यह बालक अपने माता-पिता की इकलौती संतान था। उसने घर पहुंचकर अपने माता-पिता को अपने निर्णय की जानकारी दी। उसके तर्कों के समक्ष उसके माता-पिता न नहीं कह सके। बालक यज्ञस्थली पर लौट आया। बलि के समय बालक निर्भीक भाव से सिंह-शावक के समान खड़ा हो गया। ज्यों ही पुरोहित ने खड्ग हाथ में लिया कि बादल छा गए, चारों ओर पुष्पवर्षा होने लगी। इंद्रदेव ने वहां प्रकट होकर उस बालक के गले में माला डालते हुए कहा, ‘मैं इस बालक की त्यागवृत्ति से प्रसन्न हूं। अब यहां मेघ बरसेंगे। आलस्य, असंयम, अनैतिकता में डूबे सभी लोगों को दंडित करने के लिए ऐसा किया गया था।’ मेघ बरसे और दुर्भिक्ष मिट गया।
प्रस्तुति : मुकेश ऋषि