बेशक जीवन चुनें
प्रतिभा कटियार
टूटना हर हाल में बुरा होता है। कोई भी रिश्ता नहीं टूटना चाहिए, लेकिन रिश्ते के न टूटने की कीमत व्यक्ति का टूटना तो नहीं हो सकता। इसलिए जब रिश्तों के अंदर इन्सान मरने लगे, जज्बात मरने लगें तो जरूरी है रिश्ते की दहलीजों से पार निकलना और खुद को बचाना। तमिल टीवी अभिनेत्री शालिनी ने तलाक के बाद एक फोटोशूट कराकर जिसमें वो तलाक को मुक्ति के तौर पर देख रही हैं और मुक्ति का जश्न मना रही हैं, समाज की सड़ी-गली सोच को अंगूठा दिखाया है। समाज स्त्रियों से अपेक्षा रखता है कि वो अपनी मर्जी से किसी रिश्ते में न जाएं। जो भी रिश्ता उन्हें पकड़ा दिया जाये, उसे पूरी शिद्दत से निभाएं और निभाते-निभाते मर जाएं। मरते-मरते भी उस रिश्ते के झूठे सुख के कसीदे पढ़ना न भूलें।
हमारे आसपास न जाने कितनी ही ऐसी शादियां हैं जिसमें लोग एक-दूसरे को बड़ी मुश्किल से झेल रहे हैं। हर दिन कुढ़ रहे हैं। अपनी शादी को कोस रहे हैं, लेकिन उसी शादी की झूठी हैपी फैमिली वाली तस्वीरें भी लगातार पोस्ट कर रहे हैं। ये सुखी दिखने का इतना दबाव जाने कहां से आ गया है। प्रेम और सम्मान के अभाव में किसी भी रिश्ते को क्यों बचे रहना चाहिए? और यह अलग होना सुभीते से क्यों नहीं होना चाहिए? एक स्त्री के लिए तलाक के फैसले तक पहुंचने की राह आसान नहीं होती। यह लड़ाई पहले मन के भीतर लम्बी चलती है और उसके बाद कोर्ट में। जिस रिश्ते के बनने को कभी सेलिब्रेट किया था उससे मुक्ति पाने के लिए कोर्ट की सीढि़यां चढ़ना आसान नहीं होता। परिवार के लोगों से लेकर, कोर्ट, कचहरी, वकील, जज और आसपास के लोग सब मिलकर संदेह की नज़र से देखते हैं। आपमें दोष तलाशते हैं। एक स्त्री शादी के 28 साल बाद तलाक लेने पहुंची तो जज ने कहा, ‘अब इतनी उम्र कट गयी है, बाकी भी काट लो, क्यों लेना है तलाक? अलग तो रहते ही हो, तलाक लेने की क्या जरूरत है? ये जो है न ‘पड़ी रहने दो शादी’- इसी ने जिन्दगी अज़ाब बनाई है। कुछ भी करके शादी को बचा लेने पर तुला है समाज। रिश्ता बचाया जाना यक़ीनन जरूरी है लेकिन अगर रिश्ते में से और जीवन में से कुछ चुनना हो तो बेशक जीवन को ही चुना जाना चाहिए।
साभार : प्रतिभा कटियार डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम