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बाल कविताएं

01:28 PM Jun 19, 2021 IST
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पापा की सीख

एक दिन नन्हीं प्रज्ञा, हो रही थी घर में बोर।

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गर्मियों की दोपहर थी, सन्नाटा था हर ओर।

पापा बैठे कर रहे थे, लैपटॉप पर कोई काम।

बिटिया रानी को देख, पुकारा उसका नाम।

उसे गुमसुम देख, बोले प्रज्ञा है नाम तुम्हारा।

समय बिताने को, लो तुम किताबों का सहारा ।

किताबें होतीं हैं मित्र, देती हैं हर तरह का ज्ञान।

इनको साथी बना लो, पूरे होंगें सब अरमान।

– अलका जैन ‘आराधना’

नन्हीं किरन

नन्हीं किरन उतर खिड़की से, आई मेरे पास।

बोली जागो हुआ सवेरा, अब सोओगे कितना।

बीता समय नहीं आएगा, ढूंढ़ोगे तुम जितना।

उठकर नया काम करो, समय बड़ा है खास।

चलो बगीचे में अब कर लो, फूलों से कुछ बातें।

हवा बांटती, नयी खुशबुओं की प्यारी सौगातें।

अपने तन-मन में तुम भर लो, मीठा सा एहसास।

वह देखो कर रही गिलहरी, पत्तों से अठखोली।

बगिया झूम रही मस्ती में, सुबह बड़ी अलबेली।

ताल किनारे मोर नाचता, लहराती है घास।

– फहीम अहमद

गौरैया

एक दिवस आंगन में आकर, बोली मुझसे यूं गौरैया।

कई दिनों से प्यासी हूं मैं, पानी मुझे पिला दो भैया।

गर्मी ने अब पांव पसारे। सूखा हलक प्यास के मारे।

पानी दिखता नहीं कहीं पर, जाकर आई नदी किनारे।

कैसे अपनी प्यास बुझाऊं, सूखे सारे ताल-तलैया।

पानी मुझे पिला दो भैया। मिले नहीं तरुवर की छाया।

जंगल का हो गया सफाया। बच न पाया मेरा बसेरा।

चिड़िया की जब सुनी कहानी। आखों में भर आया पानी।

चिड़िया बैठी थी आंगन में, मैं कुंडे में लाया पानी।

पानी पीकर उड़ी चिरैया। खुश हो नाची ता ता थैया।

– उदय मेघवाल ‘उदय’

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